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दांव पर है हर भारतीय की साख

१७ मार्च २०१५

भारत में बीजेपी सरकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सत्ता के 300 दिनों का हिसाब लगाएं तो सबसे पहले विवाद ही सामने आते हैं. कट्टर हिंदूवादी गुटों की हरकतों ने इस सरकार के पहले 300 दिनों पर बट्टा ही लगाया है.

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तस्वीर: picture-alliance/dpa

अल्पसंख्यकों पर जबानी और शारीरिक हमलों में एक योजनाबद्ध तेजी देखी जा रही है. ऐसा कोई दिन नहीं बीतता जब अल्पसंख्यक विरोधी कोई घृणित बयान, कोई गैरकानूनी और हिंसक हरकत सामने नहीं आती. पहले मुसलमानों को टार्गेट किया जाता रहा अब इधर कुछ समय से ईसाई समाज और उनके धर्मस्थलों पर हमले होने लगे हैं. इन अभियानों का पूरा पैटर्न देखें तो समझा जा सकता है कि कितनी शातिरी से इन्हें अंजाम दिया जा रहा है.

अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के भारत और अपने देश लौटकर दिए बयानों के बाद तो लगता है मानो ये कट्टर हिंदूवादी सेनाएं तमतमा और बौखला गई हैं. जितना ज्यादा सांप्रदायिकता का जहर फैलाया जा रहा है उतना ही ज्यादा भारत की छवि अंतरराष्ट्रीय पटल पर खराब हो रही है. अव्वल तो बलात्कार की बढ़ती घटनाओं ने देश की छवि को कहीं का नहीं छोड़ा है, अब इधर जिस तरह से अल्पसंख्यकों पर हमले, अभिव्यक्ति की आजादी को दबाने के हथकंडे, लव जेहाद के नाम पर नफरत फैलायी जा रही है, उसने तो भारत को कमोबेश एक खतरनाक देश सा बना दिया है. लोग भारत को लेकर अब सहज नहीं महसूस करते हैं. ये नौबत कैसे आई?

पिछले दिनों भारत के एक सम्मानित पूर्व पुलिस प्रमुख जुलियो रिबेरो ने एक टीवी बहस में एक मार्मिक टिप्पणी की थी कि वो इस देश में अब सुरक्षित महसूस नहीं करते हैं. रिबेरो की व्यथा इस देश में कमोबेश हर अल्पसंख्यक की व्यथा बनती जा रही है. कोलकाता में बुजुर्ग नन से बलात्कार जहर भरी इस नफरत और पुरुष वर्चस्व की सड़ांध का ताजा मामला है. हैरानी ये है कि ये मामले कम नहीं हो रहे हैं और केंद्र हो या राज्य सरकारें कोई ऐसी सख्ती दिखाने में लाचार दिखती हैं जो इन असामाजिक तत्वों पर कुछ नकेल तो कसे. कोलकाता में लोगों का गुस्सा फूटा, वे मार्च पर निकले लेकिन इन जुलूसों और प्रदर्शनों का भी असर किसी सत्ता व्यवस्था पर पड़ता नहीं दिखता है. नन पर हुए बलात्कार के विरोध में हुए प्रदर्शन के दौरान एक पोस्टर पर लिखा था, “वो घर से बाहर ज्यादा देर नहीं रहती थी. वो भड़काऊ कपड़े नहीं पहनती थी. वो अपने ब्वॉयफ्रेंड्स के साथ नहीं जाती थी. वो ‘जवान और उपलब्ध' नहीं थी. वो एक नन थी और फिर भी उसका बलात्कार किया गया. बलात्कारियों को कोई वजह नहीं चाहिए.”

ये टिप्पणियां आपको झकझोर कर रख देती हैं, अगर आपमें कुछ मनुष्यता बची हो तो. आप किसी भी धर्म के हों, किसी भी वर्ग के, पुरुष हों या स्त्री- आप भी उतने ही खौफ और आतंक से भर जाते हैं जितना कि वे मासूम लोग जिन पर अट्टाहस करते समाज में फैले वे राक्षस झपटते हैं. भारत में रहने वालों को हिंदू बनकर रहना होगा, वे सब हिंदू हैं आदि आदि- इस तरह के भयानक सांप्रदायिक बयानों ने फिरकापरस्तों को खुली छूट दे दी है.

लव जेहाद, धर्म परिवर्तन, चर्चों में तोड़फोड़, जहरबुझे बयान और बलात्कार की घटनाएं- इस देश में वैसे तो इन करतूतों में कोई रोक कभी नहीं लग पाई है लेकिन इधर इन 300 दिनों में लगता है एक बहुत बड़ा अंधेरा, दुश्चिंता और डर हमारे समाज में फैल गया है. आप लाख विकास का डंका बजा लीजिए लेकिन दुनिया देख रही है कि भारत एक भयानक पिछड़ेपन में कैसे घिरता जा रहा है. ये सिर्फ एक सरकार की छवि का प्रश्न नहीं है, भारतीय होने के नाते मेरी और आपकी छवि और प्रतिष्ठा का भी प्रश्न है. हम सब सवालों के घेरे में हैं और हम सबके सिर शर्म से झुके हैं. मध्ययुगीन बर्बरताओं के रथ धूल उड़ाते हमारी तमाम आधुनिकताओं को रौंदते जा रहे हैं. इन्हें रोकने और समाज से बाहर खदेड़ देने वाली शक्तियां कहां हैं?

ब्लॉगः शिवप्रसाद जोशी