जर्मनी में सार्वजनिक प्रसारण के 60 साल
९ जून २०१०जर्मनी के पश्चिमी हिस्से में विजयी सत्ताओं के आदेश से प्रांतीय प्रसारण केंद्र बने थे जिनके सहयोग से एक राष्ट्रीय प्रसारण केंद्र एआरडी बनाया गया जो संघीय जर्मनी के शुरू के वर्षों में एकमात्र संघीय प्रसारण केंद्र था.
पश्चिमी हिस्से में अमेरिका, ब्रिटेन और फ़्रांस का अधिकार था, जिन्हें फिर आपस में जोड़ा गया और इस तरह पश्चिम जर्मनी बना. पूर्वी हिस्से पर विजयी सत्ता सोवियत संघ का आधिपत्य था. पश्चिम के प्रांतों में नए प्रसारण केंद्रों का विकास शुरू हुआ, और इस सिलसिले में मुख्य ध्यान इस पर दिया गया कि वे सरकार के दबाव में न हों, सरकारी प्रचार के लिए उनका इस्तेमाल न हो. पश्चिमी सहबंध की सत्ताओं के दृष्टिकोण को स्पष्ट करते हुए म्युनिख के अमेरिकी कंट्रोल अफ़सर एडमुंड श्लैष्टर ने कहा था :
हमारी राय और गहरी आस्था के मुताबिक रेडियो स्टेशनों को अब सरकार का प्रवक्ता या अंग नहीं होना चाहिए. उन्हें जनता के हर वर्ग का प्रतिनिधित्व करना चाहिए और सभी संगठनों और पार्टियों को अपनी राय पेश करने का मौका देना चाहिए. - एडमुंड श्लैष्टर
एक नया मापदंड
23 मई, 1949 को पश्चिम के 11 प्रदेशों को मिलाकर संघीय गणराज्य की स्थापना हुई, उसी वर्ष अक्टूबर में सोवियत आधिपत्य के पांच प्रदेशों को मिलाकर पूर्वी जर्मनी या जर्मन जनवादी गणतंत्र बना. संघीय गणराज्य जर्मनी या पश्चिम जर्मनी में प्रसारण केंद्रों की कोई राष्ट्रीय या संघीय संरचना अब तक नहीं बनी थी, प्रांतीय स्तर पर सार्वजनिक रेडियो संस्थाएं थीं. 5 जून, 1950 को उनके प्रतिनिधि मिले और एक साथ मिलकर उन्होंने देशव्यापी संस्था का गठन किया, जिनके जर्मन आद्यक्षरों के आधार पर इसे एआरडी कहा गया. सरकार से दूरी और राजनीतिक स्वतंत्रता इस नए प्रसारण केंद्र का ट्रेडमार्क था. ऐसी बात नहीं कि इस ट्रेडमार्क को चुनौतियां नहीं दी गई. लेकिन कुल मिलाकर इन चुनौतियों से निपटा जाता रहा, उनका सामना किया जाता रहा.
मिसाल के तौर पर, नागरिकों को सूचना देने की बाध्यता के कारण उनके चुनाव एड प्रसारित करने पड़ते हैं, जो साफ़-साफ़ इन दलों के प्रचार होते हैं. अपनी दूरी बनाए रखने के लिए कहा जाता है कि प्रसारण संस्था इनके वक्तव्यों के लिए ज़िम्मेदार नहीं है. इसके अलावा प्रसारण संस्थाओं की संचालन समितियों में विभिन्न सामाजिक, धार्मिक व सांस्कृतिक संगठनों के साथ-साथ संसद व सरकार के प्रतिनिधि होते हैं. सरकारी प्रतिनिधियों की कोशिश रहती है कि महानिर्देशक के पद पर अपनी पार्टी के किसी को चुना जाए. और चुना जाता भी है.
एआरडी की संरचना आज तक ऐसी है कि प्रांतीय स्तर पर घटक संस्थाएं बनी हुई हैं. उनके प्रतिनिधि साथ मिलकर एआरडी की संरचना तैयार करते हैं. कार्यक्रम भी विभिन्न संस्थाओं के बीच बांट दिए गए हैं, केंद्रीय स्तर पर उनका समन्वय होता है. इसके ज़रिये संघात्मकता व राजनीतिक बहुलवाद को प्रेरित किया जा सका है. रेडियो व टेलिविज़न रखने वाले सभी नागरिकों को एक निश्चित फ़ीस देनी पड़ती है, जिसकी सहायता से वित्तीय प्रबंधन होता है. इसकी वजह से भी सरकार को दखलंदाज़ी का मौक़ा नहीं मिलता.
पचास के दशक में संघीय चांसलर कोनराड आडेनावर ने कोशिश की थी कि एक सरकारी प्रसारण संस्था बनाई जाए. लेकिन संघीय संविधान न्यायालय के फ़ैसले की वजह से यह कोशिश नाकाम रही. इस फ़ैसले में स्पष्ट किया गया कि रेडियो व टेलिविज़न प्रसारण प्रदेशों के अधिकार क्षेत्र में आता है. इसके बाद प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों की पहल पर 1963 में एक दूसरी प्रसारण संस्था ज़ेडडीएफ़ की स्थापना की गई. अस्सी के दशक में प्रदेश सरकारों की सहमति के साथ इस व्यवस्था में निजी प्रसारण संस्थाओं को भी स्थान दिया गया. इस बीच अनेक राष्ट्रीय व क्षेत्रीय स्तर पर अनेक निजी प्रसारण केंद्र हो चुके हैं.
एआरडी आज एक विशाल प्रसारण संस्था है. उसकी 9 प्रादेशिक घटक संस्थाओं में लगभग 20 हज़ार नियमित कर्मी हैं, स्वतंत्र कर्मियों की संख्या इससे कहीं अधिक है. उसके 11 टीवी कार्यक्रम, 55 रेडियो कार्यक्रम व अनेक डिजीटल कार्यक्रम हैं. इसके अलावा एआरडी के अधीन 16 आर्केस्ट्रा और आठ क्वायर मंडली हैं. वार्षिक बजट है लगभग 6.3 अरब यूरो.
आज दो स्तरों पर एआरडी को चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. एक ओर उसे निजी चैनलों से मुक़ाबला करना पड़ रहा है, और साथ ही मीडिया के बदलते परिदृश्य में विभिन्न नए माध्यम उसके कार्यक्रमों के स्वरूप पर निर्णायक प्रभाव डाल रहे हैं.
एआरडी की घटक संस्थाओं में प्रादेशिक प्रसारण संस्थाओं के साथ-साथ एक अंतर्राष्ट्रीय प्रसारण संस्था भी शामिल है. यानी डॉएचे वेले.
रिपोर्ट: उज्ज्वल भट्टाचार्य
संपादन: महेश झा