डब्बे में सारी दुनिया
साधारण से दिखने वाले स्टील के डिब्बे ने अंतरराष्ट्रीय कारोबार में क्रांति ला दी और वैश्वीकरण को संभव बनाया. आज दुनिया में भेजा जाने वाला 95 प्रतिशत माल किसी न किसी जगह कंटेनर के अंदरूनी हिस्से को जरूर देखता है.
आविष्कारक
1930 के आखिरी साल रहे होंगे. अमेरिकी कारोबारी मैल्कम मैकलीन कपाल के पुल्लों को बार बार लोड करने, उतारने, रिपैकेजिंग करने और स्टोर करने से परेशान थे. लेकिन तभी धनी परिवहन विशेषज्ञ के दिमाग में एक विचार कौंधा. कपास को स्टील के कंटेनरों में पैक करो ताकि उसे आसानी से ट्रकों और जहाज पर लादा और उतारा जा सके. और माल के पानी में खराब होने का भी खतरा न रहे. फिर भी आयडिया पर अमल में 20 साल लग गए.
साधारण शुरुआत
1950 के दशक के अंत तक मैकलीन (तस्वीर में) ने अपने ट्रक बेच दिए थे और एक छोटी सी शिपिंग कंपनी खरीदी. उन्होंने एक टैंकर का इस्तेमाल न्यूयार्क और हूस्टन के बीच 1958 में पहली बार कंटेनरों के परिवहन के लिए किया. ये कंटेनर शिपिंग की शुरुआत थी. शुरुआत में उनका इस्तेमाल सिर्फ अमेरिका के पूर्वी और खाड़ी तटों पर किया जाता था, लेकिन बाद में समुद्रपारीय ठिकानों पर माल भेजने के लिए भी किया जाने लगा.
छोटों के बदले बड़ा पैकेट
माल के परिवहन के लिए क्रेट उस जमाने में भी हुआ करते थे. मैकलीन के आयडिया में नई बात बक्सों का आकार था. 1961 में अंतरराष्ट्रीय मानक संगठन आईएसओ ने कंटेनर के लिए विश्वव्यापी मानक तय कर दिए. आजकल कंटेनरों के कई साइज हैं लेकिन सामान के ट्रांसपोर्ट के लिए 20 फुट वाला कंटेनर मानक बन चुका है, जिसे ट्वेंटी फुट इक्विवेलेंट यूनिट या टीईयू कहा जाता है. जहाजों को भी टीईयू यूनिटों में ही मापा जाता है.
सरल और शानदार
पैकिंग के इस अंतरराष्ट्रीय तौर पर मान्य तरीके के अमल में आने से ट्रांसपोर्ट में काफी तेजी आ गई है और माल को एक जगह से दूसरी जगह तक बिना खोले पहुंचाया जा सकता है. इससे ट्रांसपोर्ट का खर्च बहुत ही कम हो जाता है. पहले 80 टन सामान को लादने में 18 लोगों की जरूरत होती थी, अब कंटेनर का उपयोग शुरू होने के बाद 9 लोगों की टीम उतने ही समय में 2,000 टन सामान लाद देती है.
एक जैसे नहीं
टीईयू यानि 20 फुट का कंटेनर. करीब 6.1 वर्गमीटर के कंटेनर में जूतों की 10,000 जोड़ियां या 20,000 घड़ियां आ सकती हैं. खाने के सामान के ट्रांसपोर्ट के लिए रेफ्रिजरेटेड कंटेनरों का इस्तेमाल होता है, तो टैंक वाले कंटेनरों और हवादार कंटेनरों में सामान ले जाने के भी विकल्प हैं. एक सामान्य कंटेनर की जिंदगी करीब 13 साल की होती है. इस समय इस्तेमाल हो रहे ज्यादातर कंटेनर चीन में बनाए जाते हैं.
यूरोप की राह
हालांकि जर्मनी समुद्री यातायात के केंद्र में रहा है, लेकिन पहले कंटेनर 60 साल पहले ही जर्मनी पहुंचे. 5 मई 1966 को मैकलीन शिपिंग कंपनी का फेयरलैंड जहाज 110 कंटेनरों को लेकर समुद्र तट पर बसे जर्मन शहर ब्रेमेन के हार्बर में पहुंचा. उस समय किसी ने इसे गंभीरता से नहीं लिया. ज्यादातर लोगों ने इसे अमेरिकी पागलपन कहा. आज कंटेनरों से सामान का यातायात सामान्य हो चुका है.
सभी मोर्चों पर हंगामा
कंटेनरों के आने से ट्रांसपोर्ट के व्यवसाय में बहुत कुछ बदल गया. पहले ग्राहकों को सीखना पड़ता था कि सामान को लोड करने के लिए कैसे पैक करें. शिपिंग एजेंट पीटर यानसन बताते हैं कि कभी कभी तो लोग ऐसी चीजों को साथ में पैक कर देते थे जिनके साथ आने से रासायनिक प्रतिक्रिया हो सकती है और धमाके का खतरा होता है. अब हालात उतने बुरे नहीं रहे.
बंदरगाहों की चुनौतियां
लेकिन दूसरी ओर बंदरगाहों को नई जरूरतों के हिसाब से अपने ढांचागत संरचना में बदलाव करने पड़े हैं. शुरू में कंटेनर अक्सर खो जाते थे क्योंकि किस चीज को कहां रखा जाए इसका कोई सिस्टम नहीं था. बाद में कंटेनर ब्रिज बनाए गए ताकि उन्हें आसानी से लादा और उतारा जा सके. इसके अलावा स्पेशल कंटेनर भी बनाए गए जिसके लिए बंदरगाहों को अतिरिक्त कदम उठाने पड़े.
उफनता वैश्विक व्यापार
कंटेनरों की सफलता का असर व्यापार पर भी पड़ा. दुनिया भर में माल भेजने में आसानी आई और कारोबार बढ़ा. इस समय दुनिया भर में 41,000 बड़े व्यावसायिक जहाज रजिस्टर्ड हैं जिनमें 5,000 कंटेनर शिप हैं. उनके जरिये साल में दुनिया भर में करीब 13 करोड़ स्टैंडर्ड कंटेनरों का ट्रांसपोर्ट होता है.
बड़े होते कंटेनर शिप
कंटेनरों के आने के बाद से कंटेनर शिप लगातार बड़े होते गए हैं. आम तौर पर ये जहाज दक्षिण कोरिया, चीन और जापान में बनाए जाते हैं. इस बीच दक्षिण कोरिया के शिपयार्ड ऐसे जहाज बना रहे हैं जिनकी क्षमता 20,000 टीईयू होती है. कहना मुश्किल है कि क्या और बड़े जहाज बनेंगे. इन विशाल जहाजों पर प्रति कंटेनर बचत ज्यादा नहीं है, लेकिन जोखिम काफी बढ़ जाता है.
पोर्ट का विस्तार
एशिया को और वहां से हो रहा व्यापार दुनिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है. इस समय दुनिया के 10 सबसे बड़े कंटेनर पोर्ट में एक भी यूरोप या अमेरिका में नहीं है. ब्रेमेन का इंटरनेशनल पोर्ट इस बीच अंतराराष्ट्रीय नौवहन में कोई महत्वपूर्ण भूमिका नहीं निभा रहा है. वह जर्मनी के ही हैम्बर्ग पोर्ट से काफी पिछड़ गया है.
लक्ष्य है आसानी
शुरू में जहाज मालिक, पोर्ट ऑपरेटरों, रेलवे कंपनी और कर्मचारियों का प्रतिरोध बहुत ही अधिक था. उन्हें अपनी नौकरियों की चिंता थी. ये डर भी था कि क्रेन, ट्रक और कंटेनरों को इधर उधर ले जाना मुश्किल होगा. लेकिन मैकलीन ने कंटेनरों ने दिखा दिया कि ट्रांसपोर्ट का खर्च बिना किसी शक के घटा.