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जर्मनी में इलेक्ट्रो कारों की महात्वाकांक्षी योजना

१३ मई २०१०

जर्मन सरकार अगले दस साल में देश की सड़कों पर 10 लाख इलेक्ट्रिक कारें चाहती हैं. सरकार, उद्योग और शोध संस्थानों के सहयोग से इस दिशा में तेज़ प्रगति के लिए काम चल रहा है.

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कार में सरकारतस्वीर: AP

जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल ने सरकार, ऑटोमोबाइल उद्यमों और इस क्षेत्र में काम कर रहे शोध संस्थानों के प्रतिनिधियों के साथ भेंट के बाद कहा है कि देश में 2020 तक 10 लाख इलेक्ट्रिकल कारों को सड़कों पर लाने की अच्छी पूर्वशर्तें मौजूद हैं. इस समय जर्मनी की सड़कों पर बिजली से चलने वाली सिर्फ़ 1600 कारें हैं, लेकिन आजकल जहां कहीं भी ऑटोमोबाइल शो हो रहा है वहां इलेक्ट्रिक कारें भी ज़रूर दिखायी जा रहीं हैं भले ही वे अभी बाज़ार में उतारने लायक न हों. और इसीलिए जर्मनी की सड़कों पर वैकल्पिक ऊर्जा वाले कारों के आने में वक़्त लग रहा है.

जर्मन ऑटोमोबाइल उद्योग कभी इलेक्ट्रिक कारों के विकास के मामले में भी अगुआ हुआ करता था. लेकिन ये सौ साल पहले की बात है. पेट्रोल से चलने वाली गाड़ियों के सामने बैट्री से चलने वाली कारें टिक नहीं पायीं. अब सौ साल बाद पेट्रोल के विकल्प के रूप में इलेक्ट्रिक गाड़ियां आ रही हैं और इरादा पेट्रोल की गाड़ियों को किनारा कर देने का है.

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बीएमडब्ल्यू की मिनीतस्वीर: AP

जर्मनी फिर से इस विकास में आगे होना चाहता है. चीन, जापान, फ़्रांस या अमेरिका इस में काफी आगे हैं. जर्मन सरकार इस स्थिति को बदलना चाहती है. पिछले दिनों चांसलर कार्यालय में कार उद्योग, शोध संस्थानों और सरकार के प्रतिनिधियों की शिखर भेंट में इस पर विचार हुआ कि जर्मनी यह लक्ष्य कैसे हासिल कर सकता है. चांसलर अंगेला मैर्केल बैठक में अपने तीन तीन मंत्रियों के साथ पहुंची थीं. उन्होंने ऑटोमोबाइल और बिजली कंपनियों से तुरंत कुछ करने का आह्वान करते हुए कहा, "जो आज तेज़ी से इलेक्ट्रिक कारों का विकास नहीं करेगा और उन्हें बाज़ार में लाने लायक नहीं बनाएगा, वह कुछ ही सालों में पीछे खड़ा पछता रहा होगा."

जर्मन कार कंपनियां दुनिया की अग्रणी कंपनियां हैं, वे बाज़ार पर अपना प्रभाव बनाए रखना चाहती हैं और इस दिशा में सक्रिय भी हैं, पर इलेक्ट्रिक कारों के विकास के लिए कार निर्माता सरकार से वित्तीय सहायता मांग रहे हैं. जर्मनी की एक प्रमुख कार निर्माता कंपनी ऑडी के प्रमुख रूपर्ट श्टाडलर कहते हैं, "सरकारी सहायता इलेक्ट्रोमोबिलिटी के लिए हमारे निवेश का आधार है."

विश्व में प्रमुख स्थान पाने की दौड़ में जर्मनी ने सरकार, उद्योग और शोध संस्थानों के बीच निकट सहयोग के लिए एक राष्ट्रीय प्लैटफॉर्म बनाया है. परिवहन मंत्री पेटर रामज़ावर को पूरा विश्वास है कि "सर्वोत्तम पेट्रोल गाड़ियां बनाने वाला जर्मनी भविष्य में सर्वोत्तम इलेक्ट्रिक गाड़ियां बनाने में भी सक्षम होगा." लेकिन राह आसान नहीं है. जर्मन उद्योग संघ बीडीआई के प्रमुख हंस-पेटर काइटेल सबसे बड़ी बाधा स्टोरेज़, यानी बैट्री टेकनोलॉजी को मानते हैं, "यह सवाल महत्वपूर्ण है कि ऊर्जा कहां से आएगी. ये गाड़ियों के विकास का मामला है जिसे जर्मन ऑटो उद्योग को अंजाम देना है."

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बैटरी चार्ज करती स्मार्टतस्वीर: AP

जर्मनी में इलेक्ट्रिक गाड़ियों के विकास को तेज़ करने से जुड़े मुद्दों पर विचार के लिए 147 विशेषज्ञों के 7 कार्यदल बनाये गये हैं. वे अंतरराष्ट्रीय मानकों पर भी चर्चा करेंगे. जर्मनी और फ़्रांस पहले से ही इस पर काम कर रहे हैं कि गाड़ियों को सीमा पार भी चार्ज किया जा सके. यूरोपीय मानक की संभावना बन रही है. लेकिन वाणिज्य मंत्री राइनर ब्रुडर्ले का कहना है कि यह अकेले पर्याप्त नहीं होगा. "यदि हर देश का अपना अलग मानक होगा तो यह एक तरह का संरक्षणवाद होगा, बाज़ार की क़िलेबंदी."

संभावना है कि 2013 से इलेक्ट्रो गाड़ियों का सिरीयल उत्पादन शुरू हो जाएगा. चूंकि बैट्री तकनीक अभी भी बहुत महंगी है, इसलिए आम गाड़ियों से इसकी क़ीमत ज़्यादा होगी. यदि बिक्री बढ़ती है तो उत्पादन सस्ता पड़ेगा और गाड़ियों की क़ीमत गिर सकती है. जर्मन सरकार फिलहाल रिटेल ख़रीदारी के लिए सब्सिडी देने के मूड में नहीं है. सभी उम्मीद कर रहे हैं कि इलेक्ट्रिक गाड़ियां फ़ैशन बनेंगी और तब लोग उन्हें अपनी ज़रूरतों और सुविधा के लिए ख़रीदेंगे.

रिपोर्ट: एजेंसियां/महेश झा

संपादन: राम यादव