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समाज

पाकिस्तान: महिलाओं की मदद के लिए महिलाओं की तैनाती

९ फ़रवरी २०२१

अपने साथ हुई ज्यादती की शिकायत लिखाने पुलिस थाने जाएं भी तो वहां पुरुषों से घिर जाने का डर सताता है. इसीलिए पाकिस्तान अब पुलिस में महिलाओं की भर्ती बढ़ा रहा है.

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Pakistan | Frauen bei der Polizei in Pakistan
तस्वीर: Abdul Majeed/AFP

पाकिस्तान में महिलाओं के खिलाफ हिंसा नई बात नहीं. पिछले साल बलात्कार के कई मामले वहां सुर्खियों में रहे. लेकिन महिला अधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि जिन मामलों पर बात हो रही है, वे असल संख्या के सामने कुछ भी नहीं है. पाकिस्तान में महिलाओं के खिलाफ हिंसा के ज्यादातर मामले रिपोर्ट नहीं किए जाते. अधिकतर महिलाएं ही ऐसा करने में संकोच करती हैं.

बदनामी का डर एक तरफ है लेकिन साथ ही उन्हें न्याय ना मिलने का डर भी सताता है क्योंकि पुलिस स्टेशन और कचहरी में मर्दों का ही सामना करना होता है. मामले की जांच के दौरान पुलिस स्टेशन में भी उत्पीड़न की खबरें आती हैं. ऐसे में महिला अधिकार कार्यकर्ताओं की मांग हैं कि बलात्कार पीड़ितों के लिए खास कोर्ट बनाए जाएं, जहां वे सुरक्षित महसूस करें. साथ ही उनकी यह मांग भी है कि महिला पुलिसकर्मियों और महिला जजों की संख्या बढ़ाई जाए. पाकिस्तान की कुल पुलिस फोर्स में महिलाओं की संख्या मात्र 1.8 प्रतिशत ही है.

फोन पर ही रिपोर्ट लिखवाएं महिलाएं

रावलपिंडी शहर के डीआईजी मुहम्मद एहसान यूनुस ने डॉयचे वेले से बातचीत में बताया, "हमारे यहां थानों में बहुत ज्यादा महिलाकर्मी तो नहीं हैं लेकिन हमारे सीनियर अफसरों को काफी अच्छी ट्रेनिंग हासिल है. पर साथ ही हमें महिला पुलिसकर्मियों को सशक्त करने की भी जरूरत है."

डीआईजी यूनस ने ऐसे कई प्रॉजेक्ट चलाए हैं जिनका नेतृत्व महिला पुलिसकर्मी कर रही हैं. रावलपिंडी और आसपास के इलाके की महिलाएं एक टोल फ्री नंबर पर कॉल कर यौन उत्पीड़न या घरेलू हिंसा की शिकायत दर्ज करा सकती हैं. इसके लिए उन्हें पुलिस स्टेशन जाने की जरूरत नहीं पड़ती. एफआईआर दर्ज हो जाने के बाद महिला पुलिसकर्मी पीड़िता से मुलाकात करने आती है.

पाकिस्तान में नाबालिग लड़कियों का जबरन धर्मांतरण

इस हेल्पलाइन का काम संभाल रही 29 वर्षीय आमना बेग का कहना है कि महिलाओं के लिए शिकायत लिखवाना आसान नहीं होता, "समाज में जिस तरह की धारणाएं हैं, उनके चलते वे रिपोर्ट लिखवाने के बारे में सोचती भी नहीं हैं. पाकिस्तान में महिलाओं का थाने जाना आज भी वर्जित है. हमारी हेल्पलाइन उनकी पहचान सुरक्षित रखती है ताकि उन्हें कोई दिक्कत ना हो."

इस हेल्पाइन को 8 दिसंबर 2020 को शुरू किया गया था और तब से अब तक दर्जनों महिलाएं यहां फोन कर चुकी हैं. रावलपिंडी पुलिस के अनुसार अब तक औपचारिक रूप से 25 एफआईआर भी दर्ज की जा चुकी हैं. पुलिस रिकॉर्ड्स के अनुसार 52 प्रतिशत कॉल छेड़छाड़ के कारण, 12 प्रतिशत यौन उत्पीड़न के कारण और 36 प्रतिशत घरेलू हिंसा को ले कर की गई. हालांकि यह भी सच है कि लड़कियों ने हिम्मत दिखा कर फोन तो किया पर ज्यादातर मामलों में परिवार के दबाव में आ कर औपचारिक रूप से शिकायत नहीं लिखवाई.

बदल रहा है पाकिस्तान

बेग को उम्मीद है कि आने वाले सालों में ज्यादा से ज्यादा संख्या में महिलाएं पुलिस में भर्ती होंगी, "मैं पाकिस्तान के एक पारंपरिक घराने से नाता रखती हूं. मेरे घर में अगर किसी महिला को कभी पुलिस की जरूरत पड़ती है, तो घर का कोई ना कोई मर्द उसमें दखल दे देता है. पाकिस्तान में महिलाएं बिना किसी चिंता के स्कूल या अस्पताल जाती हैं क्योंकि वहां और भी महिलाएं होती हैं. इसलिए मैंने सोचा कि अगर मैं पुलिस में शामिल हो जाऊंगी तो महिलाओं को पुलिस के पास आना भी आसान लगेगा."

ट्विटर पर बेग के 80,000 से ज्यादा फॉलोवर हैं. वे पाकिस्तान में हो रहे बदलाव की मिसाल हैं. लेकिन कुछ दशकों पहले महिलाओं का पुलिस में भर्ती होना बेहद मुश्किल था. एसएचओ शाहिदा यासमीन बताती हैं, "मैं जिस जमाने में पुलिस फोर्स से जुड़ी थी, उस वक्त तो लोगों ने इस बारे में सुना भी नहीं था. मुझे यह देख कर खुशी होती है कि अब ऐसा नहीं रहा."

उस जमाने को याद करते हुए वह बताती हैं, "कई बार तो हमारे सहकर्मी ही हमें परेशान करते थे और हम कुछ नहीं कर पाती थीं. अब पुरुष पुलिसकर्मियों में बदलाव आया है, अब वे हमें इज्जत भरी नजरों से देखते हैं." यासमीन अब एक करियर काउंसलिंग सर्विस शुरू करने जा रही हैं, जहां वे युवा लड़कियों को पुलिस से जुड़ने के लिए प्रोत्साहित करेंगी. इन छोटे छोटे कदमों के साथ पाकिस्तान बदलाव की राह पर चल रहा है. 

रिपोर्ट: मावरा बारी (इस्लामाबाद)

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