पाकिस्तान में ड्रोन हमले बंद
१ जून २०१४पाकिस्तान के कबायली इलाकों में पिछले साल दिसंबर के बाद से अब तक कोई ड्रोन हमला नहीं हुआ है. पड़ोसी मुल्क अफगानिस्तान को अमेरिकी सेना खाली कर रही है और उसका कहना है. इसके अलावा अल कायदा अपने तरीके बदल रहा है और राजनयिक संवेदनशीलता में भी बदलाव आया है.
वॉशिंगटन के थिंक टैंक न्यू अमेरिका फाउंडेशन में काम करने वाले पीटर बेर्गन का कहना है, "लगता है कि पाकिस्तान में चलने वाला यह कार्यक्रम बंद हो गया है." बेर्गर ने ड्रोन हमलों पर खास नजर रखी है. अमेरिकी अधिकारियों ने तो खुल कर इस बारे में कुछ नहीं कहा, लेकिन राष्ट्रपति बराक ओबामा ने साफ कर दिया है कि लगभग सभी अमेरिकी सैनिक 2016 के आखिर तक अफगानिस्तान छोड़ देंगे. इसके साथ अमेरिकी अड्डे भी बंद हो जाएंगे, जहां से ड्रोन हमले किए जाते थे.
पाकिस्तान का नाम नहीं
ओबामा ने अपने प्रमुख विदेश नीति भाषण में इस बात का जिक्र किया कि जरूरत पड़ने पर ड्रोन हमले किए जाएंगे. पर उन्होंने यमन और सोमालिया का जिक्र किया, पाकिस्तान का नहीं. अमेरिकी अधिकारियों ने बताया कि सीआईए के हथियारबंद ड्रोन अभी भी पाकिस्तान के ऊपर मंडरा रहे हैं और उन्हें अभी भी संदिग्ध निशाने पर हमले की इ्जाजत है. लेकिन पांच महीने से एक भी हमला नहीं किया गया है.
अधिकारी ने बताया कि नियम बदलने के कई कारण हैं. अल कायदा के कई वरिष्ठ सदस्य मारे जा चुके हैं. जो बचे हैं, उन्हें निशाना बनाना बहुत मुश्किल है क्योंकि वे मोबाइल फोन लेकर नहीं चलते या फिर बच्चों के साथ सफर करते हैं. अमेरिका का दावा है कि वह बच्चे, महिलाओं और नागरिकों को किसी कीमत पर निशाना नहीं बनाना चाहता.
इसके अलावा पाकिस्तान के कबायली इलाकों में अब ज्यादा अल कायदा के लोग बचे नहीं. पाकिस्तान के कट्टर उग्रपंथी सीरिया और यमन निकल चुके हैं. अब उन इलाकों को अमेरिका सबसे खतरनाक मान रहा है. इसके अलावा ओबामा प्रशासन चाहता है कि सीआईए नहीं, बल्कि अमेरिकी सेना इन हमलों का काम काज देखे. सेना आम तौर पर दूसरे देश से इजाजत मांग कर ही अपनी कार्रवाई करता है और इस काम के लिए शायद ही कोई देश औपचारिक इजाजत दे. इस मुद्दे पर सीआईए और व्हाइट हाउस ने टिप्पणी करने से इनकार कर दिया.
कितने हुए हमले
बताया जाता है कि पाकिस्तान में 2004 से 354 बार ड्रोन हमले किए जा चुके हैं. लेकिन 2011 के बाद से ही हमले घटते चले गए. पिछले साल ओबामा प्रशासन ने इसके लिए बेहद कड़े नियम बना दिए और यह बात पक्की करनी पड़ती थी कि हमले में कोई भी आम शहरी न मरे.
इसके अलावा अब तक के हमलों में अमेरिका को बहुत ज्यादा कामयाबी भी नहीं मिली. न्यू अमेरिका फाउंडेशन और न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी तथा स्टैनफोर्ड की रिसर्च से पता चलता है कि सिर्फ दो फीसदी खतरनाक उग्रवादी इन हमलों में मारे गए. बाकी के मारे गए चरमपंथी छोटे स्तर के थे.
पिछले साल अमेरिका और पाकिस्तान के बीच एक अनौपचारिक समझौता हुआ था, जबकि प्रधानमंत्री नवाज शरीफ तालिबान के साथ बातचीत भी करना चाहते हैं. इसके लिए सौहार्द्रपूर्ण माहौल की जरूरत है. हालांकि पिछले हफ्ते ही पाकिस्तानी सेना के हमले में उत्तरी वजीरिस्तान में 60 लोग मारे गए.
अमेरिकी अधिकारियों का कहना है कि सीआईए के ड्रोन अब भी अल कायदा के बड़े नेताओं की तलाश कर रहे हैं, जिनमें उनका मुखिया आयमान अल जवाहिरी भी शामिल है. "जैसे ही वैसे किसी निशाने के बारे में पक्की जानकारी मिलेगी, बटन दबा दिया जाएगा."
एजेए/एमजे (एपी)