तीन तलाक पर छह महीने के लिए सुप्रीम कोर्ट की रोक
२२ अगस्त २०१७सुप्रीम कोर्ट में एक मुस्लिम महिला समेत 17 संगठनों की ओर से दायर याचिका पर छह दिन की सुनवाई के बाद ये फैसला सुनाया गया है. सुप्रीम कोर्ट ने भारत की संसद से इस बारे में कानून बनाने को कहा है. सुप्रीम कोर्ट के फैसले में कहा गया है, "हमें उम्मीद है कि संसद कानून बनाते समय मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड को ध्यान में रखेगी. हम सभी पक्ष राजनीति को अलग रख कर इस बारे में निर्णय लें." समाचार एजेंसी ने ट्वीट कर बताया है कि सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अगले छह महीने के भीतर इस मामले में कानून नहीं बनाया जाता तो सुप्रीम कोर्ट की निषेधाज्ञा जारी रहेगी. सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक को संविधान की धारा 14 और 21 के भी खिलाफ माना है.
फैसला सुनाने वाली सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच में पांच अलग अलग धर्मों के जज थे. इनमें चीफ जस्टिस के अलावा जास्टिस कूरियन जोसेफ, जस्टिस रोहिंटन फली नरीमन, जस्टिस उदय उमेश ललित और जस्टिस एसअब्दुल नजीर शामिल हैं. हालांकि मुस्लिम महिलाओँ से जुड़ा होने के बावजूद इस बेंच में किसी महिला जज को शामिल नहीं किया गया, जिसके लिए इस बेंच की आलोचना भी हुई. सुप्रीम कोर्ट ने इसी साल 12 मई से 18 मई के बीच इस मामले पर सुनवाई की थी. पांच जजों की बेंच ने 3-2 के आधार पर बहुमत से ये फैसला सुनाया.
सुनवाई के दौरान ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने तीन तलाक को "भयानक, अधर्मी और अवांछित" बताते हुए कहा कि कुरान और शरिया में इसका कोई प्रावधान नहीं था. हालांकि मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने ही इसे मुसलमानों की धार्मिक आस्था से जुड़ा बताते हुए सुप्रीम कोर्ट से इस मामले को अलग रहने के लिए कहा था. मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने इस मामले पर चर्चा के लिए अगले महीने की 10 तारीख को भोपाल में बोर्ड की बैठक बुलायी है.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि पर्सनल लॉ से जुड़े मामलों में संवैधानिक पीठ फैसला नहीं कर सकती. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि जब मुस्लिम देशों में तीन तलाक की प्रथा नहीं है तो फिर स्वतंत्र भारत को इससे पीछा क्यों नहीं छुड़ा लेना चाहिए. तीन तलाक 1,400 साल पुरानी प्रथा है, जिसमें मुस्लिम पुरुष तीन बार तलाक कह कर अपनी शादी से अलग हो सकता है. बीते वर्षों में कई ऐसे मामले सामने आए जब मुस्लिम महिलाओँ को स्काइप पर, कागज पर लिख कर या फिर एसएमएस के जरिये तलाक दे दिया गया.
निखिल रंजन