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पुराने तालिबान का नया चेहरा हैबतुल्ला

ऋतिका पाण्डेय (एपी, डीपीए)२५ मई २०१६

अफगानिस्तान के तालिबान ने मुल्ला अख्तर मंसूर की मौत के बाद एक ऐसे 'धार्मिक स्कॉलर' को अपना नया नेता चुन लिया है, जो अपने कट्टरवादी विचारों से काबुल को शांति के पथ से और भी दूर ले जा सकता है.

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Afghanistan Mullah Haibatullah Achundsada
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Afghan Islamic Press via AP

बुधवार को अफगानी राजधानी काबुल में एक मिनीबस में हुए आत्मघाती हमले में कम से कम 10 लोगों के मारे जाने की खबर आई, और लगभग उसी समय मीडिया को भेजे एक बयान में तालिबान ने अपने नए नेता मुल्ला हैबतुल्ला अखुंदजादा का नाम बताया. यह मुल्ला मंसूर के दो सबसे करीबी सहयोगियों में से एक था. तालिबानी विद्रोहियों ने अपनी खास बैठक शूरा में नए नेता को चुना. यह बैठक पाकिस्तान में हुई मानी जा रही है.

अमेरिका ने पहली बार इस तरह पाकिस्तान की सीमा में ड्रोन हमला कर किसी तालिबानी नेता को निशाना बनाया है. पाकिस्तानी प्रशासन पर काबुल और पश्चिमी देश, सभी तालिबान को शरण और मदद मुहैया कराने का आरोप लगा रहे हैं. पाकिस्तान ऐसे आरोपों से हमेशा इंकार करता रहा है. तालिबानी विद्रोही 2001 से ही अफगानिस्तान की सरकार को हटा कर अपना इस्लामी शासन स्थापित करने के लिए हिंसक संघर्ष कर रहे हैं.

Afghanistan Taliban-Führer Akhtar Mohammed Mansur durch Drohne getötet
पाकिस्तान की सीमा में हुए अमेरिकी ड्रोन हमले में मारा गया मुल्ला मंसूरतस्वीर: Reuters

बीते 15 सालों से अफगानिस्तान में चले आ रहे युद्ध के हालात को बदलने के लिए अमेरिका और अफगानिस्तान की सरकारें शांति वार्ताएं करना चाहती हैं. लेकिन तालिबन प्रमुख मंसूर इन प्रयासों के खिलाफ रहा है और इस साल की शुरुआत में उसने शांति वार्ता का हिस्सा बनने से इनकार कर दिया था.

मंसूर को 2015 में मुल्ला मोहम्मद उमर की मौत की खबर के सामने आने पर तालिबान प्रमुख चुना गया था. माना जाता है कि मुल्ला उमर का मौत दो साल पहले ही हो चुकी थी लेकिन इस खबर को छुपाकर मुल्ला मंसूर ने तालिबान की कमान संभाल रखी थी. जब यह बात सबके सामने आई तो कई वरिष्ठ तालिबानी सदस्यों ने अपने अलग-अलग धड़े बना लिए. अब मुल्ला मंसूर की मौत के बाद इन अलगाववादी धड़ों को और मजबूती मिलने की संभावना है.

मुल्ला अखुंदजादा को एक धार्मिक स्कॉलर बताया जाता है. वह अफगान सरकार के खिलाफ युद्ध का समर्थक है और देश में विदेशी सेनाओं की मौजूदगी के खिलाफ. इस तरह वह मुल्ला मंसूर का सच्चा उत्तराधिकारी लगता है. उसके अलावा तालिबानी परंपरा के अनुसार दो सहायक चुने जाते हैं. उनमें से एक है सिराजुद्दीन हक्कानी - जो मुल्ला मंसूर का भी सहयोगी और अफगानिस्तान में कई खतरनाक हमलों को अंजाम दे चुके हक्कानी नेटवर्क का मुखिया है. दूसरे सहयोगी का नाम मुल्ला उमर बताया गया है.

तालिबान चाहते हैं कि सभी मुसलमान मुल्ला मंसूर की मौत के गम में तीन दिन तक शोक मनाएं. वहीं 2014 से अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ घानी एक बार फिर नए सिरे से इस नए तालिबानी नेता को बातचीत की मेज तक लाने की कोशिश कर सकेंगे क्योंकि पुराने प्रमुख ने तो इससे इंकार कर ही दिया था.