पत्रकारों पर हमलों की जांच की मांग
२ नवम्बर २०१४रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स पत्रकारों के मानवाधिकारों की रक्षा करने वाली संस्था है. उसने मीडियाकर्मियों की हत्या की जांच करने और अपराधियों को सजा देने के लिए अंतरराष्ट्रीय प्रयास बढ़ाने की मांग की है. इस साल से 2 नवंबर को पत्रकारों के खिलाफ अपराधियों पर कार्रवाई न करने के खिलाफ अंतराराष्ट्रीय दिवस मनाया जा रहा है.
बर्लिन में रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स ने इस बात की ओर ध्यान दिलाया है कि बहुत से देशों में हत्या और अपहरण के शिकार पत्रकारों के न्याय दिलाने के लिए अपराधियों के खिलाफ कोई भरोसेमंद कार्रवाई नहीं होती. पत्रकारों की अंतरराष्ट्रीय संस्था के अनुसार 2013 में दुनिया भर में कम से कम 80 मीडियाकर्मी काम करते हुए मारे गए. इस साल अब तक 56 पत्रकार काम के दौरान मारे गए हैं. रिपोर्ट्रस विदाउट बॉर्डर्स के अनुसार "बहुत सी सरकारें अपनी इस अंतरराष्ट्रीय कानून में निहित जिम्मेदारी को नजरअंदाज करती हैं कि पत्रकार स्वतंत्र रूप से और हमले या कानूनी कार्रवाई के भय के बिना अपना काम कर सकें."
रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स के प्रवक्ता मिषाएल रेडिस्के की मांग हैं, "खास तौर पर खतरे में पड़े पत्रकारों के लिए प्रभावी सुरक्षा कार्यक्रमों और हिंसक अपराध की स्थिति में स्वतंत्र जांच और अदालती कार्रवाई की जरूरत है." अंतरराष्ट्रीय पत्रकार संगठन ने दस मिसालें दी हैं. एक मामला बहरीन में टेलिविजन चैनल प्रांस 24 की रिपोर्टर नसीहा सईद का है. 2011 के अरब वसंत के दौरान वे सरकार विरोधियों और पत्रकारों के खिलाफ बहरीन सरकार की बर्बर कार्रवाई का शिकार बनीं.
रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स के अनुसार रइफा में एक पुलिस चौकी पर पूछताछ के दौरान उन्हें कई घंटों तक बर्बरता से पीटा गया और अपमानित किया गया. ग्यारह घंटों के बाद उन्हें एक कागज पर जबरन दस्तखत करवाकर छोड़ा गया जिसे उन्हें पढ़ने भी नहीं दिया गया. सईद ने उन्हें यातना देने वाले पांच पुलिसकर्मियों की शिनाख्त कर ली लेकिन उन्हें मुकदमे में बरी कर दिया गया. मानवाधिकारों के हनन पर रिपोर्ट लिखने वाले रूस के अहमदनबी अहमदनबीयेव भी अपने पेशे के कारण निशाने पर आ गए. उन्हें इसकी कीमत अपनी जान देकर चुकानी पड़ी. जनवरी 2013 में हमले का निशाना बनने के बावजूद उन्हें सुरक्षा नहीं दी गई.
सच को सामने लाने वाले पत्रकारों के खिलाफ कानूनी हथियारों का भी इस्तेमाल किया जाता है. उन्हें कई बार मानहानि जैसे और दूसरे आपराधिक कानूनों के जरिए रोकने की कोशिश की जाती है. भारत में खासकर राजनीतिज्ञों द्वारा मानहानि कानून के बढ़ते दुरुपयोग के बाद सुप्रीम कोर्ट ने प्रेस स्वतंत्रता पर इसके असर पर विचार करने का फैसला लिया है.
एमजे/आईबी (डीपीए)