पानी को महंगा करने की मांग
१० सितम्बर २०१०पिछले साल विश्व जलवायु सम्मेलन के विफल हो जाने के बाद इस्तीफा देने वाले दे बोअर ने ब्रसेल्स में एक सेमिनार में कहा कि कार्बन उत्सर्जन की तरह पानी का भी उचित दाम लिया जाना चाहिए.
विश्व भर में आबादी के बढ़ने और खाद्य पदार्थों की मांगों के बढ़ने के साथ पीने के पानी की मांग भी बढ़ रही है और बहुत सी जगहों पर पानी की आपूर्ति में विश्वसनीयता घट रही है. दुनिया के विभिन्न हिस्सों में जलवायु परिवर्तन के बीच वैज्ञानिकों का कहना है कि अत्यंत गरीब देशों में पानी की कमी और गंभीर हो जाएगी जिसका असर व्यापक आप्रवासन और अंतरराष्ट्रीय विवादों के रूप में सामने आ सकता है.
संयुक्त राष्ट्र जलवायु कंवेशन छोड़ने के बाद कंसल्टेंसी फर्म केपीएमजी में काम कर रहे दे बोअर का कहना है कि कंपनियों और मुल्कों को पानी का महत्व समझना चाहिए जहां एक ग्लास बीयर बनाने के लिए 75 लीटर पानी खर्च किया जाता है. उन्होंने पानी के संवेदनशील इस्तेमाल के लिए सरकारों को रणनीति तैयार करनी चाहिए, जिसमें ऐसी कीमत भी शामिल हो जो बर्बादी को हतोत्साहित करे और जल संरक्षण को बढ़ावा दे.
रिपोर्ट: एपी/महेश झा
संपादन: उ भट्टाचार्य