प्रधानमंत्रियों की छवियां
नरेंद्र मोदी की प्रधानमंत्री के बतौर दो छवियां हैं. 'मेक इन इंडिया' वाले 'दूरदृष्टा' की और अपने ही नाम का सूट पहने वाले 'दिखावटी' की. मोदी के बहाने एक नजर कुछ पुराने प्रधानमंत्रियों पर.
जवाहरलाल नेहरू
भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को आधुनिक भारत का निर्माता कहा जाता है. उनकी छवि एक पढ़े लिखे और दूरदृष्टा प्रधानमंत्री की रही है. भारतीय राजनीति में पिछले कुछ दशकों में नेहरू विरोधी विचारधारा के उभार के बाद उनकी एक नकारात्मक छवि को भी काफी प्रचार मिला है.
लाल बहादुर शास्त्री
नेहरू के बाद प्रधानमंत्री बने लाल बहादुर शास्त्री की सादी, जमीन से जुड़े, मजबूत इरादों वाली छवि थी. 1965 के पहले भारत-पाक युद्ध के दौरान उनके राजनीतिक निर्णयों ने उनकी नेतृत्व क्षमता और लोकप्रियता को परवान चढ़ा दिया. हालांकि ताशकंद समझौते के चलते उनकी आलोचना भी हुई.
इंदिरा गांधी
भारत की एक मात्र महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी दो बार प्रधानमंत्री बनीं. नेहरू की इस इकलौती संतान को आइरन लेडी के नाम से जाना जाता था. दूसरी तरफ 1975 में लगे आपातकाल और उस दौर के कठोर दमन ने इंदिरा गांधी की छवि में नकारात्मक पक्ष भी जोड़ा.
राजीव गांधी
राजीव गांधी अपनी मां इंदिरा गांधी की हत्या के बाद महज 40 साल की उम्र में देश के प्रधानमंत्री बने. उनके नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी ने लोकसभा चुनावों में 542 में से 411 सीटों की एतिहासिक जीत दर्ज की. लेकिन बोफोर्स घोटाले, भोपाल गैस कांड आदि ने उनकी छवि पर नकारात्मक असर डाला और अगले चुनावों में उन्हें हार का सामना करना पड़ा.
नरसिम्हा राव
गैर हिंदी भाषी दक्षिण भारत से आने वाले पहले प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव भारत में 'आर्थिक सुधारों का पितामह' कहा जाता है. लेकिन इन्हीं सुधारों के लिए उनकी आलोचना भी होती है. साथ ही उनके शासन काल में हिंदू चरमपंथियों की ओर से ढहा दी गई बाबरी मस्जिद भी एक बढ़ा विवाद रहा.
अटल बिहारी वाजपेयी
वाजपेयी की छवि एक गंभीर वक्ता और कुशल राजनीतिज्ञ की रही है. वह काफी लोकप्रिय प्रधानमंत्री रहे. वह पहले ऐसे गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री रहे जिन्होंने अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा किया. कारगिल युद्ध के दौरान हुए कफन घोटाले ने उनकी छवि में नकारात्मक आयाम जोड़ा.
मनमोहन सिंह
सोनिया गांधी के प्रधानमंत्री पद से इनकार के बाद यूपीए सरकार के नेतृत्व के लिए जिस नाम को चुना गया उसकी छवि देश के सबसे उच्चशिक्षित अर्थशास्त्री की थी. लेकिन 10 साल बाद जब मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री पद छोड़ रहे थे, उनकी छवि चुप्पी साधे इशारों पर चलने वाली कठपुतली की थी, जिसकी सरकार पर भ्रष्टाचार के सबसे बड़े आरोप थे.