नहीं रहे नई धारा के फिल्मकार क्लोद शाब्रोल
१३ सितम्बर २०१०फिल्म शूटिंग को स्टूडियो के दायरे से आज़ाद करने की जो शुरुआत सत्यजित रे ने की थी, क्लोद शाब्रोल ने उसे एक नई पराकाष्ठा तक पहुंचाया. फिल्म आलोचना के जगत से वे फिल्म निर्माण तक पहुंचे, और 1958 में ब्लैक ऐंड ह्वाइट में अपनी पहली फिल्म ले बो सर्ज या खूबसूरत सर्ज के साथ ही उन्हें काफी शोहरत मिली. यह थी फिल्म जगत में एक नई धारा द न्यू वेव की शुरुआत.
क्लोद शाब्रोल की एक और खासियत थी शहरी बुर्जुआ वर्ग, उसकी विसंगतियों को माइक्रोस्कोप के नीचे धरते हुए सिनेमा के पर्दे पर उसे उजागर करना. द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद जब यथार्थवाद को आंटी समझा जाने लगा था, उन्होंने उसे एक नया तात्पर्य दिया. अपनी फिल्मों में वे जाने माने स्टार्स को नहीं लेते थे, लेकिन ये ऐक्टर या ऐक्ट्रेस फिर स्टार बन जाते थे. यहां भी सत्यजित रे याद आ जाते हैं, मसलन बंगला के अभिनेता सौमित्र, या हिंदी और बंग्ला में शर्मिला टैगोर.
अपनी पहली पत्नी की मौत के बाद मिली विरासत से शाब्रोल ने पहली फिल्म बनाई, उससे मिले पैसे से अगली फिल्म, और यह सिलसिला जारी रहा. सफलता की एक वजह यह थी कि त्रुफो या गोदार की तरह वे खास किस्म के नहीं थे, और नई धारा के दायरे में यही उनकी खासियत थी, और मुसीबत भी. आलोचक उनकी धाक मानने से अक्सर कतराते थे. लेकिन शाब्रोल पार्टी देने में माहिर थे, और पार्टी की मस्ती के बाद आलोचकों का मुंह भी बंद हो जाता था. वैसे इससे आलोचकों को ही फायदा हुआ, क्योंकि बुद्धिजीवियों के दायरे से कहीं परे तक दर्शकों ने उनकी फिल्मों को सराहा. शाब्रोल ने इस सिद्धांत को प्रतिष्ठित किया कि अच्छी आलोचना अच्छी रचना पर जीती है.
थ्रिलर को गंभीर कला के रूप में प्रतिष्ठित करने में शाब्रोल की कोई सानी नहीं थी. शाब्रोल ने आलफ्रेड हिचकॉक का एक गंभीर अध्ययन प्रस्तुत किया था. हिचकॉक से वे अत्यंत प्रभावित थे, और उनके विषय शाब्रोल की फिल्मों में साये की तरह मंडराते रहे. थ्रिलर में छिपे धार्मिक तत्वों को उजागर करना शाब्रोल का एक अनोखा योगदान रहा है.
शाब्रोल इकतारा बजाते थे, या आर्केस्ट्रा के कंडक्टर? इस पर बहस जारी रहेगी. वे अब नहीं रहे, उनकी फिल्में रह गई हैं. इस सवाल का जवाब उन्हीं में मिलेगा.
रिपोर्ट: उज्ज्वल भट्टाचार्य
संपादन: ओ सिंह