जुगलबंदी पर जोर देते गुप्ता ब्रदर्स
७ जून २०१४लक्ष्यमोहन अभी सिर्फ 22 वर्ष के हैं और आयुषमोहन उनसे भी तीन साल छोटे है. लक्ष्यमोहन ने दिल्ली विश्वविद्यालय के सेंट स्टीफेंस कॉलेज से भौतिक विज्ञान में और आयुषमोहन ने लंदन विश्वविद्यालय में गणित एवं अर्थशास्त्र में स्नातक की डिग्री ली है. लक्ष्यमोहन सितार बजाते हैं और आयुषमोहन सरोद, और दोनों भाई हमेशा मिलकर जुगलबंदी ही प्रस्तुत करते हैं जिसमें उनके गंभीर सांगीतिक स्वभाव का प्रदर्शन रहता है. दोनों से हुई एक बातचीत के अंश:
अपनी पारिवारिक पृष्ठभूमि के बारे में कुछ बताइये. क्या आपके परिवार में गाने-बजाने की कोई परंपरा रही है?
हमारे घर में इस अर्थ में तो गाने-बजाने की परंपरा नहीं थी कि कोई पेशेवर संगीतकार था. हमारे पिता शौकिया सितार बजाया करते थे, लेकिन उन्होंने इसे अपना पेशा नहीं बनाया. लेकिन उनके कारण घर में संगीत सुनने का माहौल तो था ही.
संगीत में रूचि कैसे पैदा हुई, और दोनों भाइयों ने वाद्ययंत्र ही क्यों चुने? क्या गाने की तालीम भी ली?
बचपन से ही संगीत कान में पड़ा तो रुचि भी पैदा हो गई. घर में सभी बड़े-बड़े संगीतकारों की रिकॉर्डिंग्स सुनी जाती थीं. लेकिन हमें पंडित रविशंकर, उस्ताद अली अकबर खां और पंडित निखिल बैनर्जी के संगीत की जटिलताओं और बारीकियों ने बहुत आकृष्ट और प्रभावित किया. तो हमने साज बजाना सीखने की सोची. शुरू में छह साल की उम्र में पंडित उमाशंकर मिश्र से सीखना शुरू किया जो पंडित रविशंकर के अत्यंत वरिष्ठ शिष्य थे. उस्ताद अल्लाउद्दीन खां और उनके पुत्र उस्ताद अली अकबर खां की शिष्या विदुषी शरण रानी जी से भी सीखा. फिर पंडित रविशंकर के ही वरिष्ठतम शिष्य पंडित बलवंत राय वर्मा से तालीम ली. इसके बाद अनेक वर्षो से इसी घराने के सरोदवादक पंडित तेजेंद्र नारायण मजूमदार के शिष्य हैं. इनके अलावा गुंदेचा बंधुओं से ध्रुपद-धमार भी सीख रहे हैं और पंडित विश्वमोहन भट्ट का मूल्यवान मार्गदर्शन भी हमें मिलता रहता है. गुंदेचा बंधुओं को छोडकर अन्य सभी मैहर घराने के हैं.
मैहर घराने की विशेषता क्या है? यह सितार-सरोद के दूसरे घरानों से किस अर्थ में अलग है?
सबसे बड़ी भिन्नता तो यही है कि अन्य घरानों की तरह इस घराने में गतें गायन में प्रयुक्त होने वाली बन्दिशों की हूबहू प्रतिकृति नहीं होतीं. वे अक्सर बहुत जटिल और अनेक आवर्तनों वाली होती हैं जिनमें दायें हाथ का बहुत मनोहर तकनीकी कौशल और बायें हाथ की ‘कृंतन' और ‘जमजमा' जैसी विशिष्ट तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है. इस घराने की स्थापना उस्ताद अल्लाउद्दीन खां ने की थी और उन्होंने इसकी शैली को वीणा, सुरबहार, सुरसिंगार और रबाब की वादन शैलियों के तत्वों को मिलाकर बनाया था. उन्होंने सितार और सरोद के एक नए बाज यानि शैली का निर्माण किया था.
आप हमेशा जुगलबंदी ही प्रस्तुत करेंगे या बाद में एकल प्रस्तुति देने का भी इरादा है? साथ-साथ बजाते समय आप किन बातों का ख्याल रखते हैं.?
अभी तो हम एकल प्रस्तुतियों के बारे में नहीं सोच रहे हैं क्योंकि जुगलबंदी अपने आप में एक कला है और हमें लगता है कि हम एक साथ बजा कर ही अपना सर्वश्रेष्ठ दे सकते हैं. बजाते समय हम इस बात का ध्यान रखते हैं कि सितार और सरोद पर जो संगीत पेश किया जा रहा है, उसकी अंतर्वस्तु में पूरी तरह से सामंजस्य हो, जो आजकल जुगलबंदियों में अक्सर देखने में नहीं आता है. क्योंकि हमने साथ-साथ ही सीखा और रियाज किया है, इसलिए हमारे बजाने में वह अपने-आप ही आ जाता है. हमें लगता है कि हमारे शास्त्रीय संगीत के सारतत्व को तभी संरक्षित किया जा सकेगा जब श्रोता संगीत के इतने जानकार हों कि वे सच्ची कला और औसत दर्जे की कला में फर्क कर सकें.
भविष्य की क्या योजनाएं हैं?
हम चाहते हैं कि इसी दिशा में कुछ काम करें. पिछले वर्ष एक दो सीडी का एक एलबम निकला था ‘एकोज फ्रॉम द येलो लैंड'. इसमें अलग-अलग थीम पर आधारित शास्त्रीय संगीत की चीजें हैं. अभी-अभी टाइम्स म्यूजिक ने दो सीडी का ही एक और एलबम निकाला है ‘द मेजेस्टिक कोर्ट'. इसमें हमने संगत के लिए तबले की जगह पखावज को लिया है.
इंटरव्यू: कुलदीप कुमार
संपादन: महेश झा