नशे में बनाए अपने पोर्ट्रेट
एक अमेरिकी कलाकार ने खुद अपने पोर्ट्रेट अलग अलग ड्रग्स का सेवन कर बनाए. सभी के बीच जो अंतर है वह देखने लायक है...
अपना ही पोर्ट्रेट (मॉर्फीन)
कला के नाम पर खुद को अलग अलग ड्रग्स पर रखना पागलपन जैसा लगता है. 2001 में अमेरिकी कलाकार ब्रायन लुइस सॉन्डर्स ने ऐसा ही किया. इस प्रोजेक्ट की शुरुआत 20 साल पहले हुई और उन्होंने तय किया कि वह जीवन भर हर रोज किसी एक ड्रग का सेवन कर खुद अपना पोर्ट्रेट बनाएंगे.
नया तजुर्बा (कोकेन)
सॉन्डर्स ने अपनी वेबसाइट पर लिखा कि वह ऐसा अनुभव चाहते थे जिससे खुद अपने बारे में नई बातें पता चलें, और वह कामयाब भी हुए.
सच्चाई से दूर नहीं (एबसिंथ)
सॉन्डर्स ने गैर सरकारी संस्था लाइफ लिंक्स को बताया, "अजनबियों समेत मेरे आसपास के सभी लोग किसी न किसी ड्रग का इस्तेमाल कर रहे हैं. कोई नशे के लिए तो कोई दवाएं ले रहे हैं. हम उस दुनिया से दूर नहीं भाग सकते जिसमें हम रहते हैं. मेरे ख्याल में किसी चीज को नकारने के बजाय उसे पूरे दिल से अपना लेना अच्छा होता है."
उल्टा पुल्टा (एबिलिफी)
यह पोर्ट्रेट अपने आप में अलग है. एबिलिफी वह दवा है जिसका इस्तेमाल अवसाद और स्कित्सोफ्रीनिया जैसी बीमारियों के इलाज में होता है. इसके कई अन्य प्रभाव भी हो सकते हैं. सॉन्डर्स ने बताया, "मुझे बहुत बच्चों जैसा और भावुकतापूर्ण महसूस हुआ. मुझे लग रहा था जैसे मैं उल्टा हो गया हूं और मेरा दिमाग फटकर बाहर आ जाएगा."
बदसूरती (एडेरल)
प्रोजेक्ट शुरू होने के कुछ दिनों के अंदर ही सॉन्डर्स सुस्त महसूस करने लगे. उनके मस्तिष्क को नुकसान पहुंचा था, जिसका इलाज किया गया. उन्होंने महसूस किया, "ज्यादातर ड्रग्स मुझे बदसूरत होने का एहसास कराती हैं. सिवाय एंटीएंक्जायटी दवाओं के." एडेरल का इस्तेमाल हाइपरएक्टिविटी में किया जाता है.
टूटी लकीरें (हेरोइन)
अपने 63 पोर्ट्रेट में से एक सबसे अच्छा चुनना मुश्किल था. एक बार बहुत सारी दूसरी ड्रग्स के साथ जब उन्होंने ढेर सारी खांसी की दवाई पी ली तो वह खुद को बहुत अलग तरह देखने लगे. वह बताते हैं कि इससे वह डर गए.
रचनात्मकता पर असर नहीं (मशरूम)
सॉन्डर्स के प्रोजेक्ट में यह तस्वीर खास है. इसके बाद उन्होंने कहा, "इन ड्रग्स ने मुझे रचनात्मता नहीं दी, वह मुझमें पहले से थी. दवाएं उस रचनात्मकता पर असर जरूर डालती हैं." यह तस्वीर उन्होंने मैजिक मशरूम के असर में बनाई.
गंभीर कला (हैलोपेरिडॉल और एटिवन)
यह सॉन्डर्स का सबसे बड़ा प्रोजेक्ट है. जब लाइफ लिंक्स को इस बारे में पचा चला तो सॉन्डर्स ने बताया कि उनके पास इस तरह के 9,577 पोर्ट्रेट हैं. 2014 में सॉन्डर्स के पूरे काम पर एक डॉक्यूमेंट्री 'द आर्ट ऑफ डार्कनेस' बनी. इस फिल्म को लंदन में दिखाया गया.
नया प्रोजेक्ट (रिसपर्डोल)
सॉन्डर्स कहते हैं, "सैकड़ों सालों से कलाकार खुद को दुनिया के नजरिए से देखने की कोशिश कर रहे हैं. मैं उसका उल्टा कर रहा हूं." हाल में उनका नया प्रोजेक्ट आया जिसके जरिए वह कहते हैं कि लोग डॉक्टर के पास जाए बगैर खुद अपनी बीमारी जान सकते हैं.