तूफानों के जानलेवा नाम
३ जून २०१४इसका रिश्ता बुनियादी तौर पर नाम से नहीं, बल्कि सोच और मनोविज्ञान से है. अमेरिका में एक अध्ययन में दावा किया गया है कि लोग सोचते हैं कि लड़की के नाम वाला तूफान किसी लड़के के नाम वाले तूफान से कम खतरनाक होगा. इसके बाद इससे प्रभावित इलाकों के लोग इलाका खाली करने या एहतियाती कदम उठाने में चूक कर बैठते हैं.
नतीजा होता है कि अटलांटिक में महिलाओं के नाम वाले तूफानों से पांचगुना ज्यादा तबाही होती है. अमेरिका की नेशनल साइंस अकादमी में इलीनॉय यूनिवर्सिटी के रिसर्चरों ने यह बात सामने रखी है. तूफानों के नामों का क्रम एक लड़का फिर एक लड़की के तौर पर होता है. इस साल आने वाले तूफानों के नाम डॉली, जोसेफिन और विकी हैं.
पहले सिर्फ लड़की तूफान थी
शुरू में नेशनल हरीकेन सेंटर ने जब 1953 में नाम रखने की परंपरा शुरू की, तो सिर्फ लड़कियों वाले नाम दिए जाते थे. "एलीस" पहला तूफान था, जबकि 1979 में लड़कों के नामों को भी इसमें शामिल कर लिया गया, जब "बॉब" पहला मर्द तूफान बना.
लेकिन लैंगिक समानता का यह प्रयोग उलटा पड़ गया. अटलांटिक में 1950 से 2012 तक के तूफानों के अध्ययन से पता चलता है कि 94 तूफान किनारे से टकराए. रिसर्चरों ने पाया कि कम खतरनाक तूफानों के नाम से कोई फर्क नहीं पड़ता. चाहे लोगों ने सावधानी बरती हो या नहीं, इससे ज्यादा नुकसान नहीं पहुंचता.
लेकिन बड़े तूफानों में फर्क पड़ता है. तूफानों का नाम जितना ज्यादा लड़कियों वाला होगा, वह उतना खतरनाक होगा. रिसर्चरों ने नाम की लैंगिक तीव्रता नापने के लिए भी 11 अंकों का स्केल तैयार किया है. स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी में व्यावहारिक विज्ञान के एक्सपर्ट हैजल मैर्कस का कहना है कि अगर किसी वस्तु का नाम मर्द या महिला के नाम पर होता है, तो भले ही वह जीवित वस्तु न हो, उसके नाम का लोगों के व्यवहार पर असर पड़ता है. मैर्कस इस रिसर्च में शामिल नहीं थे.
कैसे कैसे प्रयोग
रिसर्च ने इस बात की वैज्ञानिक वजह नहीं बताई है कि औरतों के नाम वाले तूफान ज्यादा खतरनाक क्यों होते हैं. लेकिन इलीनॉय में 346 स्वयंसेवियों के साथ एक प्रयोग जरूर किया गया. इन्हें सिर्फ तूफान के नाम बताए गए और पूछा गया कि कौन से तूफान ज्यादा खतरनाक हो सकते हैं. उन्होंने "उमर" और "मार्को" जैसे तूफानों को खतरनाक बताया, जबकि "फे" और "लॉरा" जैसे तूफानों को कम खतरनाक. इसके अलावा स्वयंसेवियों को कुछ तूफानों के प्रभाव वाले इलाके के बारे में बताया गया. पुरुषों के नाम वाले तूफानों के बारे में 34 फीसदी ज्यादा लोगों ने कहा कि इस रास्ते से लोग वक्त रहते हट जाएंगे. सैंडी जैसे नामों पर उनका विचार बहुत साफ नहीं था, जो दोनों लिंग के नाम होते हैं.
नेशनल हरीकेन सेंटर के प्रवक्ता डेनिस फेल्टगेन ने इस विश्लेषण को मान्यता देने से इनकार कर दिया है. उनका कहना है कि लोगों को वक्त रहते इलाका खाली कर देना चाहिए, "नाम सैम हो समांथा".
एजेए/एमजे (रॉयटर्स)