जब ईरान की औरतें गाती थीं
ईरान में कजार वंश के पहले शासक नासेर-अल-दिन शाह के शासन काल में कला, संगीत और नृत्य को खूब बढ़ावा मिला. उस वक्त महिलाएं भी सार्वजनिक आयोजनों में अपनी कला का प्रदर्शन करती थीं जिसकी आज के ईरान में कल्पना भी मुश्किल है.
शिराज के कलाकार
नासेर-अल-दिन शाह के शासन काल (1848-1896) में ना केवल पश्चिमी शिक्षा, विज्ञान बल्कि कला, संगीत और नृत्य को भी बढ़ावा मिला. शिराज शहर की महिलाएं सितार जैसे पारंपरिक वाद्य यंत्रों के अलावा नृत्य में भी कुशल थीं.
'तार' यंत्र
ईरान के तार नामक यंत्र का आकार आज के वायलिन जैसा होता था और उसकी लंबी नली होती थी. दो तरह के तारों से जड़े इस इंस्ट्रुमेंट से मधुर आवाज निकलती थी. हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत में प्रचलित सितार की ही तरह यह भी मध्ययुगीन काल से है.
प्रिंस के लिए डांस
म्युजिक इंस्ट्रुमेंट के अलावा कजार शाह के काल में डांस का भी खूब बोलबाला था. इस दौरान राजकुमार मोहम्मद हसन मिर्जा के सामने डांस पेश करने वाली नेगार खानम काफी प्रसिद्ध हुईं.
एक से बढ़ कर एक डांसर
यह डांसर फाती जंगी इस काल की सबसे मशहूर नर्तकियों में से एक थीं. 1979 में हुई ईरानी क्रांति के बाद से ही ईरान में चलने वाले कई संगीत अकादमियां बंद होने लगीं, खासकर महिलाओं के लिए उनके दरवाजे पहले बंद हो गए.
जगह बदलते कलाकार
सड़कों पर कई तरह के डांस पेश करने वाली कलाकारों का समूह एक जगह से दूसरे जगह जाने लगा. कई संगीतकार, डांसर रास्ते में भी प्रदर्शन करते चलते. कई सलमास नाम की जगह पहुंच गए.
कई तरह के वाद्य
किसी कला समूह में शामिल महिलाएं अलग अलग तरह के वादय यंत्र बजा सकती थीं. इस तस्वीर में उस समय प्रचलित कई यंत्र देखे जा सकते हैं.
लड़का-लड़की साथ
ऐसे कलाकारों की मंडली में महिलाएं और पुरुष दोनों होते थे. वे साथ प्रदर्शन करते और मिल कर ही संगीत और नृत्य की नई प्रस्तुतियां तैयार करते.
संगीत की शिक्षा का केंद्र
सन 1862 में यूरोपीय देशों की तर्ज पर शाह ने मिलिट्री बैंड गठित करने का आदेश दिया. एक फ्रेंच संगीतकार अल्फ्रेड लेमायर नियुक्त हुआ. यह प्रयास इतना सफल रहा कि 19वीं सदी के अंत कर तेहरान का संगीत स्कूल पश्चिमी वाद्य यंत्र और संगीत की शिक्षा का केंद्र बन गया.
तार के अलावा भी यंत्र
सितार जैसे यंत्र तो थे ही. इसके अलावा परकशन इंस्ट्रुमेंट जैसे डफली भी बजाई जाती थी.
कला समूहों की भरमार
कजार शाह के शासन के दौरान बहुत सारे कला और संगीत समूह बने. इनका खूब विकास हुआ और ये दूर दूर पहुंचे.
अलग था वो वक्त
उस काल में महिलाएं आजादी से संगीत से जुड़ी होतीं. गातीं, बजातीं और नृत्य करतीं. यह सब कुछ सार्वजनिक रूप से होता था. जिसकी आज के ईरान में कल्पना नहीं की जा सकती.
संगीत का कद्रदान
19वीं सदी के शाह कजर को संगीत का कद्रदान माना जाता था. उन्होंने कई महान संगीतकारों को शाही शरण में रखा, जिन्होंने प्राचीन पर्शिया की संगीत परंपराओं को जिंदा किया और ईरानी संगीत रदीफ की नींव रखी.
पहनने की आजादी
इसी तस्वीर में दो लड़कियां पारंपरिक तो दो पश्चिमी वेशभूषा में दिख रही हैं. उस समय महिलाओं के पास अपनी पसंद के कपड़े पहनने की कहीं ज्यादा आजादी का पता चलता है.
सब बदल गया
अब तो ईरान में सड़कों पर क्या टेलीविजन तक पर कम दिखती हैं. टीवी पर भी इस्लामी नियमों का पालन करते हुए ही संगीत पेश किया जा सकता है. ईरानी दंड संहिता के अनुसार 1983 में सिर पर हिजाब ना पहनने पर 74 कोड़ों की सजा थी. 1996 में इसे बदल कर जेल और जुर्माना कर दिया गया.