थाईलैंड की सेना में ट्रांसजेंडरों की भर्ती
दुनिया भर में समलैंगिक और ट्रांसजेंडर लोगों के लिए जन्नत समझे जाने वाले थाईलैंड में उनका 21 साल का होना एक खतरा लेकर आता है. चाहें ना चाहें उन्हें अनिवार्य सैनिक सेवा के लिए भर्ती होना पड़ सकता है.
थाईलैंड के कई ट्रांसजेंडर लोगों को शिकायत है कि उन्हें देश में दोयम दर्जे के नागरिक समझा जाता है. 21 साल का होने पर उन्हें भी अनिवार्य तौर पर सेना में भर्ती करना भी वे ठीक नहीं मानते. ऐसे ट्रांसजेंडर जो नर के रूप में पैदा हुए थे, उन्हें भर्ती में शामिल होना होता है.
हर साल अप्रैल के महीने में 21 साल के हो गए थाई पुरुषों को या तो स्वेच्छा से छह महीने के लिए सेना में भर्ती होना पड़ता है या एक खास लॉटरी में शामिल होना होता है. इस लॉटरी में ब्लैक टिकट मिलने पर वे घर जा सकते हैं और रेड टिकट मिलने पर दो साल के लिए सेना में सेवा देनी होती है.
जब महिलाओं के कपड़े पहने ट्रासजेंडर लोग लंबी लंबी कतारों में भर्ती के लिए खड़े होते हैं, तो कई बार मीडिया में उनकी तस्वीरें मजाक उड़ाने के अंदाज में दिखायी जाती हैं. करीब एक लाख पुरुषों के साथ ट्रांसजेंडर महिलाओं को भी भर्ती वाले दिन उपस्थित होना होता है.
थाई सेना में क्रूरता के किस्से भी सामने आते रहते हैं. हाल ही में एक रंगरूट को बाकी सैनिकों ने पीट पीट कर मार डाला था. ट्रांसजेंडर औरतों को रियायत मिल सकती है, लेकिन तभी जब ये साबित किया जा सके कि वे नाटक नहीं कर रही हैं.
ट्रांसजेंडर महिलाओं को रियायत पाने के लिए डॉक्टर से चेक करवाना पड़ता है. एक प्राइवेट कमरे में ले जा कर डॉक्टर चेक करता है कि उनके स्तन हैं या नहीं और कहीं उन्होंने सेक्स बदलने की सर्जरी तो नहीं करवाई है.
जिन भी लोगों में प्राकृतिक रूप से किसी लिंग के स्पष्ट लक्षण नहीं पाये जाते, उन्हें "डिसऑर्डर" का प्रमाणपत्र मिलता है और भर्ती से छुटकारा भी मिल सकता है. वहीं अगर किसी ने सर्जरी करवा कर वैसा शरीर पाया है तो उन्हें कम से कम दो साल तक सेना में सेवा देनी पड़ती है.
ट्रांसजेंडर महिलाएं मानती हैं कि ऐसे प्रमाण पत्र मिल भी जाएं तो समाज में उनके साथ भेदभाव होता है. सेना का कहना है कि उन्हें ट्रासजेंडर महिलाओं के साथ एक महिला की ही तरह व्यवहार करने के निर्देश हैं.
थाईलैंड में ट्रांसजेंडर महिलाएं टीवी पर आती हैं, ब्यूटी कॉन्टेस्ट में हिस्सा लेती हैं, हेयर सैलून और कॉस्मेटिक सेंटरों में काम करती हैं. लेकिन आज भी उन्हें अपने पहचान पत्र में अपने लिंग की जानकारी बदलने या ना जाहिर करने का विकल्प नहीं है. इससे उन्हें अलग तरह का बर्ताव झेलना पड़ता है.
थाईलैंड में 2015 में एक कानून बना था जिसके अनुसार लिंग-आधारित भेदभाव पर रोक लगायी गयी, लेकिन असल में कई बार ट्रांसजेंडर महिलाओं को महिलाओं के शौचालय तक में जाने से रोका जाता है, ताकि उनसे बाकी महिलाएं ना डर जाएं. कई होटल भी उन्हें कमरे नहीं देते.