जगह जगह कूड़ा
चाहे राजधानी नई दिल्ली हो या भारत के दूसरे शहर या कस्बे, खाली जमीन पर कूड़ा दिखना आम बात है. भारत में सफाई पर जागरुकता की जरूरत है.
जगह जगह पॉलिथीन
केवल दिल्ली में ही हर दिन करीब 10,000 टन कचरा होता है. सफाई के प्रति जागरूकता के अभाव में शहर कूड़ेदान बनते जा रहे हैं.
नदियां या नाले
गंगा, यमुना, गोदावरी, गोमती, साबरमती, नर्मदा और सरयू जैसी नदियां प्रदूषण से बुरी तरह प्रभावित हैं. गंदा पानी लोगों को बीमार कर रहा है, सब्जियां तक दूषित हो रही हैं.
समस्या बना प्लास्टिक
प्लास्टिक की समस्या गंभीर शक्ल ले रही है. बाजार में मिलने वाली कई चीजें प्लास्टिक में बंद हैं. अंडा, दूध या चीनी जैसी चीजें भी पॉलिथीन में बंद हैं. लेकिन प्लास्टिक की रिसाक्लिंग के लिए नगर निगम तैयार हैं और ना लोग.
सड़क पर प्रदूषण
जगह जगह सार्वजनिक परिवहन बहुत हद तक तिपहिया स्कूटर या टेम्पो के भरोसे है. मेट्रो जैसी सेवाएं तो इक्का दुक्का जगहों पर ही शुरू की जा रही है. साफ परिवहन के अभाव में वायु प्रदूषण भी बढ़ रहा है और तेल की खपत भी.
बढ़ती बीमारियां
हवा में घुला जहर और पानी में घुला प्लास्टिक कैंसर जैसी बीमारियां फैला रहा है. भारतीय शहरों में अब 50-55 साल की उम्र में कैंसर के मरीज सामने आना सामान्य बात है.
गांव, तब भी साफ
भले ही गांवों को पिछड़ा कहा जाए, लेकिन दूर दराज के गांव अब भी शहरों की तुलना में साफ हैं. वहां जैविक कचरा ज्यादा होता है. लेकिन धीरे धीरे पॉलिथीन में लिपटा बाजार वहां भी गंदगी फैला रहा है.
झोले से दूरी
कभी भारत में बाजार के काम काज के लिए कपड़े का झोला इस्तेमाल किया जाता था, सामान कागज में थैले में मिलता था. लेकिन झोला लोगों को झोलाछाप लगने लगा. एक अच्छा उपाय, आलस्य और सहूलियत की भेंट चढ़ गया.
आशा बनाम हताशा
हाल ही हिमाचल हाई कोर्ट ने राज्य में पॉलिथीन के बंद सामान की बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया. अदालत के फैसले पर केंद्र और राज्य सरकारों को खतरे की आहट मिलनी चाहिए थी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ.