नेट न्यूट्रेलिटी पर फैसला मील का पत्थर
९ फ़रवरी २०१६भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण के इस फैसले से जहां फ्री बेसिक्स के पक्ष में मुहिम चला रही फेसबुक जैसी कंपनियों को करारा झटका लगा है, वहीं इस फैसले पर बहस भी शुरू हो गई है.
ट्राई का फैसला
ट्राई ने कहा है कि मोबाइल कंपनियां सामग्री के आधार पर अलग-अलग शुल्क नहीं वसूल सकतीं. ट्राई के चेयरमैन आरएस शर्मा ने कहा कि कोई भी सर्विस प्रोवाइडर कंटेंट के आधार पर डेटा सामग्री के लिए न तो अलग-अलग शुल्क वसूलेगा और न ही ऐसी कोई पेशकश करेगा. उन्होंने दलील दी कि इंटरनेट पर उपलब्ध सामग्री के लिए अलग-अलग मूल्य नहीं रखा जा सकता. यही एक बड़ा बिंदु है जिसे नियमन में रेखांकित किया गया है. नए नियम सोमवार से ही लागू हो गए हैं. नए नियम लंबे समय से नेट न्यूट्रेलिटी पर जारी बहस के बीच आए हैं. ट्राई ने इस आदेश का उल्लंघन करने वाली कंपनियों पर रोजाना 50 हजार रुपए के जुर्माने की भी सिफारिश की है.
फेसबुक को झटका
ट्राई के इस फैसले को फेसबुक जैसी उन कंपनियों के लिए करारा झटका माना जा रहा है जो भारत में फ्री बेसिक्स के पक्ष में मुहिम चला रही थी. मोबाइल सेवा प्रदाता कंपनी एयरटेल भी अपनी ऐसी ही योजना के लिए आलोचकों के निशाने पर है. फ्री बेसिक्स के तहत चुनिंदा वेबसाइटों के मुफ्त इस्तेमाल की अनुमति दी जाती है. आलोचकों का कहना है कि यह नेट निरपेक्षता की समान पहुंच की अवधारणा के खिलाफ है. फेसबुक ने ट्राई के फैसले पर निराशा जताते हुए कहा है कि उसका इरादा फ्री बेसिक्स के जरिए अधिक से अधिक लोगों को इंटरनेट से जोड़ने का था. उसने अपनी योजना की कमियां दूर कर इस दिशा में प्रयास जारी रखने की भी बात कही है.
स्वागत
देश के ज्यादातर तकनीकी संस्थानों और नई स्टार्टअप कंपनियों ने ट्राई के फैसले का स्वागत किया है. इससे पहले ट्राई ने जब नेट निरपेक्षता के मुद्दे पर सुझाव मांगे थे तो उसे आईआईटी समेत विभिन्न संस्थानों की ओर से इसके समर्थन में लाखों पत्र भेजे गए थे. उनके आधार पर प्राधिकरण ने इस मुद्दे पर अपना फैसला सुनाया है. शीर्ष व्यापार संस्था नैसकॉम ने इस फैसले का समर्थन करते हुए कहा है कि इससे स्टार्टअप्स को काफी सहायता मिलेगी. नेट न्यूट्रेलिटी के समर्थकों का कहना है कि इससे तमाम कंपनियों को समान मौके मिलेंगे. बड़ी कंपनियां अपनी पहुंच व प्रभाव का लाभ उठा कर छोटे सर्विस प्रोवाइडरों को दबा नहीं सकतीं.
नेट की आजादी पर सवाल
मोटे आंकड़ों के मुताबिक, भारत में कोई पांच करोड़ लोग मोबाइल पर इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं. ट्राई के फैसले पर सोशल मीडिया में बहस छिड़ गई है. कुछ लोग दलील दे रहे हैं कि दूरदराज के इलाकों में लोग कुछ वेबसाइटें मुफ्त में देख सकते थे. लेकिन अब वह ऐसा नहीं कर सकते. लेकिन फिलहाल इस मुद्दे पर छिड़ी बहस के बीच ज्यादातर लोग ट्राई के फैसले का ही समर्थन कर रहे हैं. समर्थकों की दलील है कि फ्री बेसिक्स भारत में नेट की आजादी के लिए खतरा साबित हो सकती थी. इसके तहत लोगों को कुछ खास वेबसाइट्स और सामग्री ही मुहैया कराई जाती.
यानी फेसबुक अपने भारतीय सहयोगियों के साथ मिल कर लोगों पर मनचाही सामग्री थोपने की मुहिम चला रहा था. समर्थकों का कहना है कि इंटरनेट आज अपने आप में सार्वजनिक सेवा बन चुका है. इसलिए इस तक पहुंच में कोई भेदभाव आम आदमी की निजता, समान अवसर के अधिकार और अभिव्यक्ति की आजादी का हनन है. फ्री बेसिक्स को इंटरनेट की आजादी की मूल भावना के ही खिलाफ बताया जा रहा है. ऐसे में नेट की आजादी बरकरार रखने की दिशा में ट्राई का यह फैसला मील का पत्थर साबित हो सकता है.