जरूरी है इमोशन समझना
२५ नवम्बर २०१६ऑटिस्टिक लोगों में भी दूसरे लोगों की ही तरह भावनाएं होती हैं. फर्क सिर्फ इतना होता है कि वे दूसरों की तरह इजहार नहीं कर सकते. बर्लिन में रहने वाला बच्चा लुत्स भी इसी समस्या से जूझ रहा है. लुत्स, एस्पर्गर सिंड्रोम का शिकार है. यह ऑटिज्म के अंदर एक विशेष प्रकार का विकास है. वह सामान्य स्कूल में जाता है और औसत से ज्यादा इंटेलिजेंट है. लेकिन उसे दूसरे बच्चों के साथ घुलने मिलने में दिक्कत होती है.
लुत्स की मां कात्या वुसोव्स्की के मुताबिक, "क्लास में वह अच्छा प्रदर्शन करता है, उसे पढ़ने में मजा आता है, समस्या ब्रेक के दौरान होती है. ब्रेक में उसे नहीं चलता कि अब वह क्या करे. फिर वह क्लास में दौड़ने लगता है, झगड़ा करता है, धक्का देता है ताकि लोगों का ध्यान उसकी ओर खिंचे और लोग समझें कि वह उनसे बातें करना चाहता है. लेकिन वह यह काम कर नहीं सकता."
आज नया ट्रेनिंग प्रोग्राम पहली बार टेस्ट किया जा रहा है. क्या लुत्स अभिनेताओं द्वारा प्रदर्शित भावनाओं को समझ पाएगा और उनकी व्याख्या कर सकेगा. वयस्कों वाले प्रोग्राम में लोगों के चेहरों की भावनाओं को पहचानना होता है. बच्चों को यह भी सीखना होता है कि वे दूसरों की भावनाओं पर प्रतिक्रिया भी दे सकें. धीरे धीरे लुत्स चेहरे के भाव समझने लगा है. वह उन पर संवेदनशील तरीके से प्रतिक्रिया करता है. लुत्स यह ट्रेनिंग कई सालों से कर रहा है और उसमें प्रगति हुई है.
लुत्स की मां कात्या को फर्क साफ दिखाई पड़ रहा है, "लुत्स के साथ अक्सर चीजें आसान नहीं थीं. कई बार तो आंसू निकल जाते हैं और वह देखकर हंसता रहता है, उसे खुशी होती है, उसे यह मजेदार लगता है. अब ऐसा है कि जब मेरे आंसू निकलते हैं तो वह मेरे लिए रुमाल लेकर आ जाता है. उसे थोड़ी बहुत खुशी अभी भी होती है, लेकिन उसे पता है कि मामला उदासी का है और उसे पता है कि कैसे रिएक्ट करना है."
चेहरों को समझ पाने के लिए ऑटिस्ट लोगों को अभ्यास करते रहना होगा. लेकिन स्वस्थ लोग भी बीच बीच में अपनी अनुभूति की प्रैक्टिस कर सकते हैं. सकून भरी जिंदगी के लिए दूसरों की भावनाओं की सही परख जरूरी है.
एमजे/ओएसजे