नोट पर लिखना मना
२८ दिसम्बर २०१३इससे पहले नोटों को कटने फटने से बचाने के लिए बैंक ने उनके बंडल को स्टेपल नहीं करने का निर्देश दिया था. आम लोगों में नोट पर लिखने की आदत पर अंकुश लगाने के लिए बैंक अब जागरूकता अभियान चलाने की भी बात कह रहे हैं. तारीख नजदीक आने के साथ सोशल मीडिया में कई जगह कहा जा रहा है कि बैंक लिखे हुए नोट स्वीकार नहीं करेंगे. लेकिन रिजर्व बैंक ने इन अफवाहों का खंडन किया है.
रिजर्व बैंक की नीति
देश के केंद्रीय बैंक (रिजर्व बैंक) ने इस साल अगस्त में तमाम बैकों को एक नोटिस जारी कर कहा था कि प्रबंधन अपने कर्मचारियों में नोटों पर लिखने की आदत पर रोक लगाए. खास कर कैशियर नोटों के बंडल पर उनकी तादाद लिख देते हैं. बैंकों से कहा गया है कि वह ग्राहकों से ऐसे नोट लेना जारी रखें. लेकिन उनको दोबारा किसी ग्राहक को न दें. ऐसे नोटों को रिजर्व बैंक में भेज दिया जाएगा जो उनको नष्ट कर उनकी जगह नए नोट जारी करेगा. वैसे रिजर्व बैंक की इस नीति पर सवाल भी उठ रहे हैं.
कोलकाता में एक बैंक अधिकारी ने सवाल किया कि जब तक ग्राहकों में नोटों पर नाम पता, फोन नंबर और किसी राजनीतिक दल के नारे लिखने की प्रवृत्ति पर अंकुश नहीं लगाया जाता तब तक स्वच्छ नोट नीति को पूरी तरह लागू करना संभव नहीं है. बैंकों का कहना है कि ऐसे नोटों को बदलने के लिए ग्राहकों को कुछ कमीशन देना पड़ सकता है. रिजर्व बैंक ने भी कहा है कि अगर कोई ग्राहक बैंक के कर्मचारी के सामने ही नोट पर कुछ लिखता है तो बैंक उस नोट को लेने से इनकार कर सकता है ताकि उस ग्राहक को भविष्य में नोट पर कुछ भी नहीं लिखने का सबक मिले. ऐसे कई मामलों में बैंक नोटों को बदलने से इनकार कर सकते हैं.
पुरानी आदत
भारतीय रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर केसी चक्रवर्ती कहते हैं, "हमारी कोशिश लोगों में यह जागरूकता पैदा करने की है कि वे नोटों पर कुछ न लिखें और उन्हें साफ सुथरा रखें. बैकों को भी इस बात की खास हिदायत दी गई है." बैंक ने इसके लिए बाकायदा प्रचार अभियान चलाने का फैसला किया है. चक्रवर्ती कहते हैं कि नोटों पर लिखने से उनकी उम्र कम हो जाती है. साफ सुथरे नोट लंबे समय तक चल सकते हैं.
समाज विज्ञानियों का कहना है कि नोटों पर नाम लिखने की परंपरा देश में बहुत पुरानी है. पुराने जमाने में राजा महाराजा अपने राज्य में चलने वाले नोटों और सिक्कों पर तस्वीर बनवाते थे और नाम लिखवाते थे ताकि उनका नाम हमेशा चलते रहे. समाज विज्ञानी प्रदीप चक्रवर्ती कहते हैं, "देश में हर दौर में तमाम राजा महाराजा ऐसा करते रहे हैं. शायद यही वजह है कि आम लोग भी नोटों पर अपने नाम पते और फोन नंबर जैसी चीजें लिखते हैं. लोग नोट के सफेद हिस्से को अमूमन रफ पैड की तरह इस्तेमाल करते हैं जिस पर कुछ भी लिखने की आजादी होती है."
आर्थिक नुकसान
बार बार लिखने से खराब हो चुके नोटों को नष्ट कर रिजर्व बैंक उनकी जगह नए नोट बाजार में छोड़ता है. बैंक के आंकड़ों के मुताबिक, पिछले वित्त वर्ष के दौरान ऐसे 14 अरब नोट नष्ट कर उनकी जगह नए नोट बाजार में उतारे गए थे. अब भी ऐसे 73.5 अरब नोट प्रचलन में हैं जिनकी कीमत 1160 करोड़ रुपये है. रिजर्व बैंक के एक अधिकारी बताते हैं, "सरकार को ऐसे नोटों की वजह से हर साल 2,638 करोड़ रुपये का नुकसान होता है." बैंकिंग अधिनियम के तहत नोट पर लिखना अपराध है. लेकिन लोग हैं कि मानते नहीं. अब रिजर्व बैंक की ताजा पहल के बाद शायद नए साल में आपके हाथों में ऐसे नोट नहीं आएंगे जिन पर किसी का नाम, पता या फोन नंबर लिखा हो.
रिपोर्ट: प्रभाकर, कोलकाता
संपादन: अनवर जे अशरफ