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जर्मनी में शरणार्थियों की चिंताएं बढ़ीं

१८ जनवरी २०१५

जर्मनी में आप्रवासियों और शरणार्थियों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं तो पेरिस हमलों ने आशंका का माहौल बानाया है. दक्षिणपंथी हिंसा के पीड़ितों के परामर्श केंद्र प्रमुख रॉबर्ट कुशे से डॉयचे वेले की बातचीत के कुछ अंश.

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Deutschland PEGIDA Demonstration in Dresden
तस्वीर: Reuters/F. Bensch

जर्मनी में आप्रवासियों और शरणार्थियों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं तो पेरिस में आतंकी हमलों ने आशंका का माहौल तैयार किया है. हाल ही में पूर्वी जर्मनी के ड्रेसडेन शहर में एरिट्रिया के एक कमउम्र रिफ्यूजी की मौत से उठा विवाद जारी है. ड्रेसडेन इस्लाम और आप्रवासन के मुद्दों पर चल रहे विरोध प्रदर्शनों के केंद्र में है. दक्षिणपंथी हिंसा के पीड़ित लोगों की मदद के लिए बने एक परामर्श केंद्र के प्रमुख रॉबर्ट कुशे से डॉयचे वेले की बातचीत के कुछ अंश.

डीडब्ल्यू: एरिट्रिया के शरणार्थी की मौत की जांच चल रही है इसलिए हमें उस पर अभी अटकलें नहीं लगानी चाहिए. मगर आपने उस व्यक्ति के रूममेट्स से बात की है, उनका क्या कहना है?

रॉबर्ट कुशे: जाहिरी तौर पर वे इस घटना से सदमे में हैं और इस बात से भी डरे हुए हैं कि वे भी निशाना बन सकते हैं. उन्होंने बताया कि पिछले कुछ हफ्तों में उन्हें बार बार, कई तरह के नस्लवादी भेदभाव का सामना करना पड़ा है. उन्होंने यह भी बताया कि उस व्यक्ति का मृत शरीर खून से लतपथ था, जो कि पुलिस के शुरुआती बयान से मेल नहीं खाता.

जो भी हो, पेगीडा की नियमित रैलियां और बड़ी होती जा रही हैं, खासतौर पर पेरिस में हमले के बाद. क्या पास आने वाले नस्लवादी भेदभाव के पीड़ितों की संख्या भी बढ़ी है? क्या इनमें कोई सीधा संबंध दिख रहा है?

बहुत सारे लोग बताने लगे हैं कि सड़कों पर भेदभावपूर्ण टिप्पणियों या नस्लवादी कमेंट्स को सहने की क्षमता काफी कम हुई है. सैक्सनी राज्य में पेगीडा मार्चों और नस्ली अपराधों के बीच सीधा संबंध कहना तो मुश्किल है. लेकिन बीते दो सालों में हमने नस्ली हिंसा में बढ़ोत्तरी जरूर देखी है.

Spekulationen um Tod eines Afrikaners in Dresden
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Arno Burgi

एरिट्रिया का यह शरणार्थी ड्रेसडेन के उपनगरीय इलाके के बहुमंजिली इमारतों वाले मोहल्ले में रहता था. उस इलाके के सामाजिक ढांचे को देखते हुए क्या यह कहा जा सकता है कि ऐसे क्षेत्र एसाइलम सीकर्स के लिए थोड़े मुश्किल हैं?

ऐसा कहना कठिन है. एक ओर तो, इस क्षेत्र में काफी घनी आबादी है. यहां कम आय वाले बहुत से लोग रहते हैं और कई तरह के सामाजिक तनाव भी हैं. लेकिन दूसरी ओर, यह ऐसा इलाका भी है जहां ऐसे शहरी घरों की सुविधा उपलब्ध है जिसमें असाइलम-सीकर्स को रखा जा सके. जाहिर है कि अगर उन्हें शहर के बीचोबीच कहीं रखा जा सके तो हमें खुशी ही होगी लेकिन ये तो शहर पर निर्भर करता है. अगर वहां अतिदक्षिणपंथी ज्यादतियों की घटनाएं और ग्रैफिटी जैसी चीजें हों, तो वे उनमें हिस्सा ले सकते हैं.

यह व्यक्ति शरणार्थियों के लिए बने किसी खास शरणगृह में नहीं रहता था बल्कि एक ऐसे अपार्टमेंट में जिसके आसपास एरिट्रिया के ही और लोग रहते थे. इस बात का कितना महत्व है?

ऐसे रिफ्यूजी जो अपने मूल देशों में या फिर बचकर जर्मनी आते समय दर्दनाक अनुभवों से गुजरते हैं, उन्हें ऐसे लोगों के साथ रखा जाना बेहतर होता है जहां वे अपनी भाषा में किसी से बात कर सकें, जहां उन्हें किसी बड़ी भीड़भाड़ वाली जगह से ज्यादा प्राइवेसी मिले.

आप एसाइलम-सीकर्स को क्या सलाह देंगे?

यह उनकी जरूरत पर निर्भर करता है. बुनियादी तौर पर, हम उन्हें ये कहना चाहेंगे कि दक्षिणपंथियों के अपराधों के बारे में मामला दर्ज कराएं जिससे वे अपराध सबके सामने आ सकें और प्रशासन को अपराधियों को पकड़ने का मौका मिले. अक्सर हम केवल बातें करते हैं. हमें यह जानना जरूरी है कि असल में वे किस स्थिति से गुजरते हैं. उस के आधार पर ही इस बारे में प्रेस में भी बातें की जा सकती हैं.

सैक्सनी में विदेशियों की संख्या काफी कम है, फिर भी यहां इतने सारे विरोध प्रदर्शनों के पीछे आप क्या कारण मानते हैं?

कुछ हद तक ऐसा इसलिए है क्योंकि यहां लोगों को इसकी आदत नहीं. कई बार ऐसा भी देखने को मिला है कि यहां लोगों में अजनबियों के प्रति सोच ही ऐसी है. शायद समाज में इस मुद्दे को उठाने के बारे में राजनीतिक नेताओं ने भी ज्यादा ध्यान नहीं दिया. 1990 के दशक में लोग कहा करते थे, "सैक्सन अतिदक्षिणपंथ से दूर हैं." अब यह गलत साबित हो चुका है.

रॉबर्ट कुशे ड्रेसडेन स्थित काउंसलिंग सर्विस फॉर विक्टिम्स ऑफ हेट क्राइम्स (आरएए) के निदेशक हैं. आएए ऐसे पीड़ितों, उनके परिजनों, करीबी लोगों और किसी घटना के गवाहों की मदद करती है जो दक्षिणपंथी अतिवादिता या नस्ली हिंसा के शिकार हुए हों.

इंटरव्यू: क्रिस्टॉफ हासेलबाख/आरआर