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जिहादियों और राष्ट्रवादियों का सीरिया

६ अप्रैल २०१३

इस्लाम मतलब न्याय, लोकतंत्र मतलब अन्याय. तुर्की से सटे सीरिया के एक छोटे शहर अजाज में ऐसे पीले स्टिकर छाए हैं. यहां तक कि अदालतों में भी हैं.

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तस्वीर: Getty Images

इस अदालत में तीन इस्लामी नेता और पांच वकील हैं, जो पिछले कुछ दिनों से अदालत का काम काज देख रहे हैं. यहां के वकील जमील ओथमान का कहना है, "हम लंबी जेल की सजा नहीं देना चाहते हैं क्योंकि हमें डर है कि सीरिया प्रशासन जेल को ही बम से उड़ा सकता है."

लुआई नाम का एक सामाजिक कार्यकर्ता है, जिसने अपना फर्जी नाम "नाकाम पत्रकार" रख लिया है. वह भी ऐसे ही झंडे के साथ घूम रहा है. हालांकि इस शहर के सभी लोग इस बात से सहमत नहीं हैं.

लुआई का कहना है, "इस्लामी ब्रिगेड के एक कमांडर ने अलेप्पो शहर में मेरी बांह से बाजूबंद खींच लिया और कहा कि एक मुसलमान को सिर्फ इस्लाम के झंडे तले संघर्ष करना चाहिए. राष्ट्रवाद का मतलब नास्तिकता है." लुआई के मुताबिक संघर्ष के मोर्चे पर उसने सऊदी, लीबियाई, बोस्नियाई और यहां तक कि एक ऐसे लड़ाके से मुलाकात की, जिसे अरबी भी नहीं आती थी.

पिछले साल तक अजाज शहर में गिनती के कट्टरपंथी थे. लेकिन अब यहां कई घरों के सामने अल कायदा के सफेद और काले झंडे लहरा रहे हैं. कई कारों पर भी ऐसे ही झंडे लगे हैं. जिहाद के नाम पर उत्तरी अफ्रीका, अरब की खाड़ी और यहां तक कि यूरोप से भी लोग जमा हो रहे हैं.

अजाज के एक प्रमुख क्रांतिकारी मुहम्मद हमजा के मुताबिक उत्तरी यूरोप के लड़ाके भी उनके साथ मिल चुके हैं, "वहां से एक लड़ाका तो अपनी गर्भवती पत्नी और एक बच्चे को भी साथ लाया है." हालांकि विदेशी लड़ाके अपने में सीमित रहते हैं. ज्यादातर ने अल नुसरा फ्रंट और अहरार अल शाम ब्रिगेड में जगह बनाई है. कई लड़ाकों की जान भी जा चुकी है.

अलेप्पो के आस पास के सुन्नी गांवों में ऐसे कट्टरपंथियों का स्वागत किया जाता है, जो साझा दुश्मन के खिलाफ लड़ रहे हैं और स्थानीय मामलों में दखल नहीं देते. अजाज के नूर अमूरी का कहना है, "सिर्फ एक बार ट्यूनीशियाई लड़ाके के साथ मुश्किल आई थी. उसे एक महिला की पोशाक पसंद नहीं थी और उसने सड़क पर ही उसे गाली दे दी. हालांकि उसके पहनावे में कोई दिक्कत नहीं थी."

नूरी अमूरी ने बताया, "हमने उससे कहा कि उसकी लड़ाई की जगह कहीं और है. वह या तो लड़ने जाए या फिर घर." अमूरी की कार पर आठ "शहीदों" की तस्वीरें लगी हैं, जिन्होंने बशर अल असद की सेना से लड़ते हुए जान दे दी.

सीरिया में दो साल पहले शुरू हुए संघर्ष में 70,000 से ज्यादा लोगों की जान जा चुकी है. पड़ोसी शहर तिल रिफात को भी इस जंग की बड़ी कीमत चुकानी पड़ी है. जो लोग जंग की वजह से घर छोड़ कर भाग गए थे, वहां विद्रोहियों ने कब्जा जमा लिया है. शहर की सड़कों पर भी हथियार बिखरे हैं.

कमाल हमाली अपने समुदाय के 24 लोगों के साथ इस संघर्ष में शामिल हुए. उनका कहना है कि तिल रफात में पिछले कुछ महीनों में 25 बार स्कड मिसाइल का हमला हो चुका है. हर बार हमले के बाद लोगों को लगता है कि वे शांति से नहीं रह सकते हैं. संघर्ष में शामिल होने की इच्छा रखने वाले लोग अक्सर अलेप्पो या अल मींग का रुख करते हैं. ये दोनों शहर सरकार के पास हैं. हमाली अपनी बात साफ करते हैं, "हमारी लड़ाई इस्लाम और गैरइस्लामियों के बीच की लड़ाई है."

एजेए/एएम (डीपीए)

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