जिम्बाब्वे का भविष्य
जिम्बाब्वे में नए संविधान के लिए जनमत संग्रह किया जा रहा है. इससे राष्ट्रपति चुनावों और संसदीय चुनावों का रास्ता खुल जाएगा.
वह भी एक दौर था
जिम्बाब्वे को 1980 में ब्रिटेन से आजादी मिली. उस दौरान देश तंबाकू और ब्रेड की टोकरी कहा जाता था. लेकिन 2000 में भूमि सुधारों के बाद हालात बुरे हो गए.
महंगाई बढ़ी
सरकार ने श्वेत किसानों के औद्योगिक फाप्म ले लिए ताकि अश्वेत किसानों को भी जमीन मिले. लेकिन अर्थव्यवस्था बुरी तरह गोता खा गई, सरकार पर इसका आरोप लगा. वही मुगाबे की जानू पार्टी ने पश्चिमी प्रतिबंधों और अकाल को इसका कारण बताया.
प्रतिबंध
ब्रिटेन, अमेरिका और यूरोपीय संघ ने मानवाधिकार हनन का आरोप लगाते हुए राष्ट्रपति मुगाबे पर प्रतिबंध लगाए हैं. अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने देश को मिलने वाला पैसा रोका है.
बदलाव के संकेत
अस्थिर राजनीतिक हालात के बावजूद भी जिम्बाब्वे की अर्थव्यवस्था में 2008 से बेहतरी दिखाई देने लगी है.
हिंसा
2008 के चुनावों तक राष्ट्रपति मुगाबे की जानू-पीएफ पार्टी का राज था. लेकिन चुनावों के बाद भी मुगाबे हार मानने को तैयार नहीं थे.
ताकत का समझौता
क्षेत्रीय नेताओं के दबाव में मुगाबे और त्सांगिराई ने समझौता किया.
जिम्बाब्वे में गरीबी
बहुमूल्य धातु प्लेटिनम, कोयला, लोहा, सोना और हीरे जैसे प्राकृतिक संसाधनों की बहुतायत के बावजूद जिम्बाब्वे की अधिकांश जनता 50 रुपये प्रतिदिन में गुजारा करती है. बेरोजगारी और गरीबी 92 फीसदी है.
खनन और भ्रष्टाचार
2006 में मारांग हीरे की खदाने मिली और इन्हें दुनिया में सबसे अमीर कहा जाता रहा. माना जाता है कि जिम्बाब्वे के अमीर ही प्राकृतिक संसाधनों का फायदा उठा रहे हैं.
पुलिस की धमकी
जिम्बाब्वे में सामाजिक असमानता बहुत है. मानवाधिकार हनन और मीडिया पर रोक सामान्य हैं. मार्च में होने वाले जनमत संग्रह के पहले कई नागरिक संगठनों पर पुलिस की नजर है.