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दावोस बैठक में गरीबी है मुद्दा

२३ जनवरी २०१४

इस साल विश्व आर्थिक फोरम गरीबों को भी अपने दायरे में लेता दिख रहा है. बेरोजगारी और गरीबों और अमीरों के बीच का फर्क इस साल बैठक के अहम मुद्दे हैं.

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तस्वीर: Reuters

विश्व आर्थिक फोरम के संस्थापक और प्रमुख क्लाउस श्वाब पहले से ही बैठक में हिस्सा लेने वाले देशों से कह रहे हैं कि वह केवल आर्थिक मकसदों पर ध्यान न दें, "चाहे जितना भी नेटवर्किंग करें, व्यापार करें, जो आप यहां करते हैं, राजनीतिक बहस के बावजूद, अंत में तो आत्मा अहम है, हमारे मूल्य अहम हैं."

इस साल दावोस में हिस्सा ले रहे 2,500 लोगों में दुनिया के सबसे बड़े बैंकों और कंपनियों के प्रमुख हैं. इनके साथ 40 देशों की सरकारों के प्रतिनिधि और विशेषज्ञ भी दावोस में मौजूद हैं. इस साल हॉलीवुड स्टार मैट डेमन और रॉकस्टार बोनो भी बैठक में हिस्सा ले रहे हैं.

पोप की चेतावनी

श्वाब ने पोप फ्रांसिस को भी आमंत्रण भेजा. पोप खुद तो दावोस नहीं पहुंचे लेकिन उन्होंने एक संदेश भेजा. अर्थव्यवस्था में तरक्की की वजह से गरीबी तो कम हुई है लेकिन इससे बहुत से दूसरे लोग समाज से अलग थलग हो गए हैं. उन्होंने लिखा है, "इस समय ज्यादातर महिलाएं और पुरुष अब भी रोजाना असुरक्षा में रह रहे हैं और इसके असर काफी हैरान करने वाले हैं."

Schweiz World Economic Forum 2014 Klaus Schwab
विश्व आर्थिक फोरम के संस्थापक और प्रमुख क्लाउस श्वाबतस्वीर: Reuters

पोप ने फोरम में हिस्सा लेने वाले लोगों से अपील की कि वे अपनी जिम्मेदारी निभाएं. क्लाउस श्वाब चाहते हैं कि आर्थिक फोरम के 44वें संस्करण में दुनिया की हालत को बेहतर करने पर ध्यान दिया जाए, जो वास्तव में विश्व आर्थिक फोरम का मकसद है.

शुरुआत में वर्तमान स्थिति की जांच हुई. सवाल यह था कि क्या यूरोप की हालत इस बीच बेहतर हुई है. बाकी सालों के मुकाबले इस साल दावोस में माहौल सकारात्मक है. यूरो संकट के बावजूद यूरो क्षेत्र बिखरा ही है, जिसका पहले डर था. लेकिन जर्मन केंद्रीय बैंक बुंडेसबांक के पूर्व प्रमुख आक्सेल वेबर की चिंता अभी खत्म नहीं हुई है.

विकास दर कम

वेबर का कहना है कि अमेरिका आर्थिक संकट से निकलने में यूरोप के मुकाबले ज्यादा समर्थ रहा है. जर्मनी में अर्थव्यवस्था का विकास अच्छा रहा है लेकिन यूरोप के बाकी देशों में अब भी परेशानियां हैं. "अर्थव्यवस्था में बहाली की दर बहुत धीमी है, नई नौकरियां नहीं पैदा हो रही हैं. अगर हमें संकट से बाहर निकलना है तो इनकी जरूरत होगी."

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बैठक में गरीबी भी अहम मुद्दों मेंतस्वीर: picture-alliance/Maximilian Norz

यूरोपीय संघ में हर नौंवे व्यक्ति के पास रोजगार नहीं है. स्पेन और ग्रीस जैसे देशों में हर चौथे व्यक्ति के पास नौकरी नहीं है. इस माहौल में उग्रवादी गुटों को खुली छूट मिल रही है. फ्रांस में अंतरराष्ट्रीय कंसलटेंसी कंपनी एक्सेंचर के प्रमुख पियेर नौंतेर्म कहते हैं कि मई में यूरोपीय चुनाव होने वाले हैं और नागरिक इस मौके का फायदा उठाकर उन पार्टियों को बाहर का रास्ता दिखा सकते हैं जिनके काम से वह संतुष्ट नहीं हैं.

किसको फर्क पड़ता है

यूरोपीय समाज में बढ़ती असमानता को सुधारने के लिए यहां के देश क्या कर रहे हैं, इसके बारे में कम बात होती है. नौंतेर्म कहते हैं, "बात हमेशा बैंकों के यूनियन या केंद्रीय बैंक की भूमिका पर होती है. लेकिन समाज के उच्च वर्गों के अलावा इससे किसे फर्क पड़ता है. आम आदमी को इसमें दिलचस्पी नहीं, उसे बस नौकरी चाहिए."

यूरोप में बेरोजगारी ने नौजवानों को खास तौर से प्रभावित किया है. दुनिया के बाकी देशों में भी युवा बेरोजगारी एक बड़ी परेशानी है. नाइजीरिया के उद्योगपति और अफ्रीका के सबसे अमीर व्यक्ति अलीका डांगकोटे कहते हैं कि युवाओं को शिक्षा दिलाना जरूरी होगा ताकि विकास होता रहे.

हायर एंड फायर

यूरोप के कई देशों में शिक्षा के बावजूद युवाओं के पास नौकरी नहीं है. लंदन में डब्ल्यूपीपी के प्रमुख मार्टिन सोरेल का कहना है कि आजकल कंपनियों के प्रमुख केवल कर्मचारियों को कम करने में लगे हैं, वह अपने उत्पादन को बढ़ाने पर ध्यान नहीं दे रहे. अगर कर्मचारियों को जल्दी नौकरी पर रखना और उतनी जल्दी निकाल देना आसान होता, तो कंपनियां इतना परेशान नहीं होतीं. लेकिन आखिरकार नुकसान तो नौकरी की तलाश कर रहा आम आदमी का ही है.


रिपोर्ट: आंद्रेयास बेकर/एमजी
संपादन: महेश झा

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