जर्मनी में शुरू हो ही गया महिला कोटा
२९ नवम्बर २०१४अब वक्त आ गया है, जर्मनी में अब पुरुषों के कंधों पर कंपनियों के पूरे के पूरे बोर्ड का भार नहीं डाला जाएगा. अब जब बैंक पूरी दुनिया को आर्थिक संकट में धकेल देंगे, जब कंपनियां मंदी से गुजर रही होंगी और लोग अपनी नौकरियां खो रहे होंगे, तब सिर्फ पुरुषों को ही इसके लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जाएगा. अब महिलाओं का जिम्मेदारी बांटने का वक्त आ गया है. यह देखना बहुत मजेदार होता है कि कैसे बोर्डरूम में लेदर के सोफों पर बैठे पुरुष अपने दोनों हाथों को जकड़े होते हैं, इसलिए कि वे महिलाओं को इस बोझ से बचा सकें. लेकिन अब आखिरकार उन्हें ये सब करने की जरूरत नहीं पड़ेगी. और अब कोई उनके किसी फैसले को कमजोरी का इल्जाम नहीं दे सकेगा, बल्कि इस बार तो उन पर यह फैसला थोपा जा रहा है.
समानता के अधिकार के लिए घोंघे की गति से हो रही इस महान रेस ने पहला पड़ाव तो पार कर ही लिया है. महिलाओं के लिए जो कोटा लागू हो रहा है, वह करीब सौ कंपनियों को 233 महिलाओं को नौकरी देने पर मजबूर कर देगा. ये वे कंपनियां हैं जिनका बोर्ड नियमानुसार अगले से अगले साल बदलेगा. जर्मनी में करीब आठ करोड़ लोग रहते हैं, इनमें से आधी महिलाएं हैं, तो ऐसे में यह लक्ष्य पूरा करना नामुमकिन तो नहीं है. जहां तक सवाल काबिलियत का है, तो उसके लिए तो बोर्ड मेंबरों के बायोडाटा पर एक नजर ही काफी है. समानता तब तक हासिल नहीं होगी जब तक औसत स्तर के पुरुषों की जगह उन्हीं के जितनी काबिल और औसत स्तर की महिलाएं नहीं ले लेती.
जिस रूप में फिलहाल महिला कोटा को स्वीकृति मिली है, वह एक छोटे तबके पर ही असर करेगा. लेकिन कुछ महत्वपूर्ण लोग ही हैं जिनका दबदबा है और जो फैसले लेते हैं कि किस तरह की मैनेजमेंट पोस्ट दी जाएगी, काम का माहौल या कॉर्पोरेट कल्चर कैसा होगा, ये सब उन्हीं पर निर्भर करता है. लोग अपने जैसे लोगों को ही प्रमोट करते हैं, पुरुष हमेशा से यही करते आए हैं. और क्योंकि महिलाएं भी कुछ अलग नहीं हैं, इसलिए वे भी ऐसा ही करेंगी. कंपनियों में अलग अलग स्तर पर इस कोटे को स्थाई रूप से लागू करने में तीस प्रतिशत की जरूरत है. (अजीब सा लग रहा है) इसके बाद कोटे की जरूरत नहीं बचेगी, फिर धीरे धीरे इसे खत्म किया जा सकता है. जर्मनी की परिवार कल्याण मंत्री मानुएला श्वेजिष ने कहा है कि यह कानून एक सांस्कृतिक बदलाव ले कर आएगा. देश को ऐसी ही आशावादी महिलाओं की जरूरत है, हर स्तर पर.