1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

#पोस्टक्रॉसिंग

२० अगस्त २०१४

छुट्टियों पर गए लोग अक्सर अपनी और शहर की तस्वीरें भेजतें हैं. अब वो ये यादें पोस्टकार्ड के जरिए भेजते हैं या वॉट्सऐप और फेसबुक के जरिए इसे साझा करते हैं, ये पारंपरिक और मॉडर्न के बीच का फर्क है.

https://p.dw.com/p/1CyHT
तस्वीर: public domain

दुनिया के किसी शहर से याद के तौर पर आने वाले पोस्टकार्ड अक्सर बहुत दिन बाद आते हैं और इसमें पैसे भी काफी खर्च होते हैं. अब तो फेसबुक, वॉट्सऐप जैसी कई नेटवर्किंग साइट्स के विकल्प मौजूद हैं जहां मिनटों में तस्वीरें और संदेश पहुंच जाते हैं. और अजीबो गरीब तरह के पोस्टकार्ड भेजने और पढ़ने से भी लोग बच जाते हैं. भले ही ये ट्रेंड बढ़ रहा हो लेकिन अच्छे पोस्टकार्ड अभी भी जिंदा हैं. और इन्हें भेजने वाले भी. बर्लिन में कम्यूनिकेशन म्यूजियम की फाइट दिदसुनेट कहते हैं कि पोस्टकार्ड कुछ खास होते हैं. वो दो चीजें दिखाते हैं, "देखो मैं यहां था और वहां मैंने तुम्हारे बारे में सोचा." ये फेसबुक पोस्टिंग और वॉट्सऐप के संदेश से अलग हैं. कोई भी पोस्टकार्ड ठोस होता है. और उसे बहुत दिनों तक संभाल कर रखा जा सकता है. फेसबुक पोस्टिंग या एसएमएस आप फ्रिज के ऊपर चुंबक से लटका कर नहीं रखते. अधिकतर पोस्टकार्ड गर्मियों की छुट्टियों में भेजे जाते हैं. 2013 के दौरान जर्मनी में 15 करोड़ से ज्यादा पोस्टकार्ड भेजे गए. हालांकि इससे दो साल पहले ये संख्या कहीं ज्यादा, 17 करोड़ थी. हालांकि जर्मनी में आधी जनता यात्रा के दौरान सोशल मीडिया के जरिए ही अपने संदेश और फोटो शेयर करती है. लेकिन फिर भी 14 फीसदी लोग ऐसे हैं जो पोस्टकार्ड के जरिए एकदम पारंपरिक तरीके से अपने संदेश भेजते हैं.

लेकिन दुनिया में कुछ ऐसे लोग हैं जिन्हें पोस्टकार्डों से प्रेम है. और ऐसे भी कई लोग हैं, जो एक दूसरे को जानते तो बिलकुल भी नहीं लेकिन फिर भी ग्रीटिंग्स भेजते हैं और वह भी करीब करीब मुफ्त तरीके से. इस सिस्टम का नाम है पोस्टक्रॉसिंग. भेजे हुए हर पोस्टकार्ड के बदले में दुनिया के किसी देश से उन्हें एक और कार्ड मिलता है. भेजने वाले को पोस्टक्रॉसर कहा जाता है.

2005 से शुरू हुए इस प्रोजेक्ट के जरिए अभी तक करीब ढाई करो़ड़ पोस्टकार्ड भेजे गए हैं, वह भी दुनिया के हर देश से. इसका प्रबंधन एक इंटरनेट प्लेटफॉर्म के जरिए किया जाता है. उदाहरण के लिए भारत के किसी शहर से जर्मनी के किसी शहर में कार्ड भेजने पर आराम से पंद्रह दिन लग जाएंगे. इस व्यवस्था के जरिए भेजा गया कार्ड आता तो भारत से है लेकिन उसके भेजे जाने का सेंटर किसी यूरोपीय देश में होता है. जहां से आसानी से कार्ड पोस्टक्रॉसिंग के जरिए व्यक्ति तक पहुंच जाता है.

रिपोर्टः आभा मोंढे (डीपीए)

संपादनः महेश झा