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नक्सल समस्या पर शांति की पहल

५ मई २०१०

नक्सल समस्या का विश्लेषण करने डा. यश पाल, गांधीवादी नारायण देसाई और यूजीसी के पूर्व अध्यक्ष रामजी सिंह की प्रमुखता में बैठक. बीजेपी और कांग्रेस के लगभग 100 समर्थकों ने नारे लगाते हुए बैठक में बाधा डाली.

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तस्वीर: AP

5 मई को अपने क्षेत्र में मशहूर 50 लोग छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में जमा हुए जहां उन्होंने शांति और न्याय के लिए मोर्चे में हिस्सा लिया. उन्होंने छत्तीसगढ़ में गृहयुद्ध जैसी स्थिति पर रोक लगाने की मांग की. इन लोगों में बुद्धिजीवी, वैज्ञानिक, समाजशास्त्री, सामाजिक कार्यकर्ता और गांधीवादी कार्यकर्ता भी शामिल थे. उन्होंने मांग की है कि राज्य के सुरक्षा बलों और माओवादियों के बीच युद्धविराम की घोषणा की जाए. साथ ही राष्ट्रीय स्तर पर विकास पर बात हो जिससे विकास को बरकरार रखा जा सके और अर्थव्यवस्था और राजनीतिक संरचना जनता के अनुकूल हो.

प्रोफेसर यश पाल ने बैठक से पहले एक पत्रकार सम्मेलन के दौरान कहा कि वे पिछले 60 वर्षों में आदिवासियों, किसानों और स्थानीय लोगों की हालत देखकर काफी परेशान हैं. उनके मुताबिक इस हालत के लिए मध्यवर्ग और ताकतवर लोग ज़िम्मेदार हैं. उन्होंने पूछा, "क्या हम पूरे आदिवासी नस्लों को ख़त्म करना चाहते हैं, जैसे अमेरिका ने विकास के नाम पर किया है?"

इससे पहले रायपुर प्रेस क्लब ने कभी भी मानवाधिकार से संबंधित मुद्दों पर सम्मेलन आयोजित करने की अनुमति नहीं दी थी लेकिन इस बार सम्मेलन का आयोजन भी हुआ और एक घंटे से ज़्यादा तक पत्रकार सवाल पूछते रहे. पत्रकारों ने यह भी पूछा कि नक्सलियों के मामले में युद्धविराम कैसे सुझाया जा सकता है जबकि वे एक संवैधानिक सरकार के खिलाफ काम कर रहे हैं.

बैठक में उपस्थित स्वामी अग्निवेश., प्रोफेसर यश पाल और नारायण देसाई ने कहा कि सबसे पहले दोनों पक्षों को हिंसा से बचना होगा, राज्य को और वामपंथी उग्रवादियों को. इसके बाद राष्ट्रीय स्तर पर बातचीत होगी.

टाउन हॉल के पास बैठक के दौरान 100 लोगों ने विरोधी प्रदर्शन किए और अंदर आ कर नारे लगाने लगे. ज़िला के कलेक्टर विश्व रंजन के मुताबिक यह लोग कांग्रेस और बीजेपी पार्टी के थे. उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ में माओवादियों के खिलाफ लोगों का गुस्सा बढ़ रहा है और उनसे बात करने वाले किसी भी व्यक्ति को नक्सलियों का समर्थक माना जाता है.

रिपोर्टः नचिकेता देसाई/एम गोपालकृष्णन

संपादनः महेश झा