जर्मनी को कितने याद हैं मार्क्स और एंगेल्स?
समाजवाद के जनक माने जाने वाले कार्ल मार्क्स और फ्रेडरिक एंगेल्स जर्मनी में विवादित जरूर माने जाते हैं लेकिन इसके बावजूद यहां की कई स्मारक आज भी इन्हें याद करती नजर आती हैं. एक नजर जर्मनी की ऐसी ही स्मारकों पर.
चीन की भेंट
साल 2018 में मार्क्स की 200वीं वर्षगांठ हैं. इस मौके पर चीन ने मार्क्स की 6.3 मीटर ऊंची एक प्रतिमा को जर्मनी के शहर ट्रियर को देने की पेशकश की है. ट्रियर कार्ल मार्क्स का जन्म स्थल है. लंबी बहस और सोच विचार के बाद अब सिटी काउंसिल इस भेंट को स्वीकार कर रही है.
मार्क्स की झलक
ट्रियर ने इस राजनीतिक विचारक की मौत के 130 साल बाद 2013 में उनकी वर्षगांठ मनाई थी. जर्मन आर्टिस्ट ओटमार होर्ल ने इस मौके पर मार्क्स की प्लास्टिक की 500 मूर्तियां तैयार की थीं. इनका मकसद मार्क्स के कार्यों और विचारों पर बहस को प्रोत्साहित करना था.
विचारक के रूप में एंगेल्स
साम्यवाद के दार्शनिक फ्रेडरिक एंगेल्स की यह चार मीटर ऊंची कांस्य मूर्ति, ट्रियर में लगी मार्क्स की मूर्ति से कुछ छोटी है. एंगेल्स के गृहनगर वूपरटाल में लगी यह मूर्ति भी एक चीनी आर्टस्टि ने तैयार की थी. साल 2014 में चीन की सरकार ने ही यह मूर्ति भी दी थी.
पश्चिम की ओर
बर्लिन में "कम्युनिस्ट मेनिफेस्टो" को लिखने वाले इन दोनों विचारकों को पेश किया गया है. साल 1986 में पूर्वी जर्मनी की सरकार ने इस स्मारक को बनवाया था. लेकिन साल 2010 में इस स्मारक में कुछ बदलाव किया गया और अब मार्क्स और एंगेल्स पश्चिम की ओर देखते नजर आते हैं
पत्थरों पर उकेरा
जर्मनी के शहर खेमित्स में मार्क्स की एक बड़ी मूर्ति को पत्थरों पर उकेरा गया है. इस शहर का भी नाम साल 1990 में मार्क्स के नाम पर रखा गया. दीवार पर कम्युनिस्ट मेनिफेस्टो का बेहद प्रचलित वाक्य "दुनिया के मजदूर, एकजुट हों" चार भाषाओं (जर्मन, अंग्रेजी, रूसी, फ्रेंच) में लिखा है.
बिस्मार्क की जगह ली
पूर्वी जर्मनी का हिस्सा रहे फुर्स्टनवाल्डे शहर में इस पत्थर पर कभी जर्मन साम्राज्य के पहले चांसलर बिस्मार्क की मूर्ति उकेरे हुई थी. लेकिन साल 1945 में यहां बिस्मार्क के स्थान पर मार्क्स को स्थापित कर दिया गया.
विवादों की संभावना को हवा देती प्रतिमा
जर्मन शहर लाइपजिग में कार्ल मार्क्स को इस कांस्य प्रतिमा में भी उकेरा गया है. लगभग 30 वर्ष तक इसने लाइपजिग यूनिवर्सिटी के मुख्य द्वार की शोभा बढ़ाई. 2006 में मरम्मत के काम के लिए इसे वहां हटाया गया. फिर इसे कैंपस यानाले में लगाया गया.