1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

नगण्य हैं आतंक की ओर खिंचने वाले

कुलदीप कुमार६ नवम्बर २०१४

भारत में आतंकी हमलों के लिए चरमपंथियों को अल कायदा की ट्रेनिंग की खबरों पर हड़कंप मचा है. कुलदीप कुमार का कहना है कि मुस्लिम युवकों के खिंचाव का कारण यह है कि उन्हें भारत में रोजगार और विकास के आश्वासन पर भरोसा नहीं है.

https://p.dw.com/p/1DiTm
तस्वीर: picture-alliance/dpa

इंडियन मुजाहिदीन और अल कायदा के बीच संपर्क है, अल कायदा इंडियन मुजाहिदीन के सदस्यों को प्रशिक्षण दे रहा है और दोनों मिलकर भारत के खिलाफ भयानक आतंकवादी हमलों को अंजाम देना चाहते हैं, यह कोई ऐसी खबर नहीं जिस पर किसी को भी आश्चर्य हो सकता है. भारतीय खुफिया एजेंसियों को तो इस पर जरा-सा भी अचरज नहीं होना चाहिए क्योंकि काफी समय से इस प्रकार की सूचनाएं छिटपुट ढंग से मिलती रही हैं. भारतीय मुस्लिम युवकों के इराक जाकर आईएसआईएस में शामिल होने की खबर भी आ चुकी है और अब इस बात में कोई शक नहीं रहा है कि काफी समय तक अंतरराष्ट्रीय इस्लामी जिहादी संगठनों के प्रति उदासीन रहने के बाद अब भारत के मुस्लिम युवक भी उनकी ओर खिंचने लगे है.

इसका एक बहुत बड़ा कारण यह है कि भारतीय लोकतंत्र उन्हें यह आश्वस्ति देने में विफल रहा है कि संविधान के अंतर्गत उन्हें एक धर्मनिरपेक्ष देश में जो समान अधिकार और शिक्षा, रोजगार और विकास के अवसर दिये गए हैं, वे उन्हें वास्तव में मिलेंगे. उन्हें तो यह आश्वस्ति भी नहीं दी जा सकी है कि उनका जान-माल सुरक्षित है और वे समाज में सिर उठा कर जी सकते हैं. भारत में मुस्लिम आतंकवाद का इतिहास बाबरी मस्जिद के ध्वंस से जुड़ा है जिसके तत्काल बाद मुंबई में सांप्रदायिक दंगे और उसके बाद आतंकवादी बम विस्फोट हुए.

Afghanistan Angriff auf das Konsulat Indiens in Herat 23.05.2014
अफगानिस्तान में भी भारतीय लक्ष्यों पर हमलातस्वीर: DW/H. Hasimi

2002 में गुजरात में हुई मुस्लिमविरोधी हिंसा ने इस असुरक्षा की भावना को और मजबूत किया और मुस्लिम समुदाय में यह विश्वास जोर पकड़ता गया कि वर्तमान व्यवस्था में उन्हें न्याय नहीं मिल सकता. पिछले वर्ष मुजफ्फरनगर में हुए सांप्रदायिक दंगों और उसके बाद से लगातार बढ़ रहे सांप्रदायिक तनाव ने इस असुरक्षा की भावना को और बढ़ाया है. कुछ ही दिन पहले देश की राजधानी दिल्ली की त्रिलोकपुरी में सांप्रदायिक हिंसा हुई और उसके तत्काल बाद बवाना में एक महापंचायत ने मुहर्रम के जुलूस पर रोक लगा दी. जब प्रशासन के हस्तक्षेप के बाद वह निकला भी तो उसका आकार काफी छोटा और रास्ता बदला हुआ था.

इन सब घटनाओं से मुस्लिम समुदाय में यह विचार पनपता जा रहा है कि उसे दबाया जा रहा है. जाहिर कि किशोर और युवा इस माहौल से सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं. जिहादी संगठनों से जुड़े लोगों को ऐसे ही माहौल की तलाश रहती है क्योंकि तब वे युवाओं के बीच अपना प्रचार अधिक आसानी के साथ कर सकते हैं. यह बात किसी से छिपी नहीं है कि पाकिस्तानी सेना की शक्तिशाली खुफिया एजेंसी आईएसआई की छत्रछाया में आज भी वहां अनेक आतंकवादी संगठन फल-फूल रहे हैं. जिन आतंकवादी संगठनों के निशाने पर भारत है, उनके साथ उसके घनिष्ठ संबंध हैं. पिछले कुछ वर्षों के दौरान उन आतंकवादी संगठनों के साथ उसका विरोध शुरू हुआ है जो अफगानिस्तान की सीमा पर सक्रिय हैं लेकिन आईएसआई की छत्रछाया में ही अल कायदा का वर्तमान अमीर आयमान अल-जवाहिरी पाकिस्तान में छुपा हुआ है.

सितंबर में कराची स्थित नौसैनिक अड्डे पर हुए हमले से ठीक पहले अल जवाहिरी ने एक वीडियोटेप जारी करके घोषणा की थी कि भारतीय उपमहाद्वीप में इस्लामी हुकूमत की पुनर्स्थापना के लिए अल कायदा ने एक नया संगठन बनाया है जिसका प्रमुख असीम उमर है. पिछले साल इसी उमर ने भारतीय मुसलमानों को याद दिलाया था कि उन्होंने भारत पर 800 साल राज किया है और अब वक्त आ गया है जब फिर से इस्लामी हुकूमत कायम की जाए. पाकिस्तान-स्थित लश्कर-ए-तैयबा जैसे संगठन अल कायदा के इस लक्ष्य से सहमत हैं. जाहिर है कि किसी भी कच्चे मन के अनुभवहीन मुस्लिम युवा को, जो भारत में असुरक्षित और प्रताड़ित महसूस करता है, यह ख्वाब बहुत आकर्षक और रोमांचक लगेगा. यही हो भी रहा है.

फिर भी भारत के मुस्लिम समुदाय को इसका श्रेय दिया जाना चाहिए कि उसके बीच इस ख्वाब से आकृष्ट होने वाले किशोरों और युवाओं की तादाद नगण्य ही है. दक्षिण एशिया मामलों पर चार-चार अमेरिकी राष्ट्रपतियों के सलाहकार रह चुके ब्रूस रीडेल का मानना है कि वाघा बॉर्डर पर हुए आत्मघाती हमले का उद्देश्य यह जताना है कि आतंकवादी भारतीय सीमा के भीतर घुस कर भी ऐसे हमले करने में सक्षम हैं.