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पीछा करने वाला सॉफ्टवेयर

मार्टिन रीबे१९ जनवरी २०१५

इंटरनेट की दुनिया में यूजर पर हर वक्त नजर रखी जाती है. कंपनियां तरह तरह से अपने प्रोडक्ट बेचने की कोशिश करती हैं. इंटरनेट में किसी का कितना डाटा जमा होता है, इसे जानने के लिए जर्मनी में एक ऐप डेवलप किया गया है.

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तस्वीर: Alexandr Mitiuc - Fotolia.com

किसी भी वेबसाइट पर जाते ही यूजरों के सामने कई दूसरे लिंक आते हैं - वीडियो, फोटो या कंपनियों के विज्ञापन. अक्सर ये लिंक यूजर की दिलचस्पी से मेल खाते हैं. कुछ लोगों को लगता है कि इंटरनेट पर उनका लगातार पीछा किया जाता है. कार्ल्सरूहे तकनीकी इंस्टीट्यूट के टिल नॉयडेकर का कहना है, "अगर मेरा ब्राउजर किसी तीसरी पार्टी से जानकारी डाउनलोड करता है - मिसाल के तौर पर एक बैनर एडवर्टाइजमेंट - तो इससे विज्ञापन देने वाले का ऐड्रेस भी मेरे मौजूदा पते पर दर्ज हो जाता है. इसके बाद मुमकिन है कि विज्ञापन देने वाला उन जानकारियों को देख सके, जो मेरे पते पर पहले से दर्ज हैं. इससे उसे पता लग सकता है कि मेरी दिलचस्पी किन चीजों में है."

इंस्टीट्यूट के इनफॉर्मेटिक्स छात्रों ने ऐसा साफ्टवेयर तैयार किया है, जो पता लगाता है कि कौन सी कंपनी यूजरों के डाटा खंगालती है और वे डाटा दुनिया भर में कहां कहां भेजे जाते हैं. नॉयडेकर कहते हैं, "सॉफ्टवेयर उन चीजों को देख सकता है, जो साधारण यूजर आम तौर पर नहीं देख सकता. दुनिया के नक्शे पर देखा जा सकता है कि कैसे यूजरों का पीछा किया जा रहा है."

दुनिया भर की इंटरनेट कंपनियों को इन आंकड़ों में दिलचस्पी है. इन्हें स्वीडन या आयरलैंड में सेव किया जा सकता है या फिर अमेरिका की बड़ी इंटरनेट कंपनियों में. नॉयडेकर का कहना है कि अगर विज्ञापन भर के लिए इनका इस्तेमाल हो तो ठीक है लेकिन अगर इससे यूजर की जासूसी होने लगे तब मुश्किल है.

उनका कहना है कि सोशल मीडिया के विकास से यह ज्यादा पेचीदा हुआ है. फेसबुक जैसे प्लेटफॉर्म पर यूजरों की भारी भरकम जानकारी होती है. सबसे खतरनाक तब हो जाता है, जब कोई यूजर सोशल मीडिया पर लॉगिन के साथ दूसरे वेबसाइटों पर भी जाता है. नॉयडेकर कहते हैं, "फेसबुक प्रोफाइल के बगैर तो यूजर कुछ हद तक पहचाना नहीं जाता. तब प्रोवाइडर को सिर्फ इतना पता लगता है कि एक यूजर फलां फलां साइट पर गया है. लेकिन फेसबुक पर लॉगिन करते ही उसकी सारी सूचनाएं जुड़ जाती हैं."

उनका कहना है कि ऐड ब्लॉकर से भी बहुत फायदा नहीं हो सकता क्योंकि ये ब्लॉकर भी ब्राउजर में लगाए जाते हैं और इस बात की कोई गारंटी नहीं कि वह खुद इन जानकारियों को थर्ड पार्टी को नहीं देगा.

जब तक यूजर इंटरनेट पर मुफ्त काम करना चाहेगा, कुछ भी नहीं बदलेगा. उसे निजी डाटा से समझौता करना होगा. लेकिन इस सॉफ्टवेयर से कुछ जागरूकता तो जरूर बढ़ेगी.