शरणार्थियों के लिए घर कम
१४ अगस्त २०१४कई जर्मन शहरों में शरणार्थियों के लिए मकानों की कमी हो रही है. उत्तरी शहर हैम्बर्ग में प्रस्ताव रखा गया कि खराब हो चुके यात्री जहाजों का इस्तेमाल इन शरणार्थियों को रखने के लिए किया जाए. कई जर्मन शहरों में आने वालों के लिए जगह बिलकुल नहीं है. पुराने स्कूलों, स्पोर्ट्स हॉल और दूसरी कई इमारतों में शरणार्थियों को रखा जा रहा है.
बर्लिन में पुराने रिटायरमेंट होम्स में अस्थाई कमरे बनाए गए हैं. जबकि कार्ल्सरूहे में मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक शरणार्थियों को इमारतों के गलियारों में सोना पड़ रहा है. बढ़ती संख्या के कारण कोलोन में 800 से ज्यादा शरणार्थियों के लिए होटल के कमरे किराये पर लिए गए. 2015 तक कोलोन में 2000 और लोगों के लिए मकानों की जरूरत होगी, इसे पूरा करना फिलहाल मुश्किल लग रहा है. जर्मनी के दूसरे शहरों की हालत भी कुछ ऐसी ही है.
स्थानीय प्रशासन पहले से ही कर्ज में डूबे हैं, न तो उनके पास धन है और न ही जगह. लेकिन जर्मनी में आने वाले शरणार्थियों की संख्या बढ़ रही है, इसमें वो भी शामिल हैं जो इस्लामिक स्टेट के आतंक से भागे हुए लोग हैं. शहर और समुदाय इससे कैसे निबटेंगे, साफ नहीं है.
पोर्टेबल बिल्डिंग्स में शरणार्थियों को रखा जा रहा है. ये गर्मियों में तो चल जाएगा लेकिन लंबे समय के लिए ये ठीक नहीं है. सीरिया और इराक का घटनाक्रम सिर्फ दक्षिणी यूरोपीय देशों की मुश्किल नहीं है. एक और समस्या ये है कि संघीय कानून के कारण नियम हर शहर में अलग अलग हैं. आप्रवासी और शरणार्थी कार्यालय राज्यों के बीच तालमेल की कोशिश कर रहा है. लेकिन लड़ाई समय के साथ है. 2011 में सीरिया संघर्ष के समय 2,600 शरणार्थी जर्मनी आए और एक ही साल के अंदर ये संख्या 6,000 को पार गई.
शरणार्थियों को घर पाने का अधिकार है और ये सुविधाएं बनाने के लिए दूसरी मदों से लगातार कटौती की जा रही है. इस मुश्किल से निबटने का एक तरीका है कि शरणार्थियों को सामाजिक भवनों में रखा जाए, क्योंकि उन्हें समाज से अलग थलग रखना ठीक भी नहीं है. लेकिन इस तरह के घरों को बनाने के लिए अतिरिक्त धन इकट्ठा करना मुश्किल है.
हालांकि हालात बेहतर हो रहे हैं. ब्रांडेनबुर्ग राज्य के रोजगार और सामाजिक मामलों के मंत्रालय ने सुनिश्चित किया है कि जिन्हें सुरक्षा जरूरत है या जो बच्चे और परिवार मानसिक तनाव में हैं, उन्हें दूसरे लोगों के साथ न रख, अलग घर दिए जाएं. हालांकि जगह की कमी वाली मुश्किल बनी हुई है. रेफ्यूजी होम्स में भी भीड़ रही है. तेजी से हल निकाला जाना जरूरी है.
रिपोर्ट: डिर्क वोल्फगांग/एएम
संपादन: ओंकार सिंह जनौटी