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जर्मनों के दिल में जगह बनाई टूचे ने

वेरिचा श्पासोव्स्का/महेश झा३ दिसम्बर २०१४

जर्मनी को एक नया आदर्श मिला जब एक युवती ने अपनी जिंदगी खो दी. तुर्क मूल की टूचे की लड़कियों को बचाने के दौरान चोट लगने से मौत हो गई. डॉयचे वेले की वेरिचा श्पासोव्स्का का मानना है कि टूचे की मौत जाया नहीं जाएगी.

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Mahnwache für Tugce vor Klinik in Offenbach 28.11.2014
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Roessler

साहसी छात्रा टूचे अलबायराक को कमजोर लोगों की मदद की कीमत जान देकर चुकानी पड़ी. वह एक लड़की को गुंडों से बचाने के चक्कर में खुद हिंसा का शिकार बन गई. बर्बर हमले में लगी चोट के कारण 23वें जन्मदिन के दिन टूचे की मौत हो गई. सारा जर्मनी इस साहसी और जिंदादिल लड़की की मौत का शोक मना रहा है. सारा जर्मनी उसके सामने आदर के साथ नतमस्तक है.

मौत की शाम उस अस्पताल के सामने हजारों लोगों ने मौन प्रदर्शन किया, जिसमें टूचे का इलाज चल रहा था. लाखों लोगों ने सोशल मीडिया में अपनी सहानुभूति और सराहना का इजहार किया. जर्मन राष्ट्रपति योआखिम गाउक ने टूचे के माता पिता को पत्र लिख कर न सिर्फ अपने शोक का इजहार किया, बल्कि वे टूचे को उनके साहस के लिए मरणोपरांत देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान भी देने पर विचार कर रहे हैं.

डोमिनिक का मामला

युवा टूचे की मौत ने पांच साल पहले हुए इस तरह के एक और मामले की याद ताजा कर दी है. उस समय मैनेजर डोमिनिक ब्रूनर ने एक सिटी ट्रेन में स्कूली बच्चों को बचाने की कोशिश की थी लेकिन खुद उन्हें पीट पीट कर मार डाला गया था. कमजोर की रक्षा में जान गंवाने के इस मामले के बाद जर्मनी में कई हफ्तों तक किसी को बचाने के लिए हिम्मत दिखाने के महत्व पर बहस छिड़ गई थी. डोमिनिक ब्रूनर के लिए भी सहानुभूति और आदर की लहर फैल गई थी.

Tugce A. Trauerfeier in Wächtersbach 03.12.2014
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Boris Roessler

कल की तरह आज भी हर कोई यह सवाल कर सकता है कि किसी को खतरे में देखकर उसकी क्या प्रतिक्रिया होगी? क्या वह हिम्मत दिखाने और जोखिम उठाने का खतरा मोल लेगा? उस समय की तरह आज भी ज्यादातर लोगों की राय है कि भले ही कीमत कितनी भी ज्यादा हो, बीच बचाव करना जरूरी है. ब्रूनर का मामला बहुत जल्द सुर्खियों से बाहर हो गया था, क्या टूचे का मामला भी जल्द ही भुला दिया जाएगा? उम्मीद है कि ऐसा नहीं होगा. दोनों मामलों के एक जैसा होने के बावजूद टूचे के मामले में एक और बात की भूमिका है, टूचे की त्रासद मौत में एक संभावना है क्योंकि यह आप्रवासियों की नकारात्मक बहस में हमारा नजरिया बदल सकता है.

घुले मिले आप्रवासी

जर्मनी में अक्सर आप्रवासियों की बहस में समस्याएं प्रमुख होती हैं, छोटे समूहों की चर्चा होती है, ऐसे आप्रवासियों की जो समाज में घुलना मिलना नहीं चाहते, समांतर समाज में जीते हैं. लेकिन इस बार समाज का एक आदर्श आप्रवासी पृष्ठभूमि का था. तुर्क मूल की एक युवती, जो टीचर बनना चाहती थी और समाज में आगे बढ़ना चाहती थी. एक स्टूडेंट जिसने एक दूसरे के साथ शांतिपूर्ण व्यवहार का रास्ता अपनाया था.

विदेशी मूल के एक बड़े समूह का प्रतिनिधि जो जर्मनी के सामाजिक विकास में अहम भूमिका निभा रहा है. और जर्मनी को जिसका भारी फायदा पहुंच रहा है, आबादी के लिहाज से, आर्थिक और सांस्कृतिक रूप से. कई सारे सर्वे इसकी पुष्टि करते हैं. लेकिन आंकड़ों और तथ्यों का आम तौर पर भावनात्मक सार्वजनिक बहस में कोई असर नहीं होता. हमें एकल घटनाएं प्रभावित करती हैं. इस मामले में एक साहसी, सुंदर और युवा तुर्क जर्मन महिला है जिसे जर्मनों के दिल में जगह मिली है.