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जब बड़ों को सीखना पड़े साइकिल

११ अगस्त २०१४

हैंडल पर हाथ और पेडल मारना. साइकिल चलाना देखने में आसान सा लगता है, लेकिन 40 साल का कोई व्यक्ति पहली बार साइकिल चलाए तो बैलेंस बनाना बहुत मुश्किल हो जाता है.

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तस्वीर: IRNA

कई सौ वयस्क जर्मनी में ऐसे हैं जिन्हें साइकिल चलाना बिलकुल नहीं आता. बर्लिन में एक व्यक्ति ने इसे आधार बना कर अपना बिजनेस खड़ा कर लिया है.

गुलाबी रंग की साइकिल चला रही एक महिला जैसे अपना एक हाथ हैंडल पर से उठाती है, साइकिल का बैलेंस बिगड़ने लगता है. हालांकि वह साइकिल चलाना नहीं छोड़ती. उसके ट्रेनर वोल्फगांग लुकोवियाक अपनी स्टूडेंट को भरोसा देते हैं कि सब ठीक है.

बर्लिन के श्टेग्लिट्स इलाके में एक यातायात पार्क है. यहां कार ड्राइविंग सीखाने वाले वोल्फगांग लुकोवियाक अब वयस्कों को साइकिल चलाना सिखाते हैं. लेकिन यहां पहली दूसरी कक्षा के बच्चे भी साइकिल दौड़ा रहे होते हैं.

एक और स्टूडेंट 50 साल के हैं. उन्हें बारिश के कारण गीले रास्ते का डर है. साइकिल चलाने से पहले एक पैर से धक्का देने वाले स्कूटर से प्रैक्टिस कराई जाती है. ये तरीका लुकोवियाक ने खुद ईजाद किया है. वह कहते हैं, "कोई मानक तो यहां है नहीं, लेकिन एक बच्चा हमेशा छोटे स्कूटर से ही शुरू करता है."

खेल विज्ञानियों के मुताबिक जर्मनी में सैकड़ों ऐसे वयस्क हैं जो साइकिल नहीं चला सकते. जबकि शारीरिक तौर पर उन्हें कोई परेशानी नहीं होती. बचपन में तो वो सीख लेते हैं लेकिन फिर चलाते नहीं और बाद में उनकी हिम्मत नहीं होती.

जर्मनी के करीब तीन दर्जन साइकिल स्कूलों में कई वयस्क साइकिल सीखने आते हैं. फिलहाल फैशन में है एम्प्लॉयर्स के साइकिल कोर्स, जो रास्ते में दुर्घटना से बचना चाहते हैं. लुकोवियाक बताते हैं, "लोग अक्सर साइकिल तब चलाना शुरू करते हैं जब उनके जीवन का नया दौर शुरू होता है. या तो वो रिटायर होते हैं तब या फिर उनका पार्टनर स्पोर्ट्स को पसंद करने वाला होता है." 11 साल से वह ये स्कूल चला रहे हैं. साइकिल चलाने वाली ऐसी महिलाएं भी हैं, जो दूसरे विश्व युद्ध के बाद या तो साइकिल सीख नहीं पाईं या उन्हें इसकी अनुमति नहीं मिली. लेकिन हाल के दिनों में युवा ज्यादा आने लगे हैं. अफ्रीकी मॉडलों से लेकर दूतावास के कर्मचारियों तक कई लोग यहां साइकिल सीखने आते हैं.

सामान्य तौर पर कोर्स में हिस्सा लेने वाली महिलाएं होती हैं. पुरुष अक्सर दूसरों को ये बताना पसंद नहीं करते कि उन्हें साइकिल चलानी नहीं आती. वो चुपचाप अकेले जंगल में जाकर प्रैक्टिस कर लेते हैं.

बस एक दो पैडल की बात होती है, फिर साइकिल पर बैलेंस बनते ही दुनिया मुट्ठी में लगने लगती है.

एएम/एजेए (डीपीए)