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मंथन 84 में खास

२३ अप्रैल २०१४

बीमारियों से लड़ने के लिए आज हमारे पास अनगिनत दवाईयां है. इन दवाओं को बनाने के पीछे एक लंबी प्रक्रिया होती है. नई दवाईयों के विकास से लेकर विशाल चींटीखोर के बारे में तमाम जानकारियां, मंथन के इस अंक में.

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तस्वीर: Reuters

वैज्ञानिक हर खतरनाक रोग से लड़ने के बेहतर तरीके ढूंढते रहते हैं. हर रोज बाजार में सैकड़ों तरह की नई दवाएं आती हैं जिन्हें बनाने के पीछे एक लंबी प्रक्रिया होती है. दवा असर करती है या नहीं इसके लिए उन्हें पहले जानवरों पर टेस्ट किया जाता है. इस प्रक्रिया का एक नुकसान ये है कि हर साल जिन करीब दस करोड़ जानवरों पर इस तरह की टेस्टिंग होती है, इस प्रक्रिया में कई बार वे अपनी जान भी गंवा देते हैं. यहां तक की इंसानों पर भी नई दवाएं टेस्ट करने से काफी नुकसान पहुंचता है. यही कारण है कि जर्मनी समेत यूरोप के कई देशों में दवाओं की टेस्टिंग के लिए जानवरों के बजाए कंप्यूटरों का इस्तेमाल होने लगा है. मंथन में डालेंगे इस प्रक्रिया पर नजर. इसके अलावा बात होगी रोजमर्रा की चीजों में छुपे रसायनों के शरीर में पहुंचने से हो रहे हानिकारक असर के बारे में. देखेंगे कि दिमागी विकास के लिए घातक रसायनों का पता कैसे लगाया जाता है.

मजबूत इम्यून सिस्टम जरूरी

जर्मनी में विज्ञान के क्षेत्र में अहम रिसर्च के लिए 1952 से ही पॉल एयरलिष पुरस्कार दिया जा रहा है, जिसे जीतने वाले को एक लाख यूरो मिलते हैं. मंथन में आपको मिलवाएंगे यह पुरस्कार जीतने वाली जर्मनी की युवा रिसर्चर आंद्रेया अबलासर से. वे शरीर की प्रतिरोधी क्षमता पर रिसर्च कर रही हैं. आंद्रेया यह जानने की कोशिश कर रही हैं कि हमारे शरीर का इम्यून सिस्टम किस तरह से किसी बीमारी के ट्रिगर को पहचानता है.

बात जैव विविधता की

इसके अलावा ले चलेंगे ब्राजील के जंगलों में जहां दुनिया के इतने तरह के जानवर और परिंदे मिलते हैं कि अब तक इनकी सही गिनती नहीं हो पाई है. यहीं मिलता है विशाल 'चींटीखोर' भी जो चींटियों और दीमक को खाता है. मंथन में देखें कि कैसे होते हैं ये जानवर और यहां की जैव विविधता को बचाने के लिए क्या किया जा रहा है.

हवा में उड़ते रहें

इसके अलावा प्रोग्राम में सैर होगी यूरोप की मशहूर आल्प पहाड़ियों की भी. यहां की बर्फीली आल्प पहाड़ियों को देखने और विंटर स्पोर्ट्स के लिए दुनिया भर से लोग पहुंचते हैं. स्विट्जरलैंड तो इसके लिए सबसे ज्यादा मशहूर है. लेकिन असल में ये पहाड़ यूरोप के आठ देशों में फैले हैं जिनमें जर्मनी और फ्रांस भी शामिल हैं. ले चलेंगे आपको आल्प्स के सबसे ऊंचे पहाड़ मों ब्लौं पर, वो भी पैराग्लाइडिंग करते हुए. शो में मुलाकात होगी 20 साल से सैलानियों को चिड़िया जैसी उड़ान का अनुभव कराती ट्रेनर कारोलीन ब्री से जिन्होंने पैराशूट के साथ फ्रांस की आल्प पहाड़ियों को ही अपना घर बना लिया है. इन तमाम दिलचस्प विषयों पर और जानकारी के लिए जरूर देखें मंथन, शनिवार सुबह 10:30 बजे डीडी नेशनल पर.

आरआर/एएम