जर्मनी को फख्र होगा कि हमने मुसीबत के मारों की मदद की
३१ अगस्त २०१६और वे भी कर पाएंगे. उन दूसरी चीजों की तरह जो किया जा चुका है. मसलन 10 लाख शरणार्थियों को रजिस्टर करना. भले ही महीनों तक ये लगा हो कि ये करना संभव नहीं. इसके दौरान हमने सीखा कि हम जर्मन प्रशासन की अपनी क्षमता को अधिक आंकते रहे हैं. लेकिन सर्दियों में पूरी अव्यवस्था के बाद शरणार्थी कार्यालय अब हजारों नए कर्मचारियों के साथ कुशल संगठन बनाने में लगा है. कार्यालय प्रमुख के अनुसार साल के अंत तक यह पूरा हो जाएगा.
ज्यादातर शरणार्थी इस बीच स्पोर्ट्स हॉल छोड़ चुके हैं. वे विभिन्न शहरों में सामान्य घरों में रह रहे हैं. जुलाई में केंद्र और प्रांतीय सरकारों के साथ स्थानीय निकायों के बीच इस पर सहमति हो गई है कि उन्हें अगले तीन सालों में शरणार्थियों के लिए 7 अरब यूरो की राशि मिलेगी. इस साल की पहली छमाही में जर्मनी को 18 अरब यूरो की अतिरिक्त आमदनी हुई है. आर्थिक तौर पर यह चुनौती आसानी से पूरी हो जाएगी.
हमने पिछले 12 महीनों में सीखने का चढ़ाव देखा है. हमने मदद करने की गजब की तैयारी देखी, फिर भी ये माना कि हम पूरी तरह पर्फेक्ट नहीं हैं. हमने पाया कि इस धनी और सुरक्षित देश में कुछ खोने के डर पाले लोग हैं और दूसरे जो इसका इस्तेमाल अपने पिछड़े राजनीतिक एजेंडा के लिए कर रहे हैं. इतना ही नहीं इस बीच हम इस बहस से कतराने की कोशिश नहीं कर रहे हैं. इतना विवाद इस देश में काफी समय से नहीं हुआ. क्या खूब. लोकतंत्र का मतलब विवाद है, फैसलों के लिए संघर्ष होना चाहिए. हमें सहमति के सुविधाजनक कोने से बाहर निकलने में कामयाबी मिली है. ये विकास की पहली शर्त है.
इस प्रक्रिया में हममें से ज्यादातर जातीय जर्मन राष्ट्र के सिद्धांत को तिलांजलि दे चुके हैं. वह हमेशा से छलावा रही है. जर्मन राज्य की शुरुआत से ही किसी न किसी रूप में आप्रवासन होता रहा है.
जर्मन शरणार्थी नीति पर फैसला इतिहास सुनाएगा. और उसमें कहा जाएगा कि जर्मनों में मुसीबतजदा शरणार्थियों की मदद करने का साहस था, सारी आशंकाओं, सभी समस्याओं और बड़ी मुश्किलों के बावजूद. जर्मनों ने समय का फायदा उठाया. 2015 में उन्होंने कामयाबी का इतिहास लिखना शुरू किया. और उन्होंने ये कर लिया.