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डाटा की सूनामी में सुई की खोज

७ मई २०१४

एक रात में एचडी क्वालिटी का 60 टेराबाइट डाटा. अगर इस डाटा से सिर्फ एक तस्वीर निकालनी हो, तो सोचिये क्या हालत होगी. अंतरिक्ष पर रिसर्च करने वालों को आए दिन ऐसी परेशानियों से जूझना पड़ता है. अब इसे सुलझाने पर काम चल रहा है

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तस्वीर: picture-alliance/dpa

काई पोल्स्टरर हाइडलबर्ग के थ्योरिटिकल स्टडीज इंस्टीट्यूट में रिसर्च करते हैं. इंस्टीट्यूट की स्थापना इलेक्ट्रॉनिक डाटा प्रोसेसिंग और नेचुरल साइंस को एक दूसरे के साथ रचनात्मक तरीके से जोड़ने के लिए हुई थी. यहां काम करने के लिए उनके पास कई कारण हैं, "ये आजादी, जो यहां आपको अपना रिसर्च तय करने की, अपना प्रोजेक्ट प्लान करने की मिलती है, वह स्वाभाविक रूप से बहुत खास है. ऐसा हर कहीं नहीं होता. आप पूरी तरह से सोचने को स्वतंत्र हैं कि आपकी रुचि क्या है. आप किस विषय पर रिसर्च करना चाहते हैं."

वे अंतरिक्षयात्रियों का डाटा प्रोसेसिंग का काम आसान और तेज करना चाहते हैं. इसके लिए वे एक एस्ट्रो इंफॉर्मैटिक्स रिसर्च टीम बना रहे हैं. आसमान की बहुत सारी तस्वीरें आज भी मुश्किल से मिलती हैं. वे ऑब्जर्वेटरियों के आर्काइव में पड़ी धूल खा रही हैं. जैसे कि यह सौ साल से भी ज्यादा पुराना एंड्रोमेडा गैलेक्सी की फोटो प्लेट. खगोलशास्त्रियों के लिए एक अनमोल खजाना. अगर ये शीशा टूट जाए तो इसमें जमा बेशकीमती सूचनाएं हमेशा के लिए खो जाएंगी, इसीलिए एस्ट्रो इंफॉर्मैटिक्स एक्सपर्ट चाहते हैं कि इस तरह की तस्वीरों को डिजीटलाइज कर दिया जाए ताकि वह सुरक्षित भी हो जाएं और सबके लिए उपलब्ध हो सकें.

डाटा की भरमार

नए टेलिस्कोप पहले के मुकाबले कुशल होते जा रहे हैं. इस दशक के अंत में चिली में अमेरिका का लार्ज सिनोप्टिक सर्वे टेलिस्कोप काम करने लगेगा. वह सिर्फ तीन रातों में पूरे आसमान की तस्वीर खींच लेगा. अकेला यह टेलिस्कोप 60 टेरा बाइट नए डाटा मुहैया कराएगा, वह भी हर रात.

इतने विशाल डाटा को अगर मौजूदा या पुरानी तकनीक से सेव किया जाए तो, काई पोल्स्टरर कहते हैं कि यह मुमकिन नहीं, "आपके पास हर रात डीवीडी का 60 मीटर का ढेर होगा. यह बहुत ही ज्यादा डाटा है. इसे यदि आप पंचकार्ड पर सेव करते हैं तो हर रात डाटा को सेव करने के लिए पंच कार्ड से भरे एक कंटेनर शिप की जरूरत होगी. इसका मतलब है कि हम धीरे धीरे अपने डाटा के ढेर में दब जाएंगे."

इसलिए वे अपनी टीम के साथ कम्प्यूटर प्रोग्राम डेवलप करना चाहते हैं जो डाटा आर्काइव में चुनी हुई तस्वीरों को खोज सकेगा. मशीन से सीखने वाले प्रोग्राम, जो बुद्धिमान होते जाएंगे, बिना किसी इंसानी मदद के, "मशीन से सीखने की तुलना आसानी से बच्चों के साथ खेलने से की जा सकती है. जब मैं अपनी बेटी के साथ टॉय ब्लॉक्स खेलता हूं तो मैं यह नहीं कहता कि मैं एक ऐसा टुकड़ा चाहता हूं जिसके ये गुण हैं, यह रंग या आकार है. मैं टुकड़े की ओर इशारा करता हूं और उसे देखकर वह समझ जाती है कि मुझे क्या चाहिए. क्योंकि उसके सामने एक मिसाल है और उसके बाद वह आसानी से मेरे लिए उसे खोज सकती है."

कैसे मिलेगी मदद

इससे अंतरिक्ष विज्ञानियों को भी लाभ होगा, जो संसार के विकास को कम्प्यूटर पर डालते हैं. उन्हें अपने मॉडल को अंतरिक्ष की तस्वीरों के साथ तुलना करनी पड़ती है. यदि डाटा आर्काइव में कोई नया दुर्लभ पिंड मिलता है तो इन मॉडलों को सुधारा जा सकता है. जाहिर है कम्प्यूटर को बड़े कैटेलोग के विश्लेषण और खोज में सहायक की भूमिका निभानी चाहिए. साथ ही मैकेनिकल काम का बोझ भी कम करना चाहिए.

सिमुलेशन वाले डाटा को तीन आयाम में देखने की भी कोशिश हो रही है. आकाशगंगा जैसी चीजों को अगर उसकी गहराई में देखा जा सके तो रिसर्चरों को उसके विकास को समझने में मदद मिलती हैं.

रिपोर्ट: कॉर्नेलिया बोरमन/एमजे

संपादन: ओंकार सिंह जनौटी