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जी20 सम्मेलन में भारत के रुख को भरपूर समर्थन

महेश झा
८ जुलाई २०१७

जर्मन शहर हैम्बर्ग में जी20 देशों का शिखर सम्मेलन आंशिक असहमति के साथ समाप्त हो गया. भारत इस सम्मेलन के फैसलों पर संतोष व्यक्त कर सकता है लेकिन अपने आकार के अनुरूप भूमिका निभाने के लिए यह काफी नहीं है.

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Deutschland G20 Gipfel
तस्वीर: Reuters/P. Wojazer

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए आतंकवाद का मुद्दा भारत की प्रगति के अहम मुद्दों से साथ जुड़ा हुआ है. उनकी शायद ही कोई विदेश यात्रा होती है जिसमें आतंकवाद का मुद्दा अहम भूमिका न निभाये. भारत सालों से आतंकवाद का शिकार है और उसे अपना बहुमूल्य संसाधन आतंकवाद से लड़ने पर खर्च करना पड़ता है. इस लिहाज से जी20 शिखर सम्मेलन अलग नहीं था. अलग वह इस मायने में था कि जी20 के मौजूदा अध्यक्ष जर्मनी ने आतंकवाद की गंभीरता को पहचाना और शिखर भेंट से पहले रिट्रीट में अलग से इस विषय को चर्चा के केंद्र में रखा. इतना ही नहीं, इसमें आतंकवाद के शिकार के रूप में भारत के लंबे अनुभव को देखते हुए प्रधानमंत्री मोदी को मुख्य भाषण के लिए आमंत्रित किया गया.

भारत लंबे समय से आतंकवाद पर अंतरराष्ट्रीय समझौते की मांग करता रहा है. अब वह जी20 को इस बात के लिए मनवाने में कामयाब रहा है कि आतंकवाद के खात्मे के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग अत्यंत जरूरी है. प्रधानमंत्री मोदी ने आतंकवाद को दुनिया की सबसे बड़ी चुनौती बताया और उसके खिलाफ साझा कार्रवाई की अपील की. सम्मेलन के अंत में जारी दस्तावेज से भारत को संतोष हो सकता है जिसमें आतंकवाद पर वित्तीय नियंत्रण जैसे मसलों पर कदम तय किये गये हैं और जी20 ने भ्रष्टाचार के खिलाफ अपने कार्यक्रम के प्रति भी प्रतिबद्धता जतायी है.

भारत की भूमिका बढ़ी

पर्यावरण के मुद्दे पर अमेरिका के साथ मतभेदों के कारण भारत की भूमिका बढ़ गयी है. मोदी के स्पष्ट रवैये को भी इसका श्रेय जाता है कि अमेरिका को छोड़कर जी20 के बाकी सदस्य देश पेरिस समझौते पर अडिग रहे हैं. आने वाले सालों में कार्बन गैसों के उत्सर्जन को कम करने में तकनीक की अहम भूमिका होगी और सोलर ऊर्जा में बढ़ोत्तरी के साथ भारत अक्षय ऊर्जा के इस्तेमाल में लगातार अहम भूमिका निभा रहा हैं.

जी20 शिखर सम्मेलन के दूसरे मुद्दों पर भी समापन बयान में भारत की छाप दिखती है. चाहे वह महिलाओं के सशक्तिकरण का मामला हो, ग्रामीण युवाओं के रोजगार का या ई स्किल के जरिये लड़कियों की हालत सुधारने की पहलकदमी को समर्थन देने का.

Deutsche Welle Hindi Redaktion Teamleiter Mahesh Jha
डीडब्ल्यू हिंदी के प्रमुख महेश झा ने हैम्बर्ग में सम्मेलन को कवर कियातस्वीर: DW/P. Henriksen

अंतरराष्ट्रीय संगठनों की सदस्यता जिम्मेदारी लेकर आती है. खासकर जी20 की अध्यक्षता साल भर चलने वाले विभिन्न आयोजनों का बंडल है. जिसने इस साल जर्मनी की अध्यक्षता पर नजर डाली है उसने पिछले नवंबर से ही सम्मेलन में तय होने वाले विषयों पर मंत्रिस्तरीय बैठकों के अलावा गैर सरकारी आयोजनों का अनुभव किया है. इन बैठकों की बहस से उभर कर आने वाले मुद्दों को आखिरकार राष्ट्र प्रमुखों की बातचीत में शेरपाओं की सौदेबाजी में स्थान मिलता है. भारत को यह सवाल खुद से भी पूछना होगा कि क्या जी20 की संरचनाओं के अनुरूप उसके यहां पर्याप्त पहलकदमियां मौजूद हैं. इसमें खुद जी20 का विरोध करने वाले भूमंडलीकरण विरोधी भी शामिल हैं.

भारत कितना तैयार है

आर्थिक मुद्दों पर सहमति बनाने के लिए बनी संस्था लगातार राजनीतिक स्वरूप लेती जा रही है क्योंकि आर्थिक विकास इस बीच सामाजिक और राजनीतिक विकास के साथ गहरे रूप से जुड़ता जा रहा है. भारत 2019 में शिखर सम्मेलन के आयोजन से पीछे हट गया है. एक वजह तो उस साल होने वाले चुनाव हो सकते हैं. वैसे इस बार सम्मेलन की मेजबानी करने वाले जर्मनी भी सितंबर में आम चुनाव होने हैं.

जी20 सम्मेलन की मेजबानी से भारत के पीछे हटने की सबसे बड़ी वजह शायद राजनीतिक नेतृत्व देने के लिए जरूरी संरचना की कमी है. इस तरह के आयोजनों के लिए भारतीय अधिकारियों को समर्थन देने के लिए जितने विशेषज्ञों की जरूरत होगी, उसका प्रत्यक्ष अभाव दिखता है. शिखर सम्मेलन से पहले हुए मंत्रिस्तरीय सम्मेलनों में भारतीय पत्रकारों की उपस्थिति भी नहीं के बराबर रही है. हैम्बर्ग में भी अंग्रेजी के अलावा दूसरी भाषाओं के मीडिया की ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखी. अब 2019 में भारत की बजाय जापान जी20 शिखर सम्मेलन का आयोजन करेगा. भारत जब भी जी20 की अध्यक्षता करे, उसे विश्व मंच पर अगुआ भूमिका निभाने के लिए काफी तैयारी की जरूरत है.