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११ नवम्बर २०१०

गुरुवार को सिमरन प्रीत सिंह लाम्बा अमेरिकी फौज में शामिल हो गए. इसके साथ ही सिख सैनिक के लिए चला आ रहा अमेरिकी फौज का तीन दशक लंबा इंतजार खत्म हो गया. सिमरन को फौज में शामिल होने के लिए धार्मिक आजादी भी मिली.

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तस्वीर: AP

सिमरन के लिए इस धार्मिक आजादी का मतलब है कि वो माथे पर पगड़ी और चेहरे पर दाढ़ी रख सकते हैं. अमेरिकी फौज को उनकी भाषाई काबिलियत की सख्त जरूरत है, इसलिए फौज में शामिल होने की शर्तों में कुछ छूट दे दी गई है. पिछले साल सेना के खास प्रोग्राम राष्ट्रीय हित के लिए सेना में दाखिला, के तहत सिमरन को हिंदी और पंजाबी भाषा जानने की वजह से फौज में शामिल किया गया. कोलंबिया के फोर्ट जैक्सन में बिना बाल और दाढ़ी कटाए उनकी बेसिक ट्रेनिंग हुई औऱ इसके साथ ही वो अमेरिका के नागरिक भी बन गए.

अमेरिकी सेना में शामिल होने का उत्साह लाम्बा की नस नस में लहू बन कर दौड़ रहा है. वो कहते हैं, "साथी सैनिकों के साथ अमेरिकी फौज की सेवा करने का मौका मिलने से मैं बेहत रोमांचित हूं. मुझे भरोसा है कि ट्रेनिंग के हर हिस्से में मैंने अच्छा प्रदर्शन किया है. सबसे जरूरी बात ये है कि साथी सैनिकों और अधिकारियों ने मेरा बहुत सहयोग किया और इसके लिए मैं उन्हें धन्यवाद देता हूं."

अमेरिकी फौज के नियमों के तहत उन सिखों को नौकरी नहीं दी जाती जो दाढ़ी और पगड़ी रखना चाहते हैं. अगर व्यक्तिगत तौर पर अमेरिकी फौज किसी सिख को ये छूट दे दे तभी वो दाढ़ी और पगड़ी रख सकता है. लाम्बा से पहले कहा गया कि उन्हें धार्मिक पहचान रखने की छूट दी जाएगी. हालांकि इस साल मार्च में धार्मिक पहचान बनाए रखने की उनकी औपचारिक अर्जी को नामंजूर कर दिया गया. लाम्बा ने इसके खिलाफ दोबारा अपील की और तब सितंबर 2010 में उनकी अपील मान ली गई और उन्हें पगड़ी और दाढ़ी रखने की छूट मिल गई.

कुछ अधिकारियों को संदेह था कि लाम्बा बेसिक ट्रेनिंग के सारे कोर्स शायद पूरे नहीं कर पाएं लेकिन ऐसा नहीं हुआ. सिमरन प्रीत ने ट्रेनिंग का हरेक हिस्सा पूरा किया और वो भी अच्छी तरह से. यहां तक कि सारी आशंकाओं को गलत साबित करते हुए गैस मास्क एक्सरसाइज के दौरान भी वो कामयाब रहे.

अमेरिकी सेना ने 1981 में धार्मिक पहचान रखने पर पाबंदी लगा दी. इसका असर ये हुआ कि बिना कटे बाल और दाढ़ी रखने की मनाही हो गई. हालांकि अमेरिकी फौज में इससे पहले सिख सैनिकों की एक लंबी परंपरा रही है और वो भी बाल दाढ़ी के साथ. पिछले साल से एक बार फिर सिखों को सेना में शामिल करने की कोशिशें रंग ला रही हैं.

रिपोर्टः एजेंसिया/एन रंजन

संपादनः महेश झा

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