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तुर्की पीएम के हटने से बढ़ी यूरोप की चिंता

ऋतिका पाण्डेय (एएफपी,एपी)६ मई २०१६

तुर्की के प्रधानमंत्री अहमत दावुतोग्लू के अचानक पद छोड़ने की घोषणा से उनका देश ही नहीं यूरोपीय संघ भी परेशान है. कारण है ईयू-तुर्की रिफ्यूजी डील पर टिकी यूरोपीय उम्मीदों को झटका लगने की चिंता.

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Türkei Premierminister Ahmet Davutoglu Ankündigung Rücktritt
तस्वीर: Reuters/U. Bektas

घोषणा के दो हफ्तों के भीतर पद छोड़कर हट जाने वाले तुर्की के सत्ताधारी दल के नेता और प्रधानमंत्री दावुतोग्लू ने सबको चौंकाया है. इससे देश के राष्ट्रपति एर्दोवान को पहले से भी ज्यादा शक्तियां मिल जाएंगी. कई महीनों से राष्ट्रपति एर्दोवान और प्रधानमंत्री दावुतोग्लू में मनमुटाव की चर्चाएं थीं. आपसी संकट को निपटाने के लिए राष्ट्रपति भवन में मिलकर चर्चा करने के बावजूद जब दोनों नेताओं में सहमति नहीं बनी तो इसका नतीजा दावुतोग्लू के इस्तीफे के रूप में सामने आया.

प्रधानमंत्री दावुतोग्लू ने बताया है कि 22 मई को उनकी सत्ताधारी पार्टी एकेपी के विशेष कांग्रेस में वे किसी पद के लिए चुनाव नहीं लड़ेंगे. इसका अर्थ हुआ कि उन्होंने केवल प्रधानमंत्री पद ही नहीं बल्कि पार्टी की जिम्मेदारियां भी छोड़ने का फैसला कर लिया है. 2014 में जब से एर्दोवान तुर्की के राष्ट्रपति बने तबसे दावुतोग्लू ही प्रधानमंत्री हैं.

एर्दोवान स्वयं एकेपी पार्टी के सहसंस्थापक हैं जिसका गठन उन्होंने तुर्की की सेकुलर मुख्यधारा में इस्लामिक पार्टी को शामिल करवाने के मकसद से किया था. इस पार्टी का अध्यक्ष और सरकार का मुखिया एक ही व्यक्ति होता है. दावुतोग्लू ने कहा, "एकेपी पार्टी की एकता बरकरार रखने के लिए एक नया नेता चुनना ही सही होगा."

प्रधानमंत्री की कुर्सी और पार्टी की अध्यक्षता अपने विश्वासपात्र दावुतोग्लू को सौंपने वाले एर्दोवान ने सत्ता की बागडोर अपने हाथों में ही रखी. पिछले कुछ समय से दावुतोग्लू एर्दोवान से स्वतंत्र होने के संकेत दे रहे थे. देश में राष्ट्रपति व्यवस्था लागू करने के मुद्दे पर तो वे एर्दोवान से बिल्कुल सहमत नहीं थे. माना जा रहा है कि एर्दोवान किसी ऐसे व्यक्ति को प्रधानमंत्री बनाएंगे जो उनसे पूरी तरह सहमत हो.

दावुतोग्लू ने ऐसे चुनौतीपूर्ण समय में पद छोड़ा है जब देश के दक्षिणपूर्व और इराक में कुर्द लड़ाकों से, तो सीरियाई सीमा पर इस्लामी जिहादियों से लड़ाई चल रही है. इसके अलावा तुर्की ने सीरिया से भागे 27 लाख लोगों को शरण दे रखी है. मार्च में ईयू के साथ रिफ्यूजी डील पर सहमति बनाने में दावुतोग्लू ने ही अहम भूमिका निभाई थी. इस दौरान एर्दोवान ने इसमें ज्यादा दिलचस्पी कभी नहीं दिखाई. जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल और यूरोपीय संघ के दूसरे नेताओं के साथ शरणार्थी मुद्दे पर बातचीत के दौरान अंग्रेजी और अरबी के अलावा जर्मन में बात करने वाले दावुतोग्लू के बिना यूरोपीय संघ के नेताओं को ऐसे पार्टनर की कमी खल सकती है.