पेशे जो अब धुंधले पड़ गए हैं
पोस्टर पेंटर
फिल्मों के शौकीन भारत देश में, पता नहीं कब हाथों से पेंट किए जाने वाले फिल्मी पोस्टरों की जगह प्रिंटिंग प्रेस से निकले चिकने पोस्टरों ने ले ली. छपाई से निकले पोस्टर ज्यादा असली जरूर लगते हैं लेकिन उनमें वे भाव नहीं दिखते जिनसे पोस्टर बनाते समय कलाकार खुद गुजरता है.
ब्रास बैंड
एक समय था जब भारत में इनके बगैर कोई भी बारात फीकी मानी जाती थी. आधुनिक दौर में इनकी जगह डीजे वालों ने ली है. अब ना सिर्फ यह कला दम तोड़ रही है बल्कि बैंड कलाकार भी रोजी रोटी के लिए संघर्ष कर रहे हैं.
मिट्टी के कलाकार
बिन दीपक दीवाली कैसी? लेकिन अब वह समय नहीं रहा. चीन से आ रही बिजली से चलने वाली सस्ती बत्तियों के बाजार में आने से लोग दिए के झंझट से दूर रहना ही पसंद करते हैं. बदल रही पसंद और आदतों ने मिट्टी के कलाकारों के लिए मुश्किलें पैदा कर दी हैं.
मेलों के जादूगर
मेलों की रौनक में उन कलाकारों का बेसब्री से इंतजार रहता था जो कभी मौत के कुएं में मोटरसाइकिल उतार देते थे तो कभी रस्सी पर यूं चलते थे जैसे कालीन पर चल रहे हों. विकास की तेज दौड़ में ना रहे वे मेले, ना उन मेलों के कलाकार और ना ही इन्हें सराह कर देखने वाले.
रिक्शा
रिक्शे की सवारी करना भारत में कोई बड़ी बात नहीं. एक समय में हाथ से खींचे जाने वाले ये रिक्शे बहुत आम थे. बाद में देश के कई हिस्सों में इनकी जगह सीट वाले रिक्शों ने ले ली. कोलकाता के कई इलाकों में आज भी ये रिक्शे दिखाई दे जाते हैं.
रफूगर
अक्सर नया कपड़ा कहीं अटक जाने से फट जाता है. उसे बाहर पहनना बंद करना पड़ता है. लेकिन रफूगर के होते इस बात की फिक्र नहीं. वह फटे हुए हिस्से को कुछ यूं रफू कर देते हैं कि बगैर छुए पता नहीं किया जा सकता कि वह कभी फटा भी था. लेकिन रफूगर भी अब बहुत कम ही दिखाई देते हैं.
धोबी
कपड़े धोने की सेमीऑटोमेटिक मशीन से ऑटोमेटिक मशीनों का दौर आने में ज्यादा समय नहीं लगा. और फिर जब मशीन में कपड़ा डालने के बाद उसे सूख जाने पर ही बाहर निकालना हो, तो फिर धोबी का क्या काम? अब इन कपड़े धोने वाले पेशेवर लोगों के पास भी काम की कमी होती जा है.
रंगरेज
एक समय में दुपट्टा रंगने का काम रंगरेज ही किया करते थे. लेकिन इन दिनों बाजार में हर रंग और शेड के दुपट्टे ब्रांडेड दुकानों पर पहले से रंगे हुए मिलते हैं. ब्रांडेड कपड़ों की रंगाई का काम फैक्ट्रियों में तो जारी है लेकिन गली नुक्कड़ पर बैठे रंगरेज अपनी दुकानें समेटने को मजबूर हैं.