1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

नींद है सेहत की कुंजी

२० फ़रवरी २०१४

दुनिया भर के 15 करोड़ लोग नींद से जुड़ी बीमारियों के शिकार हैं, जबकि विकसित देशों में 10 फीसदी लोग पूरी नींद नहीं ले पाते. डॉयचे वेले ने इसे साबित करने के लिए एक प्रयोग किया.

https://p.dw.com/p/1BBu2
Symbolbild Jugendliche Schönheitsoperation
तस्वीर: imago/McPHOTO

युवा रिपोर्टर डानियेला श्पेथ ने तय किया कि वह डेढ़ दिन यानी 36 घंटे तक नहीं सोएंगी. इस दौरान उन्होंने बार बार टेस्ट कराने का फैसला किया. डानियेला के लिए इतने लंबे वक्त तक जागना बड़ी चुनौती है. उनका कहना है, "पहले भी मैं एक बार रात भर जागी लेकिन सुबह सो गई."

सुबह सुबह डानियेला ने 10 मिनट के टेस्ट में हिस्सा लिया. उनका रिएक्शन सामान्य है और सारे अंग अच्छे से काम कर रहे हैं. ऐसा ही टेस्ट एक दिन बाद भी होगा. नींद की बीमारी का इलाज करने वाले जर्मन डॉक्टर लेनार्ट क्लाक बताते हैं, "नींद पूरी न होने से दो तरह की परेशानियां आ सकती हैं. एक तो आपके दिल में ख़ून का बहाव ठीक नहीं होगा या मेटाबॉलिस्म यानी पाचन से जुड़ी बीमारियां, डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर या दिल का दौरा पड़ेगा. हो सकता है कि आप डिप्रेस हो जाएं या आपको भ्रम होने लगे. नींद पूरी नहीं होने से इस तरह की बीमारियां हो सकती हैं."

अमेरिका की एक सेहत पत्रिका में तीन साल पहले छपी रिपोर्ट के मुताबिक कम सोने से वजन बढ़ने का भी खतरा रहता है और पाचन तंत्र भी बुरी तरह प्रभावित होता है. स्वीडन की उपसाला यूनिवर्सिटी के रिसर्चर क्रिस्टियान बेनेडिक्ट ने 14 लोगों की टीम बनाई, जिन्हें कम सोने दिया गया. डानियेला की ही तरह. पाया गया कि इस टीम के लोगों में ब्लड प्रेशर, खुराक, हॉर्मोन का लेवल और पाचन तंत्र बिगड़ गया. ऊर्जा की खपत भी पांच से 20 फीसदी घट गई.

Symbolbild Adipositas Fettleibigkeit
कम सोने से ब्लड प्रेशर, खुराक, हॉर्मोन का लेवल और पाचन तंत्र बिगड़ जाता हैतस्वीर: picture alliance/AP Photo

बेनेडिक्ट कहते हैं, "नतीजों से साफ है कि रात भर नहीं सोने से स्वस्थ इंसान के शरीर में ऊर्जा की खपत घटती है. यानि सोने से ऊर्जा की खपत पूरी की जा सकती है." अमेरिकी रिसर्च बताती है कि सड़कों पर हादसे की बहुत बड़ी वजह फैटिग यानी कमजोर रिएक्शन है. 2007 में 10,000 लोगों पर रिसर्च की गई, जिन्हें कम नींद आती है, तो पता चला कि उनके अवसाद में जाने की संभावना आम लोगों से पांचगुना है. ब्रिटेन की एक रिसर्च तो बताती है कि बहुत कम सोने से जान जाने तक का खतरा होता है.

अमेरिका ही नेशनल स्लीप फाउंडेशन ने सोने का फॉर्मूला निकाला है, जिसके मुताबिक दो महीने तक के बच्चों को 12-18 घंटे सोना चाहिए, तीन से 11 महीने तक के बच्चों को 14-15 घंटे. इसके बाद तीन साल तक के बच्चों को रोजाना 12-14 घंटे और पांच साल तक उन्हें 13 घंटे सोने देना चाहिए. पांच से 10 साल तक के बच्चे अगर रोजाना 11-13 घंटे सोएं, तो बेहतर है, जबकि एक बालिग व्यक्ति यानि 18 साल से ज्यादा उम्र के व्यक्ति को सात से नौ घंटे की नींद चाहिए.

उधर, 30 घंटे जगने के बाद डानियेला दोबारा क्लिनिक पहुंचती हैं, टेस्ट कराने के लिए. पहले जो प्रतिक्रिया देने में उन्हें सिर्फ 220 मिलिसेकंड लगे थे, उसमें इस बार उन्हें 450 मिलिसेकंड से भी ज्यादा लगे. उन्हें लिटा कर पांच मिनट का टेस्ट करना था और इस दौरान डानियेला को जगे रहना था. लेकिन दो तीन मिनट में ही वह खर्राटे भरने लगीं.

रिपोर्टः बिर्गिटे बोटशर/एजेए

संपादनः आभा मोंढे

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें

इस विषय पर और जानकारी