पार्किन्सन्स की दवाई से ज़्यादा शॉपिंग की बीमारी
११ मई २०१०पार्किसन्स रोग के लिए दी जाने वाली दवाओं से रोगी का व्यव्हार अनियंत्रित हो जाता है और उसमें जुआ खेलने, बहुत ज़्यादा शॉपिंग करने या फिर ज़्यादा खाने की आदत पैदा हो जाती है इतना ही नहीं यौन व्यव्हार में भी बदलाव आते हैं.
अमेरिकी वैज्ञानिकों ने तीन हज़ार लोगों पर पार्किन्सन्स की दवाइयों का परीक्षण किया और पाया कि डोपेमिन एगोनिस्ट वाली दवाईयों का व्यव्हार पर भारी असर पड़ता है. शोधकर्ताओं का कहना है कि ग्लैक्सो क्लाइन स्मिथ रिक्विप, रोफिनिरोल, बोएरिंगर इंगेलहाइम की मिरापेक्स या फिर प्रामिपेक्सॉल दवाइयों से अनियंत्रित व्यव्हार की शिकायत हो सकती है. इसलिए ज़रूरी है कि डॉक्टर जब इन दवाओं को दें तो मरीज़ों के व्यव्हार पर भी नज़र रखें.
पेनसिल्वेनिया युनिवर्सिटी के प्रोफेसर डैनियल वाइनट्राउब का कहना है, ''कुछ समय से हमें संदेह है कि डोपेमिन एगोनिस्ट वाली दवाओं और आवेगपूर्ण व्यव्हार के बीच कुछ संबंध हो सकता है.''
डोपेमिन एगोनिस्ट वाली दवाइयां मस्तिष्क को डोपेमिन बनाने का आदेश देती हैं जो पार्किन्सन्स बीमारी के कारण ख़त्म होने लगता है. डोपेमिन केमिकल दिमाग के संदेश ले जाने का काम करता है. पार्किन्सन्स के कारण मरीज़ का धीरे धीरे अपने शरीर से और स्नायु तंत्र पर नियंत्रण ख़त्म होने लगता है और फिर उसकी मौत हो जाती है.
वाइनट्राउब के ग्रुप ने तीन हज़ार 90 पार्किन्सन मरीज़ों पर नज़र रखी जो या तो डोपेमिन एगोनिस्ट वाली दवाई ले रहे थे या फिर लेवोडोपा डोपेमिन वाली दवाई ले रहे थे.
उन्होंने शोध में पाया कि इन मरीज़ों में से 13.6 फीसदी यानी करीब 400 लोगों के व्यव्हार में बदलाव देखा गया.
शोधकर्ताओं ने निष्कर्ष निकाला कि डोपेमिन वाली दवाओं से व्यव्हार में एक ज़्यादा तरह के बदलाव देखे जाते हैं. अधिकतर मरीज़ों में ज़्यादा खाने की आदत पैदा हो जाती है या फिर उनके यौन व्यव्हार में बदलाव आता है या वे ज़्यादा ख़रीदारी करने लग जाते हैं.
डोपेमिन एगोनिस्ट वाली दवा सिर्फ पार्किन्सन्स रोग में नहीं दी जाती बल्कि रेस्टलेस लेग सिन्ड्रोम में भी दी जाती है.
रिपोर्टः रॉयटर्स/आभा मोंढे
संपादनः ओ सिंह