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टूट रही है महिलाओं की झिझक

१७ सितम्बर २०१४

भारतीय समाज में आदिकाल से ही सेक्स को महिलाओं के लिए एक ऐसी चीज माना जाता था जिसके बारे में बोलने का उसे कोई अधिकार नहीं था. वह अपनी इच्छा-अनिच्छा के बारे में खुल कर बात भी नहीं कर सकती थी. लेकिन अब तस्वीर बदल रही है.

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तस्वीर: picture-alliance/dpa

सेक्स के मामले में महिलाओं की बदलती अवधारणा ने विशेषज्ञों को भी चकित कर दिया है. पहले महिलाएं इस बारे में बात करने की बजाय इसे महज अपनी शादीशुदा जिंदगी का एक कर्तव्य समझ कर निभाती थीं. लेकिन अब वह अपने अधिकारों के लिए मुंह खोलने लगी हैं. हाल में आयोजित एक राष्ट्रीय सम्मेलन में यह बात सामने आई है कि अब महिलाएं अपने सेक्स जीवन के बारे में खुल कर बात करने में नहीं झिझक रहीं. सम्मेलन में शिरकत करने वाले विशेषज्ञों ने समाज की बदलती मानसिकता के चलते भारत में सेक्स ट्वाय की बिक्री को वैध बनाने की वकालत की है.

सम्मेलन

काउंसिल आफ सेक्स एजुकेशन एंड पैरेंटहूड इंटरनेशनल की ओर से मुंबई में आयोजित राष्ट्रीय सम्मेलन के दौरान शिरकत करने वाले तमाम विशेषज्ञों ने महिलाओं की टूटती झिझक का जिक्र करते हुए इसे एक यौन क्रांति करार दिया. उनका कहना था कि अब महिलाएं भी सेक्स के मामले में खुल कर अपनी इच्छा-अनिच्छा और पसंद-नापंसद का जिक्र करने लगी हैं. सम्मेलन में एक सत्र की अध्यक्षता करने वाली जानी-मानी स्त्री रोग विशेषज्ञ डा. इशिता असगेकर कहती हैं, "महिलाएं पहले सेक्स को महज पति के प्रति अपना वैवाहिक कर्तव्य मानती थीं. लेकिन अब वह इसमें अपने चरमसुख और संतुष्टि की मांग उठाने लगी हैं. यह एक क्रांतिकारी बदलाव है."

डा. असगेकर कहती हैं कि अपने यौन अधिकारों के प्रति महिलाओं में पनपने वाली यह चेतना भारतीय समाज के लिए नई चीज है. हैदराबाद स्थित सेक्सोलॉजिस्ट डा. शर्मिला मजुमदार बताती हैं, कि उनको हर सप्ताह ऐसे लगभग दो सौ ईमेल मिलते हैं जिनमें शादीशुदा दंपति अपने यौन जीवन को बेहतर बनाने के लिए चिकित्सकीय सहायता की गुहार लगाते हैं. वह कहती हैं, "पहले महिलाएं अपनी शारीरिक या सेक्स संबंधी समस्याओं के बारे में खुल कर बात करने में हिचकती थीं. लेकिन अब वह अपने शरीर की मांग और जरूरतों के बारे में खुल कर बात करने की हिम्मत दिखा रही हैं."

वजह

लेकिन आखिर इस सामाजिक बदलाव की वजह क्या है? विशेषज्ञों का कहना है कि पश्चिम के बढ़ते असर, इंटरनेट के बढ़ते प्रचलन, अपनी शारीरिक जरूरतों के प्रति बढ़ी जागरुकता और आसपास होने वाले सामाजिक बदलावों ने ही महिलाओं को इस बारे में मुंह खोलने की हिम्मत बंधाई है. डा. मजुमदार कहती हैं, "महिलाएं अब समझने लगी हैं कि सेक्स महज शयनकक्ष तक ही सीमित नहीं रह गया है. इससे किचेन, ड्राइंग रूम और दफ्तर तक में उनका जीवन प्रभावित हो सकता है."

मुंबई के जाने-माने सेक्सोलॉजिस्ट डा. शिरीष मालदे कहते हैं, "महिलाएं अब सेक्स जीवन की समस्याओं के लिए अपने पतियों को जिम्मेदार ठहराने से भी नहीं हिचक रही हैं. कई बार पुरुषों की कमजोरी या नशे जैसी बुरी आदतों के चलते भी महिलाएं चरमसुख से वंचित रह जाती हैं." विशेषज्ञों का कहना है कि अब सेक्स जीवन की समस्याओं को लेकर सामने आने वाले मरीजों की तादाद काफी बढ़ गई है. ऐसे दंपति जब डाक्टर के पास पहुंचते हैं तो महिलाएं अपनी समस्याओं को बताने में ज्यादा मुखर रहती हैं. विशेषज्ञ ऐसे दंपतियों से बातचीत कर पहले तो समस्या का पता लगाते हैं और फिर जरूरत के हिसाब से काउंसिलिंग या दवा देते हैं.

डा. मालदे कहते हैं, "दस साल पहले ऐसा एक भी मामले सामने नहीं आता था. लेकिन पिछले दो वर्षों में अपने यौन अधिकारों की मांग करने वाली महिलाओं की तादाद तेजी से बढ़ी है." एक अन्य विशेषज्ञ डा. गौतम खास्तगीर कहते हैं, "मीडिया में सेक्स और सेक्स संबंधी समस्याओं के बारे में बढ़ती जागरुकता की वजह से ज्यादातर मरीज अब झिझक छोड़ कर आगे आने लगे हैं."

सेक्स ट्वायज

सम्मेलन में शिरकत करने वाले विशेषज्ञों का कहना था कि देश में सेक्स जीवन में बढ़ती समस्याओं और इस बारे में जागरुकता की वजह से सेक्स ट्वायज की बिक्री को वैध बना देना चाहिए. फिलहाल ज्यादातर दंपति चोरी-छिपे इन खिलौनों को खरीदते हैं. डा. कुलदीप बावले कहते हैं, "हम कई बार सेक्सजनित समस्याओं को दूर करने के लिए अपने मरीजों को सेक्स ट्वायज की सहायता लेने की सलाह देते हैं."

डाक्टरों का कहना था कि कई मरीजों के लिए जरूरी होने की वजह से वह (डाक्टर) खुद दलालों से इनको खरीद कर अपने मरीजों को बेचते हैं. डा. मालदे भी कहते हैं, "अब सरकार को सेक्स ट्वायज की खरीद-बिक्री को कानूनी तौर पर वैध बना देना चाहिए. इससे सेक्स से जुड़ी कई समस्याएं हल हो सकती हैं."

रिपोर्ट: प्रभाकर, कोलकाता

संपादन: महेश झा