तीन अरब परिंदे कहां गायब हो गए?
२० सितम्बर २०१९एक नई रिसर्च में उन चिड़ियों के बारे में पता लगाने की कोशिश की गई है जिनकी तादाद लगातार कम होती जा रही है हालांकि यह परिंदे अभी लुप्त नहीं हुए हैं. अमेरिका और कनाडा में 50 साल पहले चिड़ियों की तादाद करीब 10.1 अरब थी जो 29 फीसदी घट कर अब 7.2 अरब रह गई है. गुरुवार को साइंस जर्नल में इस बारे में रिपोर्ट छपी है.
कॉर्नेल यूनिवर्सिटी के संरक्षण वैज्ञानिक केनेथ रोजेनबर्ग का कहना है, "जरूरत इस बात की है कि लोग अपने आसपास के चिड़ियों पर ध्यान दें. वे धीरे धीरे गायब हो रही हैं. सबसे ज्यादा डराने वाली बात यह है कि यह हमारी आंखों के सामने हो रहा है. मुमकिन है कि हमें पता भी ना चले और बहुत देर हो जाए."
रोजेनबर्ग और उनके सहयोगियों ने मौसम के रडार का इस्तेमाल कर चिड़ियों की आबादी के आंकड़े जुटाए हैं. इसके अलावा 1970 से अब तक चिड़ियों पर हुए 13 सर्वेक्षणों और उत्तरी अमेरिका की 529 पक्षी प्रजाति के ट्रेंड के बारे में कंप्युटर मॉडल की भी मदद ली गई है. इनमें सभी प्रजातियां नहीं हैं लेकिन करीब तीन चौथाई प्रजातियां शामिल हैं. जो छूट गई हैं उनमें ज्यादातर दुर्लभ प्रजाति की चिड़िया हैं. रोजेनबर्ग ने बताया कि मौसम रडार का इस्तेमाल नया है यह प्रवासी पक्षियों के झुंड की जानकारी देता है.
हर साल कनेक्टिकट यूनिवर्सिटी की मार्गरेट रुबेगा को लोग फोन कर बताते हैं कि उन्होंने चिड़ियों की तादाद कम होती महसूस की है. यह रिसर्च इस समस्या के बारे में जानकारी देती है. रुबेगा ने ईमेल से दिए जवाब में कहा है, "अगर आप किसी दिन सुबह घर से बाहर निकलें और देखें कि आपके आसपास के सारे घर खाली हो गए हैं, तो आपका अंदाजा सही होगा कि कुछ खतरनाक हो रहा है. हमारे 3 अरब पड़ोसी जो हमारी फसलों को नुकसान पहुंचाने वाले और एंसेफिलाइटिस जैसी बीमारी फैलाने वाले कीड़ों को खाते थे वो अब चले गए हैं. मेरे ख्याल से हम सब को यह सोचना चाहिए कि यह खतरनाक है."
आमतौर पर ज्यादा दिखने वाली और आसानी से पहचानी जाने वाली चिड़ियों का हाल सबसे ज्यादा बुरा है हालांकि अभी वो लुप्त होने की स्थिति में नहीं आई हैं. घरेलू पक्षी गौरैया पर इसका सबसे ज्यादा असर हुआ है. इस्टर्न मिडोलार्कऔर वेस्टर्न मीडोवाक पर इसका बहुत बुरा असर पड़ा है. इनकी तादाद करीब तीन चौथाई तक कम हो गई है. सभी चिड़ियों की संख्या कम नहीं हो रही है. जैसे कि ब्लूबर्ड की संख्या बढ़ रही है लेकिन इसकी वजह यह है कि लोग उनकी संख्या बढ़ाने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं.
रोजेनबर्ग 3 साल की उम्र से ही बर्डवाचर हैं. करीब 60 साल पहले उन्होंने पहली बार चिड़ियों को देखना शुरू किया था. जब वो छोटे थे तब उनके पिता उन्हें न्यूयॉर्क में चिड़ियों को दिखाने ले जाते थे. वहां एक फीडर के पास 200-300 ग्रोसबीक (बड़े चोंच वाली छोटी चिड़िया) दिखती थीं.अब उनका कहना है कि 10 चिड़ियों को देख कर ही लोग खुश हो जाते हैं.
रिसर्च में केवल जंगली परिंदों को ही शामिल किया गया है, इसमें मुर्गी या इस तरह के दूसरे घरेलू पक्षी शामिल नहीं है. रोजेनबर्ग की रिसर्च इस बारे में नहीं है कि पक्षी क्यों कम हो रहे हैं लेकिन वो पुरानी रिसर्चों का हवाला दे कर इसके लिए आवास छिनने, बिल्लियों और खिड़कियों को दोषी ठहराते हैं.
विशेषज्ञों का कहना है कि आवास का खत्म होना चिड़ियों के कम होने के पीछे सबसे बड़ी वजह है. 2015 की एक रिसर्च बताती है कि अमेरिका और कनाडा में बिल्लियां हर साल 2.6 अरब चिड़ियों को मार देती हैं. इसके अलावा खिड़कियों से टकरा कर 62.4 करोड़ और कारों से टकरा कर 2.14 करोड़ परिंदे हर साल मारे जाते हैं.
सवाल है कि ऐसी स्थिति में लोग इन चिड़ियों को कैसे बचा सकते हैं. इसके लिए बिल्लियों को घर के अंदर रखना होगा. खिड़कियों का इस्तेमाल इस तरह से करना होगा कि उनमें फंसकर या उनसे टकरा कर चिड़ियों के मरने की आशंका ना रहे. इसके साथ ही कीटनाशकों का खेती में इस्तेमाल बंद करना होगा. इसके अलावा वो कॉफी खरीदी जाए जो जंगल जैसे फार्मों में उगाई जाती है. अगर ऐसा हो सके तो आकाश अकेला नहीं होगा, चिड़ियों की गूंज उसका दिल बहलाती रहेगी.
एनआर/एमजे(रॉयटर्स)
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