दुनिया भर के चुनाव
भारत, अमेरिका, जर्मनी में कैसे होता है मतदान. कहां कहां इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन इस्तेमाल होती है और कहां नहीं.. देखें तस्वीरों में...
विशाल वोटिंग
भारत में 2009 के चुनाव में 71.4 करोड़ लोगों के पास वोट डालने का अधिकार था. पांच चरणों में हुआ चुनाव कार्यक्रम महीने भर चला. करीब 14 लाख इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनें इस्तेमाल की गईं. दुनिया के इतिहास में इतने बड़े पैमाने पर वोटिंग पहले कभी नहीं हुई. अधिकारी एक बार फिर इसकी तैयारी में जुट गए हैं, भारत में चुनाव अगले साल होंगे.
बैलट पेपर का राज
ज्यादातर देशों में चुनाव इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन की बजाय बैलट पेपर पर होते हैं. यह मतपत्र जिम्बाब्वे में 2013 के राष्ट्रपति चुनाव में इस्तेमाल हुए. राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यह बहस आम रही कि चुनाव में गड़बड़ी की गई लेकिन देश की संवैधानिक अदालत ने उसे वैध करार दिया. राष्ट्रपति रॉबर्ट मुगाबे इन चुनावों के बाद सातवीं बार राष्ट्रपति बने.
अंगुलियों में स्याही
कई देशों में पोलिंग बूथ पर जाने के दौरान वोटरों की अंगुलियों में स्याही लगा दी जाती है ताकि वो दोबारा वोट न डाल सकें. मलेशिया की इस महिला की अंगुली में वही स्याही लगी है. वहां मई में चुनाव हुए. इस स्याही में सिल्वर नाइट्रेट का इस्तेमाल किया जाता है. त्वचा से स्याही के धब्बे को मिटने में कम से कम चार हफ्ते का समय लगता है.
ऑनलाइन लोकतंत्र
अगर लोग बैंकिंग ऑनलाइन कर सकते हैं तो वोटिंग क्यों नहीं? एस्तोनिया में 2005 के बाद हुए पांच चुनावों में इंटरनेट वोटिंग की गई. आखिरी चुनाव में 24 फीसदी वोटरों ने ऑनलाइन सुविधा का इस्तेमाल किया. इस तंत्र में सुरक्षा की चिंता दूर करने के लिए वोट देने वाले को एक खास सॉफ्टवेयर डाउनलोड करना पड़ता है. सुरक्षित साइट पर वो खास आईडी कार्ड के जरिए ही पहुंच सकते हैं.
ड्राय डे
मेक्सिको उन देशों में शामिल है, जहां चुनाव से पहले और चुनाव के दिन शराब बेचने पर पाबंदी है. इस पाबंदी का मकसद यह सुनिश्चित करना है कि लोग बिना गड़बड़ी के वोट डाल सकें. यह नियम सरकारी अधिकारियों के फैसले के हिसाब से बदल भी सकता है. आमतौर पर शराब की पाबंदी के साथ चुनाव कराने वाले देश इस कानून से सैलानियों वाले इलाकों में कुछ छूट दे देते हैं.
खतरे में भी वोटिंग
अप्रैल 2013 में इराक के प्रांतीय परिषदों के चुनाव अमेरिकी सेनाओं की रवानगी के बाद पहले चुनाव थे. इस दौरान कई आतंकी हमले हुए. चुनाव का दिन तो शांत था लेकिन इसके पहले और बाद की फिजा विरोध प्रदर्शनों से गर्म रही. 14 उम्मीदवारों समेत 200 से ज्यादा लोग मारे गए. चुनाव में वोट देने के लिए वैध मतदाताओं में से आधे ही चुनावी बूथ पर आए.
पहचान जरूरी
अमेरिका में इस बात का डर रहता है कि वोट डालने में लाल फीता शाही भेदभाव करती है. इसी जून में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया कि राज्य सरकारें वोटिंग के लिए पहचान के कड़े नियमों से अधिकार का उल्लंघन नहीं कर रही हैं. आलोचकों कहते हैं कि फोटो पहचान पत्र की अनिवार्यता उन्हें परेशान करती है, जिन्हें इसे हासिल करने में दिक्कत होती है. इनमें खासतौर से अफ्रीकी अमेरिकी, गरीब और बुजुर्ग हैं.
बैलट और बारबेक्यू
ऑस्ट्रेलिया में चुनाव का मतलब है सॉसेज का स्वाद. स्कूल और सामुदायिक केंद्रों का इस्तेमाल चुनावी बूथ के रूप में होता है और इस मौके का इस्तेमाल वोटरों को खाने की चीज बेच कर पैसा जुटाने में किया जाता है. यह अब राष्ट्रीय परंपरा जैसी बन गई है. सात सितंबर को यहां हुए चुनाव के दौरान 1000 से ज्यादा जगहों पर ऐसी दुकानें सजीं. 18 साल से ऊपर के लोगों के लिए वोट डालना अनिवार्य है.
केवल अधिकार नहीं
ऑस्ट्रेलिया की तरह ब्राजील में भी वोटिंग महज नागरिक अधिकार नहीं जरूरी शर्त है. दुनिया भर में 22 देश ऐसे हैं जहां वोट डालना कानून तौर पर जरूरी है, हां इसकी सख्ती और इसे लागू करवाने के लिए अलग अलग तरीके हैं. ब्राजील में 70 साल से ऊपर की उम्र के लोग, अनपढ़ और 16-18 साल की उम्र के किशोरों के लिए यह वैकल्पिक है. अनिवार्य सैनिक सेवा में शामिल लोग वोट नहीं डाल सकते.
लोकतंत्र की वापसी
राजनीतिक अशांति से जूझ रहे देशों में वोट डालना स्थिरता की तरफ एक बड़ा कदम माना जाता है. माली में 2012 के मार्च में तख्तापलट के बाद देश बिना वैध सरकार के ही चल रहा था. 18 महीने के बाद देश के 70 लाख वैध वोटरों ने दो चरणों में राष्ट्रपति चुनाव में शांतिपूर्ण तरीके से हिस्सा लिया. अंतरराष्ट्रीय पर्यवेक्षकों ने इसे भरोसे के लायक माना.
प्रचार पर रोक
रूस की तरह कई देशों में चुनाव खामोशी से होते हैं. यहां कई हफ्तों के चुनावी अभियान के बाद पार्टियों को सारे पोस्टर और दूसरी प्रचार सामग्रियों को हटाना होता हैं और इसके साथ ही वोटिंग के दिन खुद को इन सबसे दूर रखना होता है. इसके पीछे विचार यह है कि वोटरों के काम में कोई दखल न दिया जाए. हालांकि कुछ लोग मानते हैं कि सोशल मीडिया ने इन नियमों को बेअसर कर दिया है.
वोट के लिए भीड़
वोटिंग के लिए आने वाले लोगों की संख्या यह बताती है कि नागरिक चुनावी प्रक्रिया से कितना जुड़ रहे हैं. ईरान के 5 करोड़ वैध मतदाताओं में से करीब 72 फीसदी ने जून 2013 के राष्ट्रपति चुनावों में हिस्सा लिया. लोगों की तादाद इतनी ज्यादा थी कि कई जगहों पर वोट डालने का समय आगे बढ़ाना पड़ा. उदार मौलवी हसन रोहानी ने 51 फीसदी वोट हासिल कर चुनाव जीत लिया और दूसरे दौर की वोटिंग की जरूरत नहीं पड़ी.
सबके लिए मताधिकार
पूरे देश के चुनावों में सबसे पहले सभी महिलाओं को वोट देने का अधिकार न्यूजीलैंड ने 1893 में दिया था. इसके बाद से करीब करीब सभी देशों ने सब के लिए मताधिकार को देर सबेर लागू कर दिया. वैटिकन सिटी और सऊदी अरब अब भी अपवाद बने हुए हैं. वैटिकन महिलाएं कार्डिनल बन ही नहीं सकती हैं, तो पोप का चुनाव पुरुष कार्डिनल करते हैं. सऊदी अरब की महिलाओं को वोट देने का अधिकार 2015 में मिलेगा.