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नीदरलैंड्स के 'नहीं' से संकट में ईयू

७ अप्रैल २०१६

नीदरलैंड्स में हुए एक जनमत संग्रह में डच मतदाताओं ने यूक्रेन के साथ एक महत्वपूर्ण यूरपीय समझौते को ​ठुकरा दिया है. इस जनमत संग्रह को यूरोपीय संघ विरोधी भावना को परखने की तरह भी देखा जा रहा था. ​

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Niederlande Abstimmung EU-Abkommen mit Ukraine
तस्वीर: picture-alliance/dpa/B. Maat

डच समाचार ऐजेंसी एनपी का कहना है कि कुल पड़े 99.8 प्रतिशत मतों में से 'नहीं' के पक्ष में 61.1 प्रतिशत वोट डाले गए. जबकि महज 38 प्रतिशत वोट ईयू यूक्रेन समझौते के पक्ष में पड़े. नीदरलैंड्स के प्रधानमंत्री मार्क रुटे ने जनमत संग्रह के फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, ''इस मतदान में 'नहीं' पक्ष आसानी से जीत गया है.''

इस जनमत संग्रह में मतदाताओं से पूछा गया था कि क्या वे यूरोपीय संघ के यूक्रेन के साथ हुए समझौते का समर्थन करते हैं. इस समझौते का मकसद सोवियत संघ का हिस्सा रहे और युद्ध झेल रहे यूक्रेन के साथ व्यापार संबंधों को दुरुस्त करना था.

Niederlande Referendum EU Ukraine
'नहीं' के पक्ष में 61.1 प्रतिशत वोट डाले गएतस्वीर: Reuters/M. Kooren

65 साल के एक मतदाता निक टाम कहते हैं, ''मैंने इसलिए विरोध में वोट किया क्योंकि मुझे नहीं लगता कि यह समझौता नीदरलैंड्स के लिए ठीक है. यहां पहले से ही बहुत सारे देश हैं.''

उधर देर शाम धुर दक्षिणपंथी डच सांसद ग्रीट विल्डर्स ने जनता को संबोधित करते हुए कहा, ''ऐसा लगता है कि डच लोगों ने यूरोप के अभिजात्य वर्ग को 'नहीं' कहा है. उसने यूक्रेन के साथ समझौता करने को 'नहीं' कहा है. यह यूरोपियन यूनियन के अंत की शुरुआत है.''

इस महत्वपूर्ण मतदान पर यूरोप और रूस की खासी नजर थी. साथ ही यह ब्रिटेन के लिए भी इसलिए अहम था क्योंकि जून में वहां 'ब्रेक्जिट' को लेकर जनमत संग्रह होना है.

दक्षिणपंथ के उभार के संकेत

डच का यह 'नहीं' यूरोपीय संघ के लिए एक बड़ा सिरदर्द साबित हो सकता है क्योंकि इससे ब्रिटेन के यूरोपीय संघ से अलग होने के ​विचार को बल मिलेगा. यूरोपीय संघ के सभी 28 देशों में से अब नीदरलैंड्स ही एकमात्र ऐसा देश है जिसने यूक्रेन समझौते को मंजूर नहीं किया है. हालांकि जनमत संग्रह से पहले ही डच संसद के दोनों ही सदन इसे लेकर सहमति जता चुके हैं.

Niederlande stimmen über Ukraine-Abkommen ab
नीदरलैंड्स के प्रधानमंत्री मार्क रुटेतस्वीर: picture-alliance/dpa/B. Maat

इन परिणामों के बाद प्रधानमंत्री मार्क रुटे यह कहने को मजबूर हुए हैं, ''अगर इन परिणामों में 30 प्रतिशत से भी अधिक का फासला है तो इस समझौते को ऐसे ही पुष्टि नहीं दी जा सकती.'' चुनावों से पहले उन्होंने मतदाताओं से अपील की थी कि वे यूक्रेन के साथ इस समझौते के पक्ष में मतदान करें. उन्होंने कहा था, ''यूरोप को इसके किनारों पर और अधिक मजबूत होने की जरूरत है.''

इस परिणाम के बाद भी अभी यह पूरी तरह स्पष्ट नहीं हुआ है कि अब आगे क्या होना है, क्योंकि प्रधानमंत्री अब तक 'कदम दर कदम' इस समझौते के लिए प्रतिबद्ध दिखाई दिए हैं. आधिकारिक तौर पर यह फैसला अब 12 अप्रैल के लिए लंबित है.

संभावना जताई जा रही है कि पहले से ही शरणार्थी संकट से जूझ रही नीदरलैंड्स की गठबंधन सरकार अपने मतदाताओं को संतुष्ट करने के लिए ईयू यूक्रेन समझौते के कुछ प्रावधानों को हटाए जाने का रास्ता तलाशेगी. इसका एक परिणाम यह भी हो सकता है कि श​रणार्थियों के विरोध के चलते पहले से ही समर्थन पा रही विल्डर्स की फ्रीडम पार्टी को और ज्यादा उभार का मौका मिले.

आरजे/आईबी (एएफपी)