तिब्बत: संघर्ष के 55 साल
तिब्बत की जनता ने चीन की नीतियों के खिलाफ 55 साल पहले विद्रोह शुरू किया था. इन 55 सालों से तिब्बती जनता ने ना जाने कितनी बार चीन के कब्जे का विरोध किया होगा.
"तिब्बत बचाओ"
तिब्बत की राजधानी ल्हासा में 10 मार्च, 1959 को चीन के कब्जे के खिलाफ शुरू हुए विद्रोह के 55 वर्ष पूरे हो गए हैं. तिब्बत के लोग आज भी आजादी की मांग करते हैं. उनका कहना है कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय इस मुद्दे पर चुप्पी साधे हुए है.
55 साल पहले विद्रोह
ल्हासा में 10 मार्च के विद्रोह के बाद दलाई लामा को तिब्बत छोड़ कर भागना पड़ा था. दलाई लामा अब भारत के धर्मशाला में रहते हैं. दलाई लामा तिब्बत की स्वायत्तता के लिए भारत में रहकर लड़ाई लड़ रहे हैं.
श्रद्धांजलि
आजाद तिब्बत के पक्ष में आयोजित एक रैली में भावुक तिब्बती महिलाएं. विद्रोह में मारे गए लोगों को नम आंखों से श्रद्धांजलि दी गई. भारत में बड़ी संख्या में तिब्बती लोग रहते हैं.
"आजादी" की लड़ाई
बैंगलोर में आजाद तिब्बत के पक्ष में हुई रैली में महिलाओं, पुरुषों और बच्चों ने भाग लिया.
चीन का विरोध
तिब्बती लड़कियां कथित चीनी कार्रवाई में मारे गए लोगों की तस्वीरों के साथ प्रदर्शन करती हुईं.
दुनिया को जगाने की कोशिश
तिब्बत के झंडे और पोस्टरों के साथ दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींचने की कोशिश करते तिब्बती.
अलगाववाद का आरोप
चीन निर्वासित सरकार पर आरोप लगाता रहा है कि वो तिब्बत को चीन से अलग करने की कोशिश करती है.
आत्मदाह
साल 2009 से अब तक 126 लोग तिब्बत पर चीन के कब्जे के खिलाफ आत्मदाह कर चुके हैं. इनमें ज्यादातर बौद्ध भिक्षु और साध्वी हैं.
निर्वासित सरकार का बयान
धर्मशाला में तिब्बत की निर्वासित सरकार के कालोन त्रिपा (प्रधानमंत्री) लोबसांग सांगय के भाषण को पढ़ती तिब्बती बौद्ध साध्वी
रैली में विदेशी भी
धर्मशाला में ऑस्ट्रियाई नागरिक मैक्सीमिलियान "तिब्बत बचाओ" स्टिकर के साथ प्रदर्शन करते हुए.