ढीली है इबोला पीड़ितों की मदद
१६ सितम्बर २०१४इबोला महामारी का मामला प्राकृतिक आपदाओं से अलग है. चंदा इकट्ठा करना भी कारोबार सा बन गया है. प्राकृतिक आपदाओं के बाद ध्वस्त घरों और रोते बिलखते बच्चों की तस्वीरें पूरी दुनिया में जाती है. उसके बाद बड़े चंदा अभियान शुरू होते हैं और एकजुटता दिखाने की लहर फैल जाती है. इसके विपरीत इबोला महामारी से लड़ने के लिए बहुत कम राहत संस्थाओं ने चंदा इकट्ठा करने का अभियान चलाया है.
हालांकि संयुक्त राष्ट्र ने इबोला संक्रमित इलाकों में चुनौती को 2004 में हिन्द महासागर में आई सूनामी और 2010 में हैती के भूकंप जैसी बताया है. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा है कि पश्चिम अफ्रीका में इबोला का सामना करने के लिए 60 करोड़ डॉलर की जरूरत है. हालांकि अलग अलग देशों और वर्ल्ड बैंक ने करोड़ों की मदद का आश्वासन दिया है, लेकिन क्या इबोला के खिलाफ लड़ाई सिर्फ पैसे से जीती जा सकेगी?
इस समय कुछ राहत संस्थाएं फौरी मदद दे रही हैं और वे मास्क, दवाओं और डिसइन्फेक्शन वाली दवाओं के लिए मदद की गुहार कर रही हैं. दवाओं की मदद करने वाली संस्था एक्शन मेजियोर के बैर्न्ड पास्टर्स वित्तीय सहायता को अत्यंत महत्वपूर्ण बताते हैं. लेकिन उनका कहना है कि इबोला महामारी पर गाजा, सीरिया, इराक या यूक्रेन जैसे दूसरे संकटों का साया है. इसलिए राहत संस्थाएं चंदा इकट्ठा करने के बड़े अभियान नहीं चला रही हैं. वे कहते हैं, "यह ऐसी विपदा नहीं जो अचानक आ गई, यह ऐसी परिस्थिति है जो भविष्य में भयानक आकार ले लेगी."
डॉक्टर्स विदाउट बोर्डर्स के जिर्का विर्थ चंदा अभियान न चलाने के फैसले के बारे में कहते हैं, "हम कई विवादग्रस्त इलाकों में सक्रिय हैं. हमें सोच विचार कर फैसला करना होगा कि हम अपने संसाधनों को कहां लगाएंगे." डियाकोनी या ब्रेड फॉर द वर्ल्ड जैसी संस्थाओं का कहना है कि महामारी की तुलना प्राकृतिक आपदाओं के साथ नहीं की जा सकती. स्थिति को बेहतर बनाने के लिए स्वास्थ्य सेवाओं में लोगों का भरोसा मजबूत करना जरूरी है.
इसके लिए दीर्घकालीन और टिकाऊ काम आवश्यक है. जर्मन रेड क्रॉस अफ्रीका में स्वास्थ्य परियोजनाओं के लिए चंदा इकट्ठा कर रहा था, लेकिन इबोला के लिए उसने पहली बार सोमवार को अभियान चलाने की घोषणा की है. एक प्रवक्ता का कहना है कि ऐसा अंतरराष्ट्रीय रेडक्रॉस के अभियान में हिस्सा लेने के लिए किया गया है. इन परियोजनाओं के जरिए स्थानीय स्तर पर इबोला के शिकारों को दफनाने में अधिकारियों की मदद की जाएगी. महामारी की वजह से कुछ इलाकों में खाद्य पदार्थों की कीमत 40 फीसदी तक बढ़ गई है.
एमजे/एएम (डीपीए)