1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

'दो साल में यूरो को स्वीकार लेंगे लोग'

३ जनवरी २०१५

लिथुआनिया यूरो जोन का 19वां सदस्य देश बना है. देश में अब यूरो मुद्रा इस्तेमाल की जा रही है. हालांकि इस फैसले से सिर्फ आधे देशवासी ही खुश है लेकिन वित्त मंत्री रिमांटास शाजुस का मानना है कि लोगों का नजरिया बदलेगा.

https://p.dw.com/p/1EEHz
Rimantas Sadzius
रिमांटास शाजुसतस्वीर: picture-alliance/dpa/O. Hoslet

लिथुआनिया के वित्त मंत्री 54 वर्षीय रिमांटास शाजुस सोशल डेमोक्रैट है. वह 2012 से देश के वित्त मंत्री हैं. इससे पहले वे 2007-08 में भी यह पद संभाल चुके हैं. लिथुआनिया काफी समय से यूरो जोन में आना चाह रहा था लेकिन ऊंची महंगाई दर की वजह से ऐसा नहीं हो पा रहा था. शाजुस ने मुद्रास्फीति को काबू में किया. 2010 में उनके पड़ोसी देश एस्टोनिया ने यूरो मुद्रा अपनाई तो 2014 में लातविया ने. अब लिथुआनिया भी ऐसा करने में सफल हो गया है. रिमांटास शाजुस से डॉयचे वेले की बातचीत के प्रमुख अंश.

डॉयचे वेले: पूरी दुनिया यूरो जोन के कर्ज और आर्थिक संकट की चर्चा कर रही है तब आप क्यों यूरो को अपना रहे हैं?

रिमांटास शाजुस: पिछले काफी समय से लगातार लोग यूरो संकट की चर्चा कर रहे हैं. वहीं, यूरो जोन ने साबित कर दिया है कि वह बाहरी झटकों, आंतरिक तनावों और मतभेदों का दृढ़ता से सामना कर सकता है. मुझे लगता है कि यूरो जोन ने ऐसा मुकाम हासिल कर लिया है जहां वो संकट से खुद ही निपट सकता है.

लिथुआनिया की बात की जाए तो हमने 2002 में ही अपनी मुद्रा को यूरो से जोड़ दिया था. वित्तीय संकट के दौरान हमने भी उन सारी चुनौतियों का सामना किया जो यूरो जोन ने किया, आंतरिक अवमूल्यन, वेतन में कटौती, सामाजिक खर्च में कटौती. हम अभी तक यूरो जोन का फायदा नहीं उठा सके हैं. उदाहरण के लिए हमने कर्ज पर ब्याज की दर कम कर दी ताकि अपने छोटे बजट घाटे की भरपाई की जा सके.

मुद्रा विनिमय की दर बीते कुछ समय से स्थिर है. ऐसे में लिथुआनिया के आम लोगों के लिए नोटों और सिक्कों के अलावा क्या बदलेगा?

उन्हें विनियम शुल्क नहीं देना होगा, उन्हें सस्ता कर्ज मिलेगा. यह सिर्फ सरकार को ही नहीं बल्कि निजी फर्मों और व्यक्तियों को भी मिलेगा. हमें ज्यादा विदेशी निवेश की जरूरत है. निवेशक हमेशा बदले में मिलने वाले जोखिम को आंकते हैं. अब मुद्रा अवमूल्यन का खतरा खत्म हो चुका है, ऐसे में निवेश से ज्यादा लाभ होगा.

Litauen Eurozone
लिटाज की जगह यूरोतस्वीर: Reuters/I. Kalnins

लिथुआनिया के लिए 3.4528 जादुई नंबर है. आधिकारिक विनिमय दर एक यूरो के लिए 3.45 लिटाज है. आपको क्या लगता है कि लोग कब तक लिटाज में सोचते रहेंगे.

यूरो जोन में शामिल होने वाले दूसरे देशों के अनुभवों के आधार पर कहें तो लोगों को अपनी मुद्रा से बाहर निकलकर सोचने में कम से कम पांच साल लगते है. केवल आधी आबादी सोचती है कि यूरो अपनाना अच्छा रहा. लेकिन हमारे सामने एस्टोनिया का उदाहरण भी है, उसे ऐसा करने में सिर्फ दो साल लगे. यूरो पंसद करने वाली वहां की 50 फीसदी आबादी अब बढ़कर 85 प्रतिशत हो चुकी है. मुझे लगता है कि दो साल में लिथुआनिया की ज्यादातर जनता भी यूरो का समर्थन करने लगेगी.

कुछ उद्योगपतियों को मुद्रा बदलाव की आड़ में दाम बढ़ाने से आप कैसे रोकेंगे? जर्मनी में लंबे समय तक लोग सोचते रहे कि ऐसे बदलाव से हर चीज महंगी हुई?

हम कीमतों पर पैनी नजर बनाए हुए हैं. हम सेवाओं में महंगाई देख रहे हैं. लेकिन इसे चार से पांच फीसदी वार्षिक वेतनवृद्धि के आधार पर समझा जा सकता है. यह यूरो की वजह से नहीं है. बाकी चीजों के दाम स्थिर है या कम हो रहे हैं क्योंकि सस्ता तेल और खाना जैसे अंतरराष्ट्रीय तत्व असर कर हैं. मुझे नहीं लगता कि हमारे यहां ऐसा कोई असर पड़ेगा. हमारा नियंत्रण सिस्टम काफी कड़ा है और प्रतिस्पर्धा तो है ही. हम 2015 में इसे लगातार देखते रहेंगे.

1990 के दशक में कम्युनिस्ट सिस्टम के टूटने के बाद लिटाज स्वतंत्रता की बहुत मजबूत निशानी रही है. आपको लगता है कि लोगों को इतनी मजबूत निशानी छोड़ने में दिक्कत होगी?

हां, ऐसी भावनाएं हैं, हम भावुक लोग हैं. लिटाज युद्ध से पहले से चला आ रहा है. लेकिन यूरो सिक्के के एक पहलू में हमारा कोर्ट ऑफ आर्म्स वाला निशान है. यह 14वीं शताब्दी से लिथुआनिया के सिक्कों में है. इसे अब पूरे यूरोप में देखा जा सकेगा और यह यूरोप में हमारी पहचान बताएगा.

यूक्रेन संकट और रूस पर लगे यूरोपीय संघ के प्रतिबंध, इनका आपकी अर्थव्यवस्था पर क्या असर हो रहा है?

हमें आर्थिक विकास की अपनी उम्मीदें कम करनी पड़ीं. 2015 में हमारी विकास दर 0.9 फीसदी रहने का अनुमान है. रूस को सामान निर्यात करने वाली हमारी कंपनियों को मुश्किल हो रही है. दोबारा एक्सपोर्ट करने वाली चीजों और लिथुआनिया से रूस को माल पहुंचाने वाले रास्ते में भी सुस्ती देखी जा रही है.

लेकिन दूसरी तरफ हम देखते हैं कि 1998 के रूसी संकट के बाद कंपनियां नया बाजार खोजने में सफल हुई थीं. वे पश्चिम की तरफ गईं और यूरो मुद्रा अपनाने से उन्हें यूरोपीय बाजार में अच्छी छवि हासिल होगी.

इंटरव्यू: बैर्न्ड रीगर्ट/ओएसजे